Friday, September 6, 2024

अपने परिवार और भविष्य के लिए मेरी योजना- निशा

नमस्ते साथियों, 

मैं, पिछले एक वर्ष से क्या कर रही हूँ और आने वाले तीन-चार वर्षों में अपने आप को कहाँ देखना चाहूँगी- इन विषयों पर अपनी वर्तमान की योजना और मनोभाव साझा कर रही हूँ।

साथियों, मैं एक मिडिल क्लास (middle class) परिवार से हूँ। घर में मेरे माता-पिता के अलावा मेरे दो छोटे भाई और अंकल हैं, कुल मिलाकर घर में 10 लोग हैं। कमाने वाले सिर्फ मेरे पापा ही हैं। दोनों भाई अभी पढ़ाई कर रहे हैं। पापा, जम्मू-कश्मीर में एक गैर-सरकारी जॉब में कार्यरत हैं। अंकल की तबियत खराब रहने से वो कोई जॉब नहीं करते हैं। मैं करीब एक वर्ष से ज्यादा समय से i-सक्षम के साथ जुड़ी हूँ। 

मुझे i-सक्षम के सहयोग से कुछ आर्थिक मदद भी मिलती है और बहुत सारे ऐसे कौशल भी सीखने को मिलते हैं जो मेरे लिए सीखना बहुत आवश्यक है। यहाँ पर सिखाई जाने वाली चीजें मुझे आगे बढ़ने में मदद कर रही हैं। जैसे- आत्मनिर्भर बनना, बेझिझक किसी से प्रश्न करना, स्वयं के साथ कुछ गलत हो उससे पहले आवाज़ उठाना आदि। मैंने अपने मम्मी-पापा को भी इतना विश्वास दिला दिया है कि अकेले घर से बाहर आने-जाने पर भी उनके मन में मेरे लिए कोई नकारात्मक विचार ना आये और ना ही कोई उन्हें मेरे विरुद्ध भड़का सके।

मुझे विश्वास है कि जैसे ही मेरे अंकल की तबियत ठीक हो जायेगी तो हमारी आर्थिक दशा थोड़ी सुधरेगी। अभी तो बहुत सारा रुपया उनकी दवाइयों में ही लग जाता है। मैं आगे आने वाले तीन-चार वर्षों में खुद को परिवार में एक अहम भूमिका के रूप में देख रही हूँ। अपने कार्यक्षेत्र में भी मुझे अपनी पहचान बनानी है। मैं सरकारी, गैर-सरकारी किसी भी क्षेत्र में अपनी सेवा देने के लिए तैयार हूँ। मैंने घर में ही बहुत स्ट्रगल (struggle) देखा है। मैं अपनी कम्युनिटी की लड़कियों के लिए एक रोल-मॉडल बनना चाहती हूँ, उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहती हूँ। मैं उन सभी लड़कियों को बताना चाहती हूँ कि आपको यदि कुछ आगे बढ़ा सकता है तो वो है सिर्फ और सिर्फ मेहनत और कड़ी मेहनत! बिना मेहनत के कुछ भी संभव नहीं है। आप जितना मेहनत करेंगे उतना ही आगे बढ़ेंगे।


एक चेतना गीत की पंक्तियाँ भी हैं: 

कड़ी मेहनत से ही इन्सान का चेहरा चमकता है, 

कि सोना आग में तप कर ही कुंदन सा दमकता है 

करें वैसे हीं मेहनत....

सवाँरे रूप भारत का...


कि जैसे चाँद आकर चाँदनी के फूल बरसाता,

के जैसे मेघ आ करके घड़ों में नीर भर जाता

करें वैसे हीं हम मेहनत....

सवाँरे रूप भारत का...

निशा कुमारी 

बैच 10, गया 


अब पापा ने शादी के लिए दबाव बनाना छोड़ दिया है- रूचि

नमस्ते साथियों, 

आज मैं आप सभी के साथ मुंगेर के फरदा गाँव की रहने वाली ‘रूचि’ के बारे में कुछ साझा करना चाहती हूँ। रूचि, बहुत ही शर्मीली और खुशनुमा लड़की हैं जो वर्तमान में i-सक्षम संस्था में बैच-दस की एडु-लीडर हैं। उनकी पढ़ाई में विशेष रूचि है। 


रूचि के घर में रूचि के अलावा उनके पापा, दो भाई और एक बड़ी बहन है। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और पापा शहर में काम करके परिवार का पालन-पोषण करते हैं।


जब रूचि बारहवीं कक्षा (2022) में थी, तब उनकी माँ का देहावसान हो गया। उनकी माँ का गुज़र जाना उनके लिए असहनीय और भयावह था। अपने अंधेरे भविष्य की कल्पना मात्र से रुचि के रोंगटे खड़े हो जाते और आत्मा थर्रा उठती थी। ऐसी विकट परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति के लिए खुद को संभाल पाना मुश्किल ही होता है। रूचि ने किसी तरह अपना साहस कायम रखा और पढाई को जीवन जीने का हथियार बनाते हुए, बारहवीं की परीक्षा दी। वो प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण भी हुई। 


रुचि की माँ के गुजर जाने के बाद पूरे घर की जिम्मेवारी रुचि पर आ गई। उन्होंने अपने छोटे भाइयों और घर की देखभाल के साथ अपनी पढ़ाई भी ज़ारी रखी। रूचि वर्तमान में (2024) बी. ए. पार्ट-II की पढ़ाई कर रही हैं। 


घर में बिन माँ की अकेली लड़की होने के कारण समाज, परिवार और सगे-सम्बन्धियों का रूचि की शादी को लेकर दबाव बनाना शुरू हो गया था। लोग तरह-तरह से यही बात रूचि के और उनके पिता जी के सामने रखते थे। जैसे- घर में बिना माँ के लड़की कैसे रहेगी? कौन देखेगा? कैसे सबकुछ हो पाएगा? कुछ हो गया तो? इन्हीं सब बातों का रूचि के मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा। जिसके कारण रुचि हमेशा परेशान रहने लगी और अन्दर ही अन्दर रोती भी रहती थी। 


एक दिन रुचि ने सोचा कि अब खुद के लिए निर्णय लेना ही पड़ेगा। उसने मन बनाया कि मैं अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए, अपनी आगे की पढ़ाई को लेकर पापा से खुद बात करूंगी। उनके सामने बात रखूंगी कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है! क्योंकि मेरा मन पढाई में लगता है, मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी है, जिसके लिए मुझे दो साल का समय चाहिए ताकि मैं अपने अपने पैरों पर खड़ी हो सकूँ। 


रुचि को इस बात का डर भी था कि मेरी बात तो घर में सुनी नहीं जाती है। मैं पापा के सामने कैसे बोलूँगी? यह सब मन में लेकर रूचि ने ठाना कि यदि अब मैं खुद के हक़ के लिए नहीं बोली तो शायद मैं हमेशा के लिए अपने अधिकारों से वंचित रह जाऊँगी। मुझे हमेशा ही दबाया जाएगा।


कुछ दिनों बाद जब रूचि के पापा शहर से वापस आये तो उसने अपने मन की बात पापा के सामने रखी। पापा उसकी बातों को सुनने से भी मना कर रहे थे। मानना तो बहुत दूर की बात थी। रूचि ने बार-बार अनेकों तरीकों से अपनी बात पापा को समझाने की कोशिश की। 

वो अपने पापा से बोली कि “मैं शादी तो करुँगी पापा, परन्तु आप मुझे दो वर्ष का समय दीजिये। ताकि मैं खुद सक्षम हो पाऊं। और शादी के बाद यह भी हो सकता है कि मुझे पढ़ने ही ना दिया जाए। मेरे छोटे भाइयों, इस घर को देखने का मौका तक भी ना दिया जाए। यदि ऐसा हुआ तो सबकुछ बिखर भी सकता है”! 

रूचि ने यह भी बोला कि, “पापा यदि आप मुझे अभी समय देकर सक्षम होने देंगे तो मैं भविष्य में अपने भाइयों के लिए भी कुछ अच्छा कर पाऊँगी”।

आखिरकार रूचि की ज़िद रंग लायी। उनके पापा ने उनकी बात समझी और पढ़ाई करने की अनुमति दे दी। 

अब यदि उनके पापा से कोई गाँव-समाज का व्यक्ति इस बात को लेकर कुछ बोलता भी है तो पापा खुद उत्तर देतें हैं कि बड़ी बेटी की शादी कर देने से क्या ही हो गया? वो हमारे घर आकर यहाँ की देख-रेख तो नहीं कर सकती है ना अब! 

हालाँकि रूचि की बड़ी बहन उनसे नाराज़ है और फ़ोन पर बात तक नहीं कर रही हैं। कारण साधारण सा है- वो चाहती हैं कि रूचि चुपचाप अपनी पढ़ाई करने की इच्छा को मारकर शादी के लिए हाँ करदे। रूचि को विश्वास है कि उनकी दीदी भी एक दिन मान जायेंगी और उनका सहयोग करेंगीं। फिलहाल रूचि के घर में शादी को लेकर कोई दबाव नहीं हैं और रूचि मन लगाकर अपनी पढ़ाई कर पा रही है।

साक्षी,

बडी, मुंगेर


फ़ेलोशिप करने के उपरांत मैं अधिक संवेदनशील, आत्मविश्वासी और एक ज़िम्मेदार नागरिक बनी हूँ- भाग्यश्री

नमस्तें साथियों, 

आज मैं आपलोगों के साथ स्वयं के बारे में कुछ बातें साझा कर रही हूँ। मैं i-सक्षम संस्था में बैच दस की एडु-लीडर हूँ। मैं बेगूसराय के तेघरा ब्लॉक में रहती हूँ। i-सक्षम में जुड़ने के बाद मैंने कई सारे बदलाव महसूस किये हैं, जो इस प्रकार हैं। 


  • शुरू-शुरू में मुझे नए लोगो से बात करने में बहुत संकोच और असहजता होती थी। मैं बिना कुछ सोचे समझे बोल दिया करती थी। ऐसा कह सकते हैं कि मैं सही से बात नहीं कर पाती थी। मैंने फ़ेलोशिप के सेशंस (sessions) अटेंड (attend) करते समय पाया कि अब मैं अपनी बात दूसरों के सामने रखने लगी हूँ। मेरे बात करने के तरीके में भी बदलाव आया है। 

  • लोगो के साथ सहजता से बात करने के लिए मैंने विभिन्न तरीकों को अपनाया और अपने विचारों को स्पष्ट और संक्षिप्त तरीके से प्रस्तुत करना सीखा।

  • पहले मैं अकेले कहीं जाने से कतराती थी। अधिकतर समय मेरे घरवाले (भाई या पापा) ही मेरे साथ जाते थे। अब मेरे लिए अकेले बाहर जाना भी आनंदमय अनुभव होता है। मुझे अपने बारे में यह भी पता चला कि मुझे नयी जगहों की खोज करना स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का एहसास कराती है।

  • पहले मुझे प्रत्येक छोटी बात पर गुस्सा आता था। बढ़ते कदम में छोटे-छोटे गोल्स (goals) बनाकर, क्लस्टर मीटिंग में प्रस्तुत करने से मुझे लाभ हुआ। मेरे फेलो (fellow) साथियों के द्वारा दिए गए परामर्श, फीडबैक (feedback), योग, ध्यान और स्व-विश्लेषण की मदद से मैंने अपने गुस्से को नियंत्रित करना सीखा। इससे मुझे ना सिर्फ मानसिक शांति मिली बल्कि मैंने खुद के व्यव्हार में भी सुधार किया। 


दूसरों को समझने का प्रयास करना और उनकी भावनाओं को समझना मेरे लिए अब बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। सहानुभूति और समझ वाला सेशन (session), मेरे व्यक्तिगत और पेशेवर रिश्तों को मजबूत करने में सहायक रहा। खुद भी अब लोगो को समझने का प्रयास करती हूँ, और सामने वालों की बातों को ध्यान से सुनती भी हूँ। 

कहते भी हैं ना कि, “किसी की बात को ध्यान से सुनना, उनके लिए सबसे से बड़ा तोहफा होता है”। 


मेरे भीतर आये सभी बदलावों और मेरी खूबियों को पहचानने में मेरी मदद करने का श्रेय मैं i-सक्षम की टीम को देना चाहती हूँ। मेरी फ़ेलोशिप यात्रा ने मुझे पहले से अधिक संवेदनशील, आत्मविश्वासी और एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में उभारा है। 

मैंने अपनी खुद की पहचान भी बनायी। मैं बच्चों, विद्यालय और समाज से भी जुड़ पायी। यह कार्य करने में मुझे मेरे फेलो साथियों और टीम मेम्बेर्स ने कभी मित्र बनकर, तो कभी भाई-बहन बनकर मेरा सहयोग किया। इसके लिए मैं आप सभी का आभार व्यक्त करती हूँ। 


भाग्य श्री,

बैच-10, बेगूसराय 


Wednesday, September 4, 2024

विद्यालय परिवार को सक्षम किशोरी कार्यक्रम से अवगत कराया- अनन्या

 

नमस्ते साथियों,

मैंने फ़ेलोशिप ख़त्म होने के कारण अपने विद्यालय- मध्य विद्यालय सोनपे में जाकर सभी शिक्षकों व प्रधानाध्यापक से मिलने का निर्णय लिया। जब मैं विद्यालय पहुंची तो सभी शिक्षक मेरा हाल-चाल पूछ रहे थे। मैं अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री सुधांशु शेखर सिंह जी से और सारे शिक्षकों से मिली।

सभी शिक्षक आस्था (मेरे साथ की फेलो) को भी खोज रहे थे। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि जैसे ही आस्था को समय मिलेगा तो वो सभी से विद्यालय मिलने आएगी।

मैंने सभी शिक्षकों को “सक्षम किशोरी कार्यक्रम” के बारे में बताया शिक्षकों के कुछ प्रश्न भी आ रहे थे। उनके सारे प्रश्नों का उत्तर मैं दे पायी। सभी ने कार्यक्रम को सराहा और कहा कि इससे समाज की लडकियाँ आगे बढ़ेंगी।

सक्षम किशोरी कार्यक्रम- किशोरियों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से संचालित एक पहल है। इस कार्यक्रम के तहत, 11-19 वर्ष की किशोरियों का समूहीकरण करके उनके जीवन कौशल को बेहतर करने के लिए सत्र आयोजित किए जाते हैं। इसके साथ ही उनके समुदाय में उनके समर्थन के लिए माहौल बनाना भी एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। कार्यक्रम किशोरियों को आत्मनिर्भर बनने और समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए प्रेरित करता है

मैंने अपने आज के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्रधानाध्यापक से नौवीं और दसवीं कक्षा की छात्राओं से मिलने की अनुमति माँगीं। सर ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर देते हुए कहा कि आपको पूछने की क्या आवश्यकता है?

आप जाइये, मिलने। 

इतने में ही मुझे मेरी कक्षा के बच्चों ने देख लिया और दीदी-दीदी बोलते हुए मेरे पास आ गए। मैं कक्षा में गई तो सारे बच्चों के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। सबके पास मुझे बताने के लिए बहुत सारी बातें थी। 

आपको बहुत मिस करते हैं, दीदी।

जानते हैं दीदी आप नहीं आ रहें थे न तो ऐसा हुआ, वैसे हुआ, इसने ये किया, उसने वो किया इत्यादि। ऐसा लग रहा था कि मानों जैसे उनकी बातें खत्म ही नहीं हो रही हैं। मैंने उनकी ढ़ेर सारी बातें सुनी और कक्षा से निकलने से पहले टीम बिल्डिंग गतिविधि (Team Building Activity) करवायी।

फिर आस्था की कक्षा के बच्चे आस्था के बारे में पूछने लगे। मैंने उनकी कक्षा में जाकर उनको समझाया कि आस्था भी समय निकालकर आप सभी से मिलने आएगी। फिर मैंने उनकी भी बातें सुनी और गतिविधि करवायी। सभी बच्चे बहुत ज्यादा खुश दिखे। 

अब मैं एक-एक करके सतवी, आठवीं, नौवीं और दसवीं कक्षा में गयी। वहाँ पर कुछ बच्चे मुझे जानते थे और कुछ बच्चे नहीं जानते थे। इन कक्षाओं में दूसरे गाँव सोनपे, गरसंडा, बालाडीह, सिकहरिया, बुकार, लठाणे, गारो नवादा के भी बच्चे पढ़ने आते हैं और वहाँ मुझे मोबिलाइजेशन (mobilization) करना बाकी है।

वर्षा के दिन होने कारण प्रत्येक कक्षा में बच्चों की संख्या बहुत कम थी। मैंने अपने परिचय से बात शुरू की। बच्चों का ध्यान अपनी ओर केन्द्रित करने के लिए ? शरीर के अंग और कलम भी करायी। इससे बच्चे बहुत खुश हुए। फिर मैंने सभी बच्चों को अपने प्रोग्राम के बारे में बताया। कुछ बच्चे मुझे कक्षा में ही मिल गए, जिनकी उम्र पंद्रह वर्ष थी।

मैं उनसे पूछा कि आपके घर के आसपास 15 से 19 वर्ष की किशोरियाँ है क्या?

मुझे बच्चे बता रहे थे कि दीदी इस टोले में इतनी किशोरियाँ मिल जायेंगीं। उस टोले में इतनी मिल जायेंगीं।

बच्चों ने मुझे बहुत अच्छा आईडिया (idea) दे दिया। अब जब मैं उस गाँव में मोबिलाइजेशन करने जाऊंगी तो मुझे थोड़ी आसानी होगी।  

मैं आज अपने स्कूल में एक से दस कक्षा के सभी बच्चों से मिल ली और मुझे सबसे मिलकर बहुत ज्यादा खुशी मिली। जब मैं स्कूल से वापस आ रही थी तो सर मुझे बोल रहे थे कि इसी तरह आते रहना, अच्छा लगेगा।

उनकी यह बात सुनकर चेहरे पर मुस्कान आ गयी। यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने सर को उत्तर दिया कि बिल्कुल सर, आती रहूंगी।

विद्यालय के बाद मैं रजक टोला गयी। यहाँ मुझे ज्यादा किशोरियाँ नहीं मिली। पर जितनी भी मिली मैंने सबको इस कार्यक्रम के बारे में समझाया। सभी इस प्रोग्राम (program) से जुड़ने के लिए भी तैयार हो गई। आज का दिन मेरे लिए बहुत प्यारा और खुशनुमा था।

अनन्या

बडी इंटर्न, जमुई

Monday, September 2, 2024

संघर्ष से सफलता की ओर- संजू

जब मैं 12-13 साल की थी तभी मेरे पापा का देहांत हो गया। उस समय मुझे ऐसा लगा कि अब मेरी पढ़ाई रुक जाएगी और मन में कई तरह के सवाल उठने लगे। मैंने छठी से आठवीं कक्षा तक कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में पढ़ाई की और साथ ही अलग-अलग प्रखंडों में जाकर जूडो-कराटे का प्रशिक्षण भी दिया। हालांकि, इस दौरान मेरी पढ़ाई कई बार बाधित हुई। कभी-कभी प्रतियोगिता होती थी तो कभी जिला और प्रखंड स्तरीय फाइट्स में भाग लेना पड़ता था। इन सबके बीच मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।

घर में किसी की तबीयत खराब होने पर उनकी देखभाल भी करनी पड़ती थी। जब मैंने आठवीं की पढ़ाई पूरी की, तब आसपास के लोग मेरी माँ को मेरी शादी करने के लिए उकसाने लगे। वो कहते थे कि "ये लड़की होकर कराटे करती है और साइकिल चलाती है, इसे शादी करके घर में क्यों नहीं बिठाने का प्रबंध करते हो।" माँ ने मुझे कसम दे दी और बहुत कुछ कहा, जिससे मैंने जूडो-कराटे जाना छोड़ दिया और घर आ गई।


इसके बाद मेरे बड़े पापा ने मेरा नौवीं कक्षा में कन्या उच्च विद्यालय, शेरघाटी में नामांकन करा दिया। स्कूल पाँच किलोमीटर दूर था और मुझे रोज़ पैदल ही स्कूल जाना पड़ता था। स्कूल से आने के बाद मैं गाँव (अहुरी) की भाभी के पास सिलाई सीखने जाती थी और काज-बटन का काम करती थी। जो भी पैसा मिलता, उससे कॉपी-पेन खरीदती थी। किसी तरह मैंने इंटर पास किया और फिर मेरी शादी हो गई।


शादी के बाद, मेरा जीवन बहुत आसान नहीं था। मेरे पति मेरे समस्याओं में मेरा साथ नहीं देते थे। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी और बालबाड़ी में काम करना शुरू किया। इसके बाद मैं जीविका से जुड़ी और कोविड के समय i-सक्षम संस्था के साथ काम किया। 

इस संगठन ने मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका दिया, जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। मैंने मैत्री प्रोजेक्ट में डोर-टु-डोर सर्वे (door-to-door survey) किया और अनामांकित या ड्रॉपआउट बच्चों का नामांकन स्कूल में करवाया। नामांकन के दौरान अनेकों तरह की चुनौतियाँ आईं, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। यह यात्रा मेरे लिए संघर्षों से भरी रही। लेकिन इसने मुझे एक मजबूत और आत्मनिर्भर महिला बना दिया। i-सक्षम के साथ जुड़कर मुझे अपने सपनों को पंख देने का मौका मिला। 


मेरा यह अनुभव सिखाता है कि कैसे मैंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी पढ़ाई ज़ारी रखी और करियर को आगे बढ़ाया। 


समस्याएँ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होती हैं, या यूँ कहा जाए कि समस्याओं का नाम ही जीवन है! लेकिन आप उनसे कैसे उभरेंगे, कैसे खुद को संभालने के साथ-साथ समाज के अन्य लोगो के लिए भी प्रेरणा के स्त्रोत बनेंगे यह हम सभी को सीखना होगा।


संजू

बड़ी, गया 


जब अभिभावक ही बोलने लगे कि PTM करवाओ

गया जिले के छोटे से गाँव सिमरी में, जब सुबह की पहली किरणें आकाश में बिखरती हैं, तब बच्चों के चेहरों पर एक नई चमक दिखाई देती है। यह वही बच्चे हैं, जो कभी स्कूल जाने से कतराते थे। पर आज ये खुशी-खुशी तैयार होकर स्कूल के लिए निकल पड़ते हैं। इस बदलाव की कहानी तब शुरू हुई जब मैंने i-सक्षम के माध्यम से उनके जीवन में कदम रखा।

आमस (बारा) गाँव में आज (24 जुलाई, 2024 को) हमारी बारहवीं अभिभावक शिक्षक बैठक (PTM) थी। मेरे साथ मेरी बडी (buddy) स्वाति दीदी भी थी। जो हमेशा मेरी मदद के लिए तैयार रहती हैं। जैसे ही हम गाँव पहुंचे, वहाँ के लोगों की उत्सुकता देखकर मन प्रसन्न हो गया। इस गाँव में पहले कभी ऐसा आयोजन नहीं हुआ था। वहाँ के अभिभावक को बच्चो में बदलाव होने से अभिभावक बहुत खुश थे। अभिभावकों ने PTM करवाने के लिए दो-तीन बार बच्चों के द्वारा मुझ तक खबर भेजी थी कि रूमाना दीदी को अपना गाँव में PTM करवाने के लिए बोलना। 


मेरे विद्यालय “प्राथमिक विद्यालय सिमरी” में कुछ बच्चे दूसरे गाँव से भी पढ़ने आते हैं। मैं हमेशा विद्यालय या फिर कभी अपने ही समुदाय में PTM करवा देती हूँ। पर मैं जब स्कूल में PTM करवाती हूँ तो आस-पास के सभी अभिभावक आ जाते हैं। लेकिन अक्सर दूसरे गाँव (बारा,बडकी पुल) के एक-दो ही अभिभावक आते हैं, अधिक दूरी की वजह से। अभिभावकों ने मुझे बच्चों के द्वारा बुलवाया था। 


PTM को शुरू करते हुए हम सभी ने अभिभावकों का अभिवादन किया और i-सक्षम के बारे में इंट्रोडक्शन भी दिया।


PTM की शुरुआत माइंडफुलनेस (mindfulness) से हुई। अभिभावक धीरे-धीरे अपनी सोच साझा करने लगे। एक-एक करके वो बताने लगे कि उनके बच्चों में कैसे सकारात्मक बदलाव आयें हैं। 


तेतरी की माँ, हंसते हुए बताने लगीं कि कैसे उनकी बेटी बालगीत गाते-गाते रूम (room) में खुद को बंद कर लेती है। यह देखकर उनके चेहरे पर खुशी का भाव था। 


अभिभावकों ने यह भी बताया कि पहले बच्चे स्कूल जाने के लिए बहुत बहाने बनाया करते थे और ना ही घर आकर पढ़ने को बैठते थे। अब ख़ुशी से बच्चे खुद ही स्कूल चले जाते हैं, हमें बोलना नहीं पड़ता। सुबह उठकर, नहाते भी हैं, नाश्ता भी करते हैं और स्कूल से वापस आकर, दिनचर्या भी साझा करते हैं।


एक अभिभावक बता रहे थे कि पहले मेरा बच्चा अक्षर भी नहीं पहचानता था। लेकिन अब वह शब्द पढ़ने और लिखने लगा है। यह आपके प्रयासों का ही परिणाम है। ये सब सुन कर ख़ुशी महसूस हो रही थी। मुझे यह भी लग रहा था कि मैं भी कुछ समाज में कर रही हूँ।


अभिभावकों की बातों से पता चल रहा था कि उनका हमारे प्रति, हमारी संस्था के प्रति आदर-सम्मान बढ़ा है। मुझे अपने मन में मेरी मेहनत सफल होते देख बहुत ख़ुशी महसूस हो रही थी।



मैंने अभिभावकों को एक बाल-गीत भी कराया। शुरुआत में तो महिलाएँ थोड़ी हिचक रही थी। लेकिन कुछ देर बाद वो एक्शन के साथ बाल-गीत करने में सहज हो गयी। बाल-गीत के बाद मैंने उन्हें समझाया कि आप सभी को इतना मज़ा आ रहा ही तो सोचिये कि गतिविधि आधारित शिक्षा पाकर, बच्चे कितना ख़ुशी से सीखते होंगे? 


इस PTM में दो ऐसे अभिभावक भी थे जिनके बच्चे स्कूल नही जाते थे। बालगीत में भाग लेकर उन्होंने भी बोला कि अब हम अपने बच्चों को रोज़ स्कूल भेजेंगे। 


इस PTM ने मुझे यह एहसास दिलाया कि हमारा प्रयास सही दिशा में है। अभिभावकों की खुशी ने हमें और मेहनत करने की प्रेरणा दी। हम अपने छोटे-छोटे कदमों से बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने की ओर अग्रसर हैं। इस सफर में मुझे i-सक्षम की टीम का साथ और मेरी बडी (buddy) स्वाति दीदी की मेंटोर्शिप (mentorship) मिलने पर गर्व है।



PTM में क्या अच्छा रहा: 

  • सभी अभिभावक अपनी बातों को स्वयं से बता रहे थे। 

  • सभी अभिभावक हस्ताक्षर कर पाए और साथ ही अक्षर को पहचान सके। 

  • बालगीत और अक्षर कार्ड एक्टिविटी कर पाए। 

  • माइंडफुलनेस (mindfulness) कर पाए। 

  • बच्चो के अंदर के बदलाव को अभिभावक से जान सके, अभिभावकों से मिलने का मौका मिल सका। 

  • मेरी बडी स्वाति दीदी PTM में शामिल हो सकी

  • दूसरे गाँव जाने का मौका मिल सका।


रूमाना प्रवीण 

बैच 10, गया 


अकेले सफ़र करने में डर लगता था, अब सक्षम हूँ!- स्वाति सुमन

नमस्ते साथियों, 

मैं आप सभी के साथ i-सक्षम संस्था में बडी इंटर्न के अपने पिछले एक वर्ष का अनुभव साझा कर रही हूँ। मैंने संस्था को 5 जुलाई, 2023 को जॉइन (join) किया था। जब मैंने जॉइन किया था तब मुझे पता नहीं था कि i-सक्षम किस प्रकार की संस्था हैं? क्या काम करती है? 



मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न चल रहे थे। चयन की प्रक्रिया इतनी जल्दी हो रही थी कि कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर मैंने उस व्यक्ति से बात की, जिन्होंने मुझे i-सक्षम के बारे में बताया था। उनकी सहायता से ही मैंने फॉर्म (form) भरा था। उनसे बात करने पर मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर मिला और मुझे आत्मबल भी मिला।


जब मुझे मेरे सिलेक्शन (selection) की खबर दी गई, तो यह भी बताया गया कि मुझे अगले दिन इंडक्शन प्रोसेस (induction process) के लिए ‘जमुई’ जाना है। मुझे सिलेक्शन की ख़ुशी बाद में महसूस हुई, पहले डर लगने लगा। मैं सोच कर ही डर गयी कि कैसे जाउंगी? क्योंकि मैंने कभी अकेले कोई सफ़र तय नहीं किया था। घर से मेरी मम्मी भी इजाज़त नहीं दे रही थी। उस समय मेरी दीदी ने मेरी मम्मी को भी कन्विंस (convince) किया और उन्होंने भी मेरा साथ साथ दिया। इस तरह मैं घर से निकल पायी। 


फिर भी मुझे डर तो लग ही रहा था। मुज्ज़फ्फरपुर से भी पांच साथी और आ रहे थे, उन लोगो को देखकर मुझे लगा ही नहीं कि उनके अन्दर कोई डर वाली भावना भी है। परन्तु मुझे तो बहुत डर लग रहा था। जमुई ऑफिस पहुँचने के बाद मुझ पता चला कि वहाँ पर बहुत सारे साथी मेरे जैसे ही थे। जो पहली बार और अकेले अपने-अपने जिले से आये हुए थे। उनके बारे में जानकर मेरा थोड़ा कॉन्फिडेंस बढ़ा। यह मेरे पहले इंडक्शन का मनोभाव रहा।


इसके बाद दोबारा जब इंडक्शन बेगूसराय के तेघरा प्रखंड में हुआ तब वहाँ भी मैंने अकेले ही सफर किया। और मैंने पाया कि इस बार मेरे मन में सफ़र को लेकर कोई डर नहीं था। 


अकेले सफ़र करने के अलावा मैंने इन बातों को भी अपनी एक वर्ष की जर्नी (journey) में सीखा।

  • अपने बातचीत के तरीको में बदलाव किया।

  • मैंने लैपटॉप, डेस्कटॉप, और मोबाइल फ़ोन का सही उपयोग करना सीखा।

  • मैंने कुछ एप्लीकेशन का उपयोग करना भी सीखा। जैसे: ज़ूम, मूडल, खान अकैडमी, गूगल मीट, एक्सल, डयुलिंगो, रीड अलोंग इत्यादि।

  • कोचिंग कन्वर्सेशन की बेहतर समझ बन पाई।

  • फीडबैक एक्सेप्ट करना और फीडबैक देना सीखा।


एक वर्ष की जर्नी में मेरी फीलिंग (feeling) बहुत अलग-अलग प्रकार की रही है। जैसे: लर्निंगफुल, रिफ्लेक्टिव, एंजॉयफुल, हैप्पी, सैड आदि।


स्वाति सुमन 

मुजफ्फरपुर, बडी इंटर्न