फोटो क्रेडिट- आई सक्षम |
पीटीएम में अभिभावकों की दिलचस्पी कम होना एवं उनकी उपस्थिति कम होना एडुलीडर्स के लिए चिंता का विषय रहता है क्योंकि बच्चे स्कूल के बाद अपने अभिभावकों के साथ ही समय बिताते हैं। अब ऐसे में अगर पीटीएम में ही अभिभावक नहीं आएंगे, तब पीटीएम करने की सार्थकता नहीं बचेगी इसलिए हमारे एडुलीडर्स इस चुनौती का सामना करने के लिए अनेक उपायों पर गौर फरमा रहे हैं। पढ़े एक अनुभव-
मैं प्रियंका कुमारी, बैच 9 मुंगेर की एडुलीडर हूं। आज मैं पीटीएम आदि के सिलसिले में कम्युनिटी गई थी ताकि अभिभावकों की परेशानियों के बारे में जानकारी ले सकूं। वहां मैं दो अभिवावकों से मिली। चुंकि उस वक्त सुबह का समय था इसलिए कई अभिभावक अपने काम के सिलसिले में बाहर निकल गए थे इसलिए मैंने दो अभिभावकों से मुलाकात करने का सोचा।
मेरा उद्देश्य स्पष्ट था
अभिभावकों से मिलने का मेरा उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट था कि मैं पीटीएम में उनकी कम उपस्थिति का कारण जान सकूं। जैसे- अभिवावक पीटीएम में क्यों नहीं आते हैं? मेरे इस सवाल पर उनका कहना था कि पीटीएम के बारे में तो जानते हैं लेकिन पीटीएम में होता क्या है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी, मतलब पीटीएम कराने और अभिभावकों के शामिल होने से क्या है, इसकी उन्हें जानकारी ही नहीं थी।
उनके इतना कहने के बाद मैंने उन्हें पीटीएम का मतलब बताया और कहा, “पीटीएम के दौरान आप यानी की बच्चे के अभिभावक को कोई भी काम नहीं दिया जाता है बल्कि आपके बच्चे की पढ़ाई कैसी चल रही है, वे क्या करना चाहते हैं, क्या बनाना चाहते हैं, उन्हें क्या पसंद हैं, उन्हें कोन सा विषय पढ़ना अच्छा लगता है इत्यादि की जानकारी दी जाती है ताकि अभिभावक भी बच्चों की आकांक्षाओं से रुबरु हो सकें। साथ ही शिक्षकों की मौजूदगी में बच्चों एवं अभिभावकों के बीच उन बातों पर भी चर्चा हो सके, जो उनके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।”
अभिभावकों ने समझी सार्थकता
मेरे इतना समझाने के बाद उन दो अभिभावकों को पीटीएम की सार्थकता के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने मुझे आश्वासन भी दिया कि वे अब से हर बार पीटीएम में शामिल होंगे। अपने कम्युनिटी जाने पर मुझे एहसास हुआ कि एक-एक व्यक्ति से संवाद करना और पीटीएम के विषय में जानकारी देना जरुरी है क्योंकि कई बार लोग कई तरह की धारणाएं बना लेते हैं, जिसका समाधान करना जरुरी हो जाता है।
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