“दीदी, पहले हम दूसरों के बारे में लिखते थे... आज पहली बार खुद को लिखा है।”
यह बात मेरी किशोरी ने तब कही, जब मैंने उन्हें खुद को एक चिट्ठी लिखने को कहा। यह एक साधारण वाक्य नहीं था, बल्कि मेरे 11वें सत्र की सबसे बड़ी सफलता थी। मेरा नाम भाग्यावंती कुमारी है और मैं i-Saksham की एडू-लीडर हूँ।
समस्या यह थी कि मेरी किशोरियाँ बाहर की दुनिया को तो जानती थीं, लेकिन खुद को नहीं जानती थीं। वे आत्मविश्वास से बोल नहीं पाती थीं और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में हिचकिचाती थीं। मुझे उन्हें यह सिखाना था कि सबसे ज़रूरी रिश्ता खुद से होता है।
मैंने सत्र की शुरुआत 'मंडला आर्ट' नामक एक गतिविधि से की। जब लड़कियों ने पूछा कि 'मंडला' क्या होता है, तो मैंने समझाया कि यह रंगोली या मेंहदी की तरह एक गोलाकार कला है, जो उनके मन के रंगों और भावनाओं को व्यक्त करती है। मैंने उन्हें प्रेरित किया कि वे अपने मन से डिज़ाइन बनाएं।
कुछ ही मिनटों में, हर लड़की अपने रंगों में खो गई। यह सिर्फ़ कला नहीं थी, यह खुद को व्यक्त करने का एक तरीका था।
कला के बाद, मैंने उनसे पूछा कि उन्होंने पिछले सत्रों में क्या सीखा। स्वीटी बोली कि अब वह बोलने से नहीं डरती, और अनुष्का ने कहा कि उसने अपनी पसंद-नापसंद को पहचानना सीखा।
तब मैंने सबसे महत्वपूर्ण कदम उठाया। मैंने उन्हें कागज दिया और कहा, "अब आप सब खुद को एक चिट्ठी लिखिए।" मैंने उन्हें दिशा दी कि वे अपने हाल पूछें, अपनी कमजोरियाँ पहचानें, और अगले तीन महीनों में खुद को कैसे बेहतर बनाएँगी—यह सब लिखें।
जब मैंने कमरे में हल्का-सा गीत चलाया, तो सब गहरी सोच में डूब गए। कुछ देर बाद एक लड़की ने यह बात कही कि "पहले हम दूसरों के बारे में लिखते थे... आज पहली बार खुद को लिखा है।”
यह मेरे लिए गर्व का क्षण था। मैंने सीखा कि एक लीडर का काम किसी को कोई विषय सिखाना नहीं होता, बल्कि उसे 'स्वयं' से मिलवाना होता है।
लेखिका के बारे में:
नाम: भाग्यावंती कुमारी
परिचय: भाग्यावंती बेगूसराय की रहने वाली हैं और i-Saksham बैच-12 की एडू-लीडर हैं।
लक्ष्य: मैं i-Saksham से जुड़कर अपने काम और पहचान को बेहतर बनाना चाहती हूँ और समाज में अपनी तरह की लड़कियों के लिए प्रेरणा बनाना चाहती हूँ।
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