फोटो क्रेडिट- आई सक्षम |
मैं स्मृती कुमारी बैच- 9 मुंगेर जिले की एडुलीडर हूं। आज मैं आप लोगों के साथ अपनी कक्षा का अनुभव साझा करने जा रही हूं।
आज जब मैं कक्षा में गई, तो बच्चे मुझसे मेरा इमोशन मतलब मेरी भावनात्मक स्थिति के बारे में पूछने लगे। उन्होंने मुझसे पूछा, “दीदी, आपको कैसा लग रहा हैं?” उन्होंने मुझसे जिस तरह से मेरे इमोशन के बारे में पूछा, ये देख कर मुझे बहुत खुशी हुई।
बच्चों ने पूछा मेरा इमोशन
मैंने उनको बताया कि मैं खुश हूं। साथ ही अपनी खुशी का कारण भी बताया। इसके बाद मैंने बच्चों को मेडिटेशन करवाया फिर बच्चों से उनके इमोशन के बारे में जाना। इस पर बच्चों ने कहा, “वे उत्साहित महसूस कर रहे हैं।” उनके उत्साह को बढ़ाते हुए मैंने उनसे कहा, “आज मैं आप लोगों के लिए कुछ लाई हूं। इतना सुनते ही सभी बच्चे खुश होकर पुछने लगे कि क्या मैं क्या लाई हूं, तो मैंने कहा, “पहले जल्दी से एक मिनट के लिए सभी बच्चे अपनी आंखें बंद किजिए।”
मेरे इतना कहने के बाद सभी बच्चों ने अपनी आंखें बंद कर ली। इसके बाद मैं कक्षा के लिए जो घड़ी लेकर आई थी, उसे मैंने कक्षा में लगा दिया। इसके बाद सभी बच्चों को आंखें खोलने के लिए कहा। आंख खोलते ही जब बच्चों की नजर घड़ी पर पड़ी, तब उनकी मुस्कुराहट बढ़ गई। बच्चों के चेहरे पर मुस्कान थी और मुझे भी उन्हें खुश देख कर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
घड़ी से समय का ज्ञान
आज मैंने बच्चों को गणित का भाग ‘समय’ पढ़ाया कि समय कैसे देखते हैं, घड़ी की बड़ी-छोटी सुई के बारे में बताया फिर मैंने कक्षा के ही एक बच्चे को कहा, “आप घड़ी बना कर दिखाएं और इसे जुड़े सवाल भी करें।” इसके बाद हमने एक खेल खेला और फिर बच्चों में से सोनाक्षी ने बुक रीडिंग करके सबको सुनाया। साथ ही इसके बाद मैंने बच्चों को होमवर्क दिया।
आज से मेरी कक्षा के जो चौथी के बच्चे थे, वे सभी पाचंवी में चले गये थे। आज से उनकी कक्षा अलग हो गई थी।
आप हमें भूल जाएंगी?
पांचवी कक्षा की रितिका और प्रियंका मेरे पास आई और बोलने लगी, “दीदी, नई कक्षा में मन नहीं लगता है। अब तो आप हम सबको भूल जाइयेगा। इतना कहते-कहते उनकी आंखों से आंसु आ गए। उन्हें चुप कराते हुए मैंने कहा, “क्यों भूलूंगी? मैं आपकी कक्षा में जरुर आऊंगी।” इतना कहने बाद मैंने उन्हें अपनी बांहों में भर लिया और समझाया मैं तो यही हूं।
आपको जब मेरे पास आने की इच्छा करें आप आकर बैठ सकते हैं फिर मैंने उन्हें कहा, “आइये बच्चों हम सब एक तस्वीर लेते हैं इसलिए पहले आप रोना बंद किजिए नहीं तो अच्छी तस्वीर नहीं आएगी। बच्चों ने रोना बंद किया और फिर मैंने तस्वीर ली और उनको कहा, “अब मैं इसको रोज देखुंगी, तब तो आपको कभी नहीं भुलूंगी। मेरी ये बात सुनकर वे हंसने लगे।
मेरे प्रति बच्चों का ऐसा लगाव देखकर मेरा मन भी भावुक हो गया। उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि हां, मैंने कक्षा में अपने दोस्त बना लिए हैं। मेरे छोटे और मासूम से प्यारे दोस्त।
इस अनुभव से कई चीजें सामने आती हैं। जैसे-
- एडुलीडर अगर एक महिला हो, तो बच्चे उनसे ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं। खासकर लड़कियां अपने दिल की बातों को लड़कियों के साथ साझा करने में सहज महसूस करती हैं।
- कक्षा में घड़ी का ना होना, एक विषय है लेकिन एडुलीडर के प्रयासों से कक्षा में घड़ी की उपलब्धता होना एक अहम विषय है क्योंकि कई बार हम मुश्किलों के आगे घुटने टेक देते हैं या उसे अपनी नियति मान लेते हैं, मगर एडुलीडर स्मृति ने अपनी पहल द्वारा इस समस्या के समाधान हेतू कदम बढ़ाया और बच्चों को घड़ी से अवगत कराया।
- साथ ही वे इस तरह अन्य पीढियों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत साबित हो रही हैं, जो भविष्य में बेहतर करना चाहती हैं, या अपनी पहचान बनाना चाहती हैं। जैसे- कक्षा में मौजूद छोटी बच्चियां एडुलीडर को देखकर रोल-मॉडल के रुप में चुन सकती हैं कि हां, मुझे भी समाज में बदलाव लाना है, नेतृत्व करना है और समस्याओं से लड़ना है।
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