मैं पूनम कुमारी, गया ज़िले से हूँ। इस समय मैं एडू लीडर का भूमिका में काम कर रही हूँ और आज मैं आप सबके साथ मीना मंच का एक खास पल साझा कर रही हूँ।
दिन था शुक्रवार। उस दिन शेरघाटी ब्लॉक के मध्य विद्यालय ब्राउन स्कूल में मीना मंच का कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
जब मै क्लास में गए तो वहां पर दो लड़की जो की ब्लैक बोर्ड पर मीना मंच का पोस्टर बना रहे थे।
जब मै पिछले बार मीना मंच करवाए थे , तो उस समय 13 से 15 लड़कियां के साथ मीना मंच करवाए थे। इस फ़रवरी महीने में कुल मिलाकर 30 किशोरी लड़कियां ने मीना मंच में शामिल हुए हैं। कार्यक्रम की शुरुआत हुई — सभी लड़कियाँ गोल घेरे में बैठ गईं। फिर मैंने उनसे पूछा, "आप लोग जानती हैं हम आज यहाँ क्यों इकट्ठा हुए हैं?"
एक-एक करके लड़कियाँ बोलने लगीं — "दीदी, आज मीना मंच का कार्यक्रम है... दीदी, इसमें क्या होता है?... ये क्यों ज़रूरी है?" मैंने उन्हें समझाया कि मीना मंच के ज़रिए हम नई-नई बातें सीखते हैं, अपने अंदर की ताक़त को पहचानते हैं, और एक-दूसरे से जुड़ते हैं।
मीना मंच में कक्षा 6th से 8th लड़कियाँ के साथ करते हैं-
इसके बाद हमने एक माइंडफुलनेस एक्टिविटी की जिसका नाम था — इंद्रधनुष के रंग।इसमें लड़कियाँ को इंद्रधनुष के सात रंगों में से किसी एक रंग का नाम लेना था, फिर उस रंग की कोई वस्तु ढूंढ़कर उसे छूना और उसका नाम बताना था। जैसे ही मैंने शुरुआत की, सारी लड़कियाँ खड़ी हो गईं और बहुत उत्साह से हिस्सा लेने लगीं। स्कूल की मैडम भी वहाँ आकर देखने लगीं और उन्होंने भी बच्चों को बहुत सहयोग किया।
मजेदार गतिविधि की
पसंद और नापसंद वाला खेल। दो कोने बनाए गए — एक 'हाँ' वाला और एक 'ना' वाला।मैंने सवाल पूछे —"सुबह उठना पसंद है?" "डांस करना पसंद है?", "लड़ाई करना पसंद है?" जो लड़कियाँ पसंद करती थीं, वो 'हाँ' वाले कोने में जातीं और जो नहीं, वो 'ना' वाले में।
इस खेल से लड़कियाँ बहुत खुश हुईं और बार-बार बोलने लगें — "दीदी, और करवाईए ! बहुत मजा आ रहा है!"इसके बाद मैंने सबको कहा कि अब आप लोग कागज़ पर चित्र बनाइए — "जो चीज़ पसंद है, वो बनाओ और जो नहीं पसंद है, वो भी।
"एक लड़की बोली — "दीदी, मै चित्र बनाएंगे और लिखेंगे भी।"मैंने कहा —"बिलकुल! जो तुम्हें ठीक लगे, वैसे ही बनाई
तीन-तीन लड़की के समूह बनाए। सबने अपने चित्र दिखाए, एक-दूसरे की पसंद-नापसंद को समझा।जब मैंने पूछा कि इस गतिविधि को करके कैसा लग रहा है, तो एक लड़की ने बोली —
"दीदी, अब समझ में आया कि मुझे क्या पसंद है और क्या नहीं, और साथ ही दूसरों के बारे में भी जाना— अच्छा लगा, एक और बोली — "उत्साहित महसूस हुआ, प्रेरणा मिली।"
आखिरी में मैंने पूछा — "जो चीज़ आपको पसंद नहीं है, क्या आप चाहेंगी कि उसे पसंद में बदलें?" सभी लडकियाँ जोर से बोले "हाँ दीदी" एक लड़की बोली — "दीदी, मुझे खाना बनाना पसंद नहीं था, लेकिन अब मैं इसे पसंद करना चाहती हूँ।" इसी तरह सभी लडकियाँ बोली मै अपना ना पसंद को कॉपी में लिखेंगे, और पसंद में बदलेंगे,
मुझे ना पसंद है, उसके बारे में मम्मी को बतायेंगे और बोलेंगे आप मुझे मदद कीजियेगा इसे मै अपना पसंद में बदलूंगी।जैसे:- मुझे पढने का मन नहीं करता हैं,मुझे खाना बनाना पसंद नहीं है, मै सुबह जल्दी नहीं उठ पाती हूँ,
मेरा भी यहीं उदेश्य था, की लडकियाँ अपने पसंद के बारे में खुद से सोच पाए और समझ पाए। मुझे बहुत ख़ुशी मिली और मै अगली बार लडकियाँ के माता-पिता से मिलूंगी, और मै फिर से एक नया कहानी लायेंगे।मीना मंच के ज़रिए लडकियाँ ना सिर्फ़ खुद को बेहतर समझ पाईं, बल्कि एक-दूसरे से भी सीखने लगीं।आइए हम सब मिल कर मीना मंच करवाए।
पूनम कुमारी , बैच-11
एडू लीडर , गया