Friday, August 22, 2025

गौरव की बदलती दुनिया: एक कोशिश

आटिज्म या स्लो लर्निंग का असर भारतीय बच्चों में प्रायः देखने को मिल जाते हैं,  लगभग हर १००० में १ भारतीय बच्चा इससे प्रभावित मिलता है |१  भारत जैसे विकास-सील देशों में न तो इनके लिए कोई खास प्रावधान देखने को तो नहीं मिलता, हाँ देश के कुछ महानगरों में शायद कुछ गिने चुने गैर सरकारी संसथान हो जिनके पास उपयुक्त व्यवस्था की उम्मीद की जा सकती है | 

ऐसे में बिहार जैसे राज्य का पिछड़ा होना, आटिज्म के मरीज़ों के लिए श्राप के कम कुछ नहीं | बिहार के ग्रामीण इलाकों में आटिज्म को पागलपन से भी जोड़ का देखा जाता है | बचपन में सही देख रेख की कमी ऑटिस्टिक बच्चों में सुधार की गुंजाईश काफी कम कर देता है |

मध्य विधालय प्रह्लादपुर स्कूल, के दूसरी कक्षा का छात्र - गौरव की यही कहानी होती पर हमारी एडु-लीडर सविता के अटूट विश्वास और अथक प्रयासों से गौरव की कहानी में बदलाव साफ़ दिखता है | 

सविता - प्रह्लादपुर गांव की रहने वाली एक साधारण सी लड़की है जो आई- सक्षम में एक एडु-लीडर के तौर पर काम करती हैं, अपने काम के दौरान सविता की मुलाकात गौरव से हुई जो बाकी बच्चों से अलग-थलग और डरा-डरा सा रहता था। 

सविता ने गौरव में कुछ खास देखा। उन्होंने तय किया कि वे उसे समझने और उसका आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास करेंगी। उन्होंने गौरव को बाकी बच्चों से जोड़ने के लिए खेल, चित्र-पठन, और ज़मीन पर अक्षर लिखने जैसे रचनात्मक तरीकों का इस्तेमाल किया।

धीरे-धीरे गौरव खेलों में रुचि लेने लगा, और अक्षरों को पहचानने लगा। कुछ महीनों बाद, वह खुद से उत्तर देने लगा, कहानियाँ सुनाने के लिए आगे आने लगा, और कक्षा में भागीदारी दिखाने लगा।

गौरव की यह प्रगति सिर्फ पढ़ाई में नहीं थी, बल्कि व्यवहार और आत्मविश्वास में भी दिखने लगी। सविता ने गौरव की पसंद-नापसंद जानकर, उन्हें कक्षा गतिविधियों में शामिल किया। धीरे-धीरे वह भी बाकी बच्चों जैसा महसूस करने लगा।

स्कूल के सभी सदस्यों ने भी गौरव में आये इस बदलाव की भरपूर सराहना भी की और साथ भी दिया|अभिवावक भी गौरव को सही इलाज और स्कूल की व्यवस्था करने में जुट गए है|

ये सब केवल इसलिए संभव हो पाया है क्यूंकि सविता ने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी - इसलिए सही कहते है कि - ज़िद जरुरी होता है |

सविता 
बैच 11
मुजफ्फरपुर  


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