Monday, April 10, 2023

इस ऑडियो को सुनकर भर आएंगी आपकी आंखें

 

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


हमारी बड्डी, राजमणि ने अपने कक्षा अवलोकन का अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने एक बच्ची के संघर्ष की कहानी को कलमबद्ध करने का प्रयास किया है। वे लिखती हैं-


मैं अपनी एडु लीडर काजल बैच-7 के कक्षा अवलोकन में गई थी। वहां मेरी मुलाकात एक छोटी बच्ची से हुई जिसका नाम प्रिया है। उस बच्ची ने मुझसे आकर कहा, “दीदी हम आपको कुछ सुनाना चाहते हैं। आपको अच्छा लगेगा तो मुझे बताइएगा हम खुद से बनाए हैं।”  


मैंने उसकी बातों को सुनने के लिए हामी भर दी। उस बच्ची ने मुझे एक कविता सुनाई, जिसे सुनने के बाद मैं बहुत ही ज्यादा भावुक हो गई। सच बताऊं तो उस कविता को सुनने के बाद मैंने उसे अपने पास सहेजने का निर्णय कर लिया इसलिए मैंने उस बच्ची की आवाज में ही उसे रिकॉर्ड कर लिया।


मार्मिक पक्ष को उजागर करता ऑडियो 


इस ऑडियो में प्रिया ने अपने दैनिक जीवन के बारे में बताया है। प्रिया केवल 8-9 साल की ही है लेकिन इतनी छोटी उम्र में उसे घर का पूरा काम करना पड़ता है। वह बहुत गंदे कपड़े पहन कर स्कूल आती है लेकिन उसे पढ़ने का बहुत मन है, जिस कारण वह घर का पूरा काम करके रोज स्कूल आती है।

राजमणि ने जो ऑडियो साझा किया है, उसमें एक लड़की के उस संघर्ष को समझा सकता है, जो शायद भारत के हर कोने में हो रहा है। इतनी छोटी-सी उम्र में उस बच्ची को चूल्हा जलाना पड़ रहा है, वह अपनी मां से सवाल भी करती है कि अब नहीं जाएंगे पढ़ने तो कब जाएंगे?, मुझे पढ़ने दो, मैं पढ़ाई के साथ सारे काम करुंगी इत्यादि। 


लड़की होने के कारण अधिक श्रम 


हालांकि इतनी कम उम्र में बच्चों से इतना श्रम कराना नहीं चाहिए लेकिन चूंकि प्रिया एक लड़की है इसलिए उसके हिस्से में यह श्रम जन्म से ही आ गया है। इसके उलट लड़कों के लिए ऐसे श्रम नहीं निर्धारित किए गए हैं। वे छुट्टी के वक्त खेल कर घर आती हैं, लंच के वक्त आराम से खाते हैं क्योंकि उन्हें इतने वक्त में दौड़ कर घर जाकर घर का काम करने की बाध्यता नहीं होती है इसलिए वे अपने विद्यालय के हर एक पल को महसूस करते हैं लेकिन लड़कियों के हिस्से में घर का काम आता है इसलिए वे विद्यालय के पलों को कभी जी नहीं पातीं।


लड़कियां घर का काम करेंगी। यह सोच प्राचीन काल से हर एक व्यक्ति के अंदर समाहित है, और यही कारण है कि आज के वक्त में भी लड़कियों को घर के कामों को करने के लिए बाधित किया जाता है या यूं कहें, तो घर का काम करना एक सीमा निर्धारित करने के बराबर होता है, जिसे पार करने के बाद ही लड़कियां अपने हिस्से की दो पल की खुशी को जी पाती हैं और पढ़ पाती हैं। 


लड़कियों के साथ सहज लड़कियां 


साथ ही राजमणि के अनुभव ने एक बात की भी पुष्टि की है कि लड़कियां अधिकांशतः लड़कियों के सामने ही खुलकर बातें करती हैं और अपने अनुभव साझा कर पाती है क्योंकि कहीं ना कहीं लड़कियों को इस बात का एहसास होता है कि शायद मैं जिससे बातें कर रही हूं, उन्होंने मेरे जैसा संघर्ष झेला है। 


यहां कहीं ना कहीं जेंडर एक बड़ी भूमिका अदा करता है इसलिए लड़कियों का हर एक स्तर पर मौजूद होना और आगे बढ़ना जरुरी है, जिससे कई प्रिया का संघर्ष और उनकी आवाज हम तक पहुंच सके। 



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