आर्थिक स्वतंत्रता या खतरा
महिलाओं की बचत को अक्सर उनके आर्थिक स्वतंत्र होने के खतरे के रूप में देखा जाता है, क्योंकि ऐसी सोच में माना जाता है कि अगर महिला के पास अपना पैसा और निर्णय लेने का अधिकार होगा तो वह पारंपरिक निर्भरता से बाहर निकल सकती है। इसी कारण कई बार महिलाओं की बचत पर नियंत्रण पुरुषों के हाथ में रखा जाता है और इसे केवल घर की जरूरतों तक सीमित कर दिया जाता है।
कई महिलाएं इस माहौल में अपने खर्च या आपात स्थिति के लिए गुप्त रूप से पैसे बचाती हैं, जो एक ओर पितृसत्तात्मक दबाव का नतीजा है, तो दूसरी ओर संकट के समय उनके लिए सुरक्षा कवच भी बन जाता है।
ऐसी ही एक कहानी लेकर आई है -- सुमन, जो अपने पढाई के लिए २०,००० रूपय बचाई।
उन्होंने अक्सर ये पाया की जब भी उन्हें किसी चीज की जरुरत होती तो उन्हें अपने पिता - भाई से पैसे मांगना पड़ता था ।
पिता जी कभी देने से मना करते या देने से पहले सुमन से कई सावलें करते। ये बाते सुमन को बुरी तो नहीं लगती लेकिन कही - न - कही ये बात सुमन की आत्म - निर्भरता को घटा रही थी।
सुमन ने मन ही मन एक अपने पैसो की बचत करने का लक्ष्य लिया। शुरुआत में सुमन को बहुत चुनौती हुआ क्योकि वो अपने पैसो को खर्च कर लेती थी लेकिन जब उन्हें जरुरत के कामो के लिए किसी और से पैसे मांगने पड़ने लगे तो उन्हें यह महसूस हुआ की पैसे बचाना कितना आवश्यक है?
परंतु धीरे धीरे - सुमन ने अपने फ़ेलोशिप के स्टाइपेन्ड से १ साल में २०००० रूपय जमा किये। अब सुमन आत्म - निर्भर रूप से अपने कार्यो को कर पा रही है।
बैच 11
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