मै उस गॉव की लड़की हूँ, जिसने कभी सोचा भी नहीं था की शिक्षा एक माध्यम बन सकती है- खुद को जानने, समझने और समाज में बदलाव लाने का। लेकिन आई-सक्षम फैलोशिप ने मुझे यही अवसर दिया।
इन दो वर्षो में मैंने केवल शिक्षिका की भूमिका नहीं निभाई, बल्कि एक सुनने वाली साथी, सिखने वाली छात्रा, और नेतृत्व करने वाली दीदी के रूप में भी खुद को ढाला। बच्चो के साथ दिन के शुरुआत, मोहल्ला कक्षाओं में रचनात्मक गतिविधियाँ, और समुदाय के साथ सार्थक सवांद – ये मेरी प्रतिदिन की दिनचर्या का हिस्सा बन गए।
फेलोशिप के दौरान मैंने यह जाना की आत्मा-विश्लेषण और आत्मचिंतन कितने जरुरी हैं। “बढ़ते कदम” जैसे चिंतन-पत्रकों ने मुझे अपने विचारों को शव्द देने की कला सिखाई। जब मेरे साथी मेरी बातो को पढ़ते और सुझाव देते, तो लगता जैसे हम सब मिलकर एक-दुसरे को आगे बढ़ा रहे हैं।
मेरे गाँव में अब लोग मुझे सम्मान से ‘दीदी’ कहते है – वह दीदी जो सुनती है और साथ चलती है। आज मै पुरे विश्वास से कह सकती हूँ की यह यात्रा केवल शिक्षण की नहीं, बल्कि एक सशक्त स्त्री बनने की यात्रा थी।
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