Monday, June 2, 2025

"नई राह की ओर: एक बेटी के सपनों को फिर से जगाने की कोशिश”

आज मैं गुड़िया के घर गई थी। पिछली मुलाकात में हमें पता चला था कि गुड़िया की बड़ी बहन ने 8वीं तक पढ़ाई की है, लेकिन आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई।

इसलिए हमने तय किया कि इस बार उनसे बैठकर ठीक से बात की जाए और उनकी चिंताओं को समझने की कोशिश की जाए।
जब हमने उनसे पूछा कि "आप आगे पढ़ाई क्यों नहीं करना चाहतीं?", तो उन्होंने बड़ी सादगी से जवाब दिया—
"मेरी उम्र की सभी सहेलियों की शादी हो चुकी है, और अब मुझे अकेले पढ़ने जाने में अच्छा नहीं लगता।"

हमने उन्हें बहुत प्यार से समझाया —

"ज़िंदगी में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जहाँ हमें अकेले ही कदम बढ़ाने पड़ते हैं।"
जैसे हम अकेले इस दुनिया में आते हैं, और अकेले ही एक दिन चले भी जाते हैं,
उसी तरह कुछ फैसले भी ऐसे होते हैं, जिन्हें हमें अपने दम पर लेना होता है — बिना किसी का इंतज़ार किए। हमने कहा, "हर रास्ते पर भीड़ नहीं चलती बहन, कुछ रास्ते अकेले तय करने पड़ते हैं — और वही सबसे मजबूत बना देते हैं।"

हमने उन्हें अपने और प्रियंका दीदी के जीवन से एक छोटी सी अनुभव बताई।
हमने कहा,
"पहले हम भी एक-दूसरे को नहीं जानते थे। लेकिन किसी एक ने पहल की, और आज हमारे बीच इतना अपनापन है कि लगता ही नहीं कभी अजनबी थे।"
फिर मुस्कराकर जोड़ा,
"अगर आप भी एक बार घर से बाहर निकलेंगी और पढ़ाई शुरू करेंगी, तो यकीन मानिए — नए दोस्त, नई बातें और एक नई दुनिया आपका इंतज़ार कर रही है।"
"कभी-कभी बस एक कदम ही काफी होता है जुड़ने के लिए — जैसे हम जुड़ गए।"
उन्होंने फिर कहा,
“अब पढ़ाई कर के क्या होगा? मम्मी तो मेरा रिश्ता देखने में लगी हैं।”
इस पर प्रियंका दीदी ने बड़ी सादगी से जवाब दिया,
“शादी के बाद क्या लड़कियां पढ़ाई नहीं करतीं? मैं खुद शादी के बाद ग्रेजुएशन की और i-सक्षम से जुड़ कर आपके सामने हूं।”
हमने उन्हें बताया कि
शिक्षा सिर्फ नौकरी पाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह जीवन को बेहतर समझने का तरीका है।
शिक्षा हमें आत्मनिर्भर बनाती है, सोचने की शक्ति देती है, और समाज में अपनी पहचान बनाने में मदद करती है।
गुड़िया की मम्मी हमारी बातों से बहुत प्रभावित हुईं और अपनी बेटी से बोलीं,
“अब एडमिशन करवा दूं? ”बेटी ने थोड़ी नाराजगी में कहा,
“जब करवाना था तब नहीं करवाया, अब क्या फायदा? मम्मी ने भावुक होकर जवाब दिया, “जब बच्चे सवाल पूछते हैं और मैं जवाब नहीं दे पाती, तो बहुत दुख होता है। इसलिए मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी पढ़े और ऐसा खालीपन न महसूस करे।”

हमने उनकी हर चिंता को धैर्य से सुना और कहा, “अब 9वीं में नामांकन हो रहा है। अगर आप पढ़ाई जारी रखेंगी तो आपके परिवार और हमें भी गर्व होगा।”हमारी बातों का असर हुआ, और उन्होंने कहा,
“ठीक है दी, मैं दो-तीन दिन में एडमिशन करवाने की कोशिश करूंगी।”यह बातचीत हमारे लिए भी बहुत प्रेरणादायक रही। हमने जाना कि सच्चे मन से और धैर्य से समझाने पर बदलाव जरूर आता है।

नाजिया , टीम 

मुंगेर ।







No comments:

Post a Comment