Thursday, April 6, 2023

लड़कियों को पुस्तकालय से जोड़ना एडुलीडर्स की पहल का एक अहम हिस्सा है

मैं अंशिका बैच-7 की एडुलीडर हूं। मैं आज आपके साथ अपने कलस्टर बैठक का अनुभव साझा कर रही हूं। कलस्टर बैठक में हमने समझा कि हम अपने क्षेत्र में एक पुस्तकालय बनाना चाहते हैं ताकि गांव के बच्चे पुस्तकालय का लाभ उठा सकें क्योंकि अधिकांश बच्चे हर पुस्तक को खरीदने में समर्थ नहीं होते। ऐसे में अगर गांव में एक पुस्तकालय हो, तो बच्चों को काफी लाभ होगा। 

इसके लिए हमारे क्लस्टर से कुछ लोग बेगूसराय भी गए थे। वहां जाने के बाद मेरी यह समझ बनी कि एक पुस्तकालय बनाने के लिए जरूरी नहीं कि हमारे पास एक रूम ही हो। हम एक वृक्ष के नीचे या फिर किसी के आंगन में भी पुस्तकालय खोल सकते हैं। साथ ही मैंने जाना कि काल्पनिक और वास्तविक कहानियों में क्या अंतर है। 

इस सत्र के दौरान मैंने सीखा गतिविधि क्या है, किसे हम गतिविधि कह सकते हैं, गतिविधि कराने के कौन-कौन से तरीके होते हैं इत्यादि। पुस्तकालय का आयाम, कैसे पाठक को किताबों तक पहुंचाया जाए इत्यादि मेरे लिए लर्निंग रही। मैंने वहां पर कुछ किताबें भी पढ़ी जो मुझे काफी पसंद आई। जैसे - बेटी करे सवाल। 

मैंने महसूस किया कि एक लड़की का सवाल करना अनेक सवालों को खड़ा कर देता है। जैसे- लड़कियां ये नहीं पूछ सकती कि उनकी शादी कम उम्र में क्यों कर दी जाती हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि उन्हें एक ही जवाब मिलेगा कि एक अच्छा घर परिवार मिल रहा है लेकिन लड़कियों को कभी अपने दम पर अपना घर बनाने या अपनी पहचान बनाने की आजादी नहीं मिल पाती। 

एडुलीडर के इस अनुभव से हमें यह पता चला कि पुस्तकालय के लिए सही जगह की जरुरत होती है। जगह चाहे कहीं भी हो सकती है लेकिन जगह का माहौल अच्छा होना चाहिए ताकि बच्चे एकत्रित होकर पढ़ सकें और किताबों को रखने की सुविधा भी हो। वहीं दूसरी ओर हमें यह भी एहसास हो रहा है कि लड़कियों के लिए पढ़ना कितना जरुरी है ताकि वे अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकें और अपनी जिंदगी के निर्णय स्वयं लें , मतलब बागडोर उनके ही हाथों में होनी चाहिए। 

किसी गांव में पुस्तकालय की नींव रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है क्योंकि गांवों में ग्रामीण सोच में बदलाव अचानक संभव नहीं है। जैसे- हो सकता है कि वे अपनी बेटियों को पुस्तकालय में पढ़ने के लिए ना भेजें क्योंकि वहां लड़के भी हो सकते हैं मगर एडुलीडर्स इन्हीं मानसिकता के खिलाफ खड़ी हैं ताकि हर एक लड़की शिक्षित हो सके और अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हो सके। 

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