मैं एक दिन बैच-7 की फ़ेलो दुलारी कुमारी के विद्यालय में कक्षा अवलोकन के लिए गयी थी। दुलारी, प्राथमिक विद्यालय दनियालपुर, प्रखंड-धरहरा में पढ़ा रही हैं और जिस तरीके से वो आगे बढ़ रही हैं वो काबिले तारीफ है।
बच्चों को मौका देना, सत्र के दौरान विभिन्न तरह का टीचिंग लर्निंग मटेरियल (TLM) का उपयोग करना और भी अन्य साधनों का उपयोग करना। मैं एक बच्चे की कहानी आप सभी के साथ साझा कर रही हूँ। छविला कुमार के साथ उसका छोटा भाई जो केवल पाँच साल का है, वो पढ़ने आता है। बच्चों का दोपहर के भोजन का समय हुआ और मैं दुलारी के साथ डीब्रीफ करने के लिए बैठ गयी और हमनें डीब्रीफ किया।
कुछ समय बाद बच्चे वापस विद्यालय आए। मैंने देखा कि कुछ बच्चे अपनी किताबों के साथ खेल रहे थे पर छविला का छोटा भाई नीचे लगे थ्री-डायमेंशन चार्ट पर उभरें अक्षर पर अपनी उंगली को चला रहा था। जब एक लाइन खत्म हो जाति तो पुनः उसी को शुरू करता। यह एक बहुत बड़ा बदलाव दिखा कि छोटे-छोटे बच्चे पढ़ाई की दुनिया से जुड़ पा रहें हैं।
पर इसी बात को देखकर मेरे मन में एक सवाल भी आया कि क्या कक्षा में लर्निंग मटेरियल और चार्ट-पेपर इतनी ऊँचाई पर लगानी चाहिए जितनी से वो बच्चों के हाथ आ जाये या दीवार पर ऊपर लगानी चाहिए जिससे की उसे कोई बच्चा छू ना सके?
आप क्या सोचतें हैं इस बारे में, मेरे साथ व्यक्तिगत रूप में भी साझा कर सकते हैं।
दूसरी विजिट में मैं मैंने देखा की दुलारी ने बच्चों को कंकड़ (पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े) से 'आ' अक्षर को लिखने को कहा। छविला कुमार ने ‘आ’ को लिखना शुरू किया और लिखते-लिखते आधे में रुक गया और अपने ऊँगली के इशारे से हवा में आ लिखने लगा। मैंने दुलारी से पूछना सही समझा कि आपने हवा में लिखने कहा या पत्थरों की सहायता से कहा?
(छविला कुमार, वर्ग-एक का छात्र, कंकडों से ‘आ ‘की आकृति बनाते हुए)
बच्चों ने लगभग 1 मिनट तक याद किया। मैंने देखा कि हवा में तो वो अपनी हाथों से लिख पा रहा था फिर जैसे ही हाथ को पत्थर पर लाता वैसे ही दूसरी हाथ से सिर को ठोकता और सोचने लग जाता!
मैं चुपचाप देख रही थी। आखिर में आ को लिख ही लिया और मुस्कुराया। मुझे यह देखकर बहुत अच्छा महसूस हुआ।
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