एडुलीडर्स हर रोज जब विभिन्न कक्षाओं में जाते हैं, तब अपने-अपने अनुसार अनेक कार्यों को गति देने का प्रयास करते हैं। जैसे- बच्चों की कक्षा में उपस्थिति सुनिश्चित करना, प्रार्थना करवाना, टीएलएम द्वारा पाठ को समझाना इत्यादि। आज हमारी एक एडुलीडर ने भी अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने कक्षा का अनुभव एवं बच्चों की सहभागिता को लिखा है-
मैं वीणा कुमारी बैच 9 की एडुलीडर हूं। आज मैं आप लोगों के साथ अपनी कक्षा 1 का अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज जब मैं विद्यालय गई तो मेरे पहुंचने तक प्रार्थना नहीं हुई थी इसलिए मैंने शिक्षकों के साथ मिलकर प्रार्थना करवाई। इसके बाद मैंने बच्चों को कक्षा में जाने के लिए कहा और सारे बच्चे अपनी-अपनी कक्षा में चले गए। उसके बाद जब मैं कक्षा में गई तो सारे बच्चे एक साथ खड़े होकर गुड मॉर्निंग बोले। यह देखकर मुझे काफी अच्छा लगा। इसके बाद मैंने मेडिटेशन करवाया फिर एक बालगीत करवाया, जिसका नाम The little birds था।
हालांकि बालगीत कराने के पहले मैंने बच्चों से कविता पर बातचीत की एवं उसके बाद बच्चों को बालगीत करने के लिए कहा ताकि बच्चे बालगीत का मतलब समझ सकें और उसके अर्थ से रुबरु हो सकें। इसके साथ ही मुझे यह बात भी अच्छी लगी कि बच्चों ने मेडिटेशन के दौरान काफी शांति बनाई रखी थी एवं अच्छे से अपने-अपने पाठ को पूरा किया था।
एडुलीडर्स बन रही अन्य के लिए प्रेरणा
एडुलीडर्स द्वारा विद्यालयों में जाना और गतिविधियां कराना इस बात की ओर इशारा नहीं करता है कि वे केवल बच्चों को शिक्षित करने जाती हैं बल्कि उनका उद्देश्य अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा बनना भी होता है, जो किसी कारणवश अपनी आवाज नहीं उठा पातीं। यह केवल एक जरिया है, जिससे लड़कियों को अपनी उड़ान भरने का मौका मिलता है और वे अपने निर्णय ले पाती हैं, जो आई-सक्षम का सिद्धांत है- voice and choice.
जब एडुलीडर्स कक्षाओं की परेशानियों का हल निकालती हैं और परिस्थितियों को अपने अनुसार मोड़ती हैं, तब वे एक ओर समस्याओं से लड़ना और जूढना सीख रही होती हैं। विद्यालय में प्रार्थना करवाना ही इस बात का परिचायक है कि वे अपनी कार्य के प्रति समर्पित हैं और एक कुशल नेतृत्वकर्ता की तरह उभरकर सामने आ रही हैं।
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