10 तारीख को मेरे पति ने थोड़े परेशान होकर मुझसे बात की। उन्होंने बताया कि उनका 2 लाख रुपये का टारगेट अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। मैंने उन्हें ध्यान से सुना और कहा, “चलिए कल एक घंटा बैठते हैं, सिर्फ आपके टारगेट पर बात करेंगे।”
अगले दिन शाम 7 बजे हम दोनों शांत मन से बैठे। मैंने उनसे पूछा —
“सबसे बड़ी चुनौती क्या है?”
उन्होंने कहा, “दवाइयों की बिक्री नहीं हो रही। डॉक्टरों से बात नहीं बन पा रही है।”
मैंने उन्हें खुलकर बोलने का मौका दिया, उनके जवाबों को गहराई से सुना और फिर साथ बैठकर सोचा कि आगे क्या किया जा सकता है।
“सबसे बड़ी चुनौती क्या है?”
उन्होंने कहा, “दवाइयों की बिक्री नहीं हो रही। डॉक्टरों से बात नहीं बन पा रही है।”
मैंने उन्हें खुलकर बोलने का मौका दिया, उनके जवाबों को गहराई से सुना और फिर साथ बैठकर सोचा कि आगे क्या किया जा सकता है।
डॉक्टरों से समय पर मिलना होगा,
उनसे अच्छे से संवाद करना होगा,
जरूरत पड़ी तो सीनियर की मदद लेनी होगी।
उनसे अच्छे से संवाद करना होगा,
जरूरत पड़ी तो सीनियर की मदद लेनी होगी।
हमने सिर्फ एक घंटे की बडी टॉक की, लेकिन उस बातचीत का असर ऐसा हुआ कि 22 मई तक उनका टारगेट 3 लाख पार कर गया। कुछ दिन बाद उन्होंने मुस्कराते हुए कहा —
"तुम्हारी वजह से मेरा टारगेट पूरा हुआ... मुझे तुम पर गर्व है।"
यह सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने उस दिन महसूस किया कि कभी-कभी किसी को बस सुन लेना, उसकी बात समझ लेना ही सबसे बड़ी मदद होती है।
यह मेरा छोटा-सा बडी टॉक अनुभव था, लेकिन मेरे लिए सीख और गर्व से भरा एक बड़ा पल बन गया।
यह सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने उस दिन महसूस किया कि कभी-कभी किसी को बस सुन लेना, उसकी बात समझ लेना ही सबसे बड़ी मदद होती है।
यह मेरा छोटा-सा बडी टॉक अनुभव था, लेकिन मेरे लिए सीख और गर्व से भरा एक बड़ा पल बन गया।
पिंकी कुमारी
बैच 10A, जमुई
बैच 10A, जमुई
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