मैं पिछले दो महीने से अभी तक का अनुभव साझा कर रही हूँ। मैं जुलाई महीने के अंत में नेहा के घर फेलोशिप के बारे में जानकारी देनें गई थी।
मैंने नेहा और उसकी माता जी को एक घंटे तक समझाया। उस समय तो वो दोनों ही “हाँ” बोली। फिर दूसरे दिन जब मैंने उन्हें परीक्षा देनें के लिए जमालपुर जाने की बात की तो नेहा बोली- नहीं, मुझे नहीं करनी है यह फेलोशिप। इन सब चीजों में मेरी दिलचस्पी नहीं है।
मैं अगले दिन फिर उनके घर गयी, उनकी माता जी समझ गयी। (कि मैं क्यों आयी हूँ) परन्तु नेहा ने फिर से कहा कि उन्हें नहीं करना है।
नेहा अब फ़ेलोशिप में बैच 7 की फ़ेलो हैं। ये मध्य विद्यालय गोविंदपुर, जमालपुर में पढ़ाती हैं। अब यही नेहा हमेशा बोलती है कि मुझे विद्यालय में पढ़ा कर अच्छा लग रहा है। जिस दिन नहीं पढ़ाती हूँ, उस दिन मन नहीं लगता है। मुझे लगता था कि मुझ से यह सब नहीं होगा लेकिन मैं कर पा रही हूँ। दिनांक एक अक्टूबर की बात है, फ़ेलोशिप का साप्ताहिक सत्र होना था और उसको पता नहीं था। उसी दिन सुबह-सुबह ही पता चला और समय से तैयार होकर, ट्रैन पकड़ कर सत्र में सम्मिलित होने आ गयी।
ऐसी ही कुछ बदलाव जो विद्यालय में देखा गया। ज़ब शुरुआत में नेहा बच्चों का प्रोफाइल लेने के लिए विद्यालय जाती तो शिक्षक डाट कर बोलते थे। लेकिन ज़ब नेहा ने विद्यालय में पढ़ाना शुरू किया तो वही शिक्षक अब तारीफ करते हैं। विद्यालय के अध्यापक नेहा से बोलतें हैं कि तुम बहुत ही अच्छे से बच्चों को पढ़ाती हो। ज़ब i-सक्षम संस्था से सर आएंगे तो हम उनको बताएँगे। अब शिक्षक अच्छे से बात करते है।
सोनम, i-सक्षम संस्था की टीम सदस्य हैं और बिहार के मुंगेर जिले में रहती हैं।
No comments:
Post a Comment