सिरनिया गाँव, हरियाली से भरा हुआ एक सुंदर गाँव है लेकिन चुनौतियों से जूझता इलाका है । बरसात के बाद रास्ते कीचड़ में बदल जाते हैं, और चलना तक एक कठिन यात्रा बन जाता है। ऐसे में एक लड़की, जिसका नाम आशा है नाम के जैसा ही उसका काम, उम्मीद बाँटना।
आशा एक एडु लीडर है, जो गाँव की किशोरियों तक शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता का संदेश लेकर पहुँचती है। आज वह एक विशेष किशोरी के घर जा रही थी। लड़की स्कूल छोड़ चुकी थी, घर की जिम्मेदारियों में फँस गई थी और धीरे-धीरे खुद से और दुनिया से कटती जा रही थी। आशा ने सोचा, "अगर मैं नहीं पहुँची, तो वह शायद फिर कभी बाहर न आए..."
लेकिन रास्ता आसान नहीं था।
कीचड़ से लथपथ गलियाँ, पानी से भरे गड्ढे, फिसलन से भरे मोड़... एक ओर घना पेड़ था और दूसरी ओर कीचड़ से सनी ज़मीन। लेकिन आशा रुकी नहीं। उसने अपनी चप्पल सँभाली, दुपट्टा सिर पर कस कर बाँधा और आगे बढ़ गई। हर कदम में उसका साहस बोल रहा था, "मुझे जाना है। मुझे पहुँचना है। शायद मेरी एक बातचीत उस किशोरी की ज़िंदगी बदल दे।"
गाँव के लोग देख रहे थे कोई ताना मारता, कोई मुस्कुराता, कोई चुपचाप नज़रें झुका लेता लेकिन आशा को फर्क नहीं पड़ा । वह जानती थी, "अगर एक लड़की भी आत्मनिर्भर बनती है, तो पूरा समाज बदलता है।"
उसने खुद से कहा : "ये कीचड़ मेरे पैरों में है, लेकिन मेरा रास्ता साफ है। मैं रुकूँगी नहीं।"
उस दिन जब वह किशोरी के घर पहुँची, दरवाज़े पर दस्तक दी, और मुस्कुराकर बोली — "मैं तुम्हें ढूँढते हुए आई हूँ। क्या हम थोड़ी बात कर सकते हैं?"
उसके पैर कीचड़ से सने थे, लेकिन आँखों में चमक थी। और यहीं से एक नई कहानी शुरू हुई जहाँ एक आशा, सिर्फ नाम की नहीं, बल्कि असली ज़िंदगी की बदलने वाली बन गई।
बैच 12
बेगूसराय
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