Wednesday, June 26, 2024

गर्मी की छुट्टियों में चला- मिशन दक्ष

मैं आप सभी के साथ अपने स्कूल में गर्मी की छुट्टियों में लगे कैंप ‘विशेष दक्ष कक्षा’ का अनुभव साझा करने जा रही हूँ। इसमें वैसे बच्चों को पढ़ाते हैं जिनकी किसी कारणवश पढ़ाई छूट गयी है या कक्षा में पीछे रह गये हैं। 

ऐसे बच्चों के बारे में आसपास की कम्यूनिटी में पता करना होता है। मैंने एक दिन अपनी बडी के साथ कम्यूनिटी जाकर 14 स्टूडेंट ढूँढे और उन्हे स्कूल में पढ़ने के लिए बुलाया। 


पहले एक-दो दिन तो बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल में आये। लेकिन उसके बाद बच्चे स्कूल नहीं आना चाहते थे।  खासकर ऐसे बच्चे जो पहले कभी स्कूल नहीं आये थे, उन्हें बहुत हिचकिचाहट होती है। इसके कई कारण हो सकते थे। 

  • पहला यह कि उनकी उम्र उस कक्षा के बच्चों की उम्र की तुलना में कहीं अधिक थी।

  • दूसरा यह कि पढ़ाई रेगुलर ना होने के कारण इन बच्चों को कुछ कॉन्सेप्ट्स (concepts) को समझने में थोड़ी देर लगती थी।

मैं जब भी इनके स्कूल ना आने पर इन्हें बुलाने घर आती तो वो लोग मुझे देखकर कहीं छिप जाते, या खेलने चले जाते या घर में ही सो जाते। मैं बहुत समझाकर, फुसलाकर उन्हें स्कूल लेकर आती।


कभी-कभी इन बच्चों के अभिभावक भी इन्हें समझाते थे कि दीदी तुम्हारे लिए कितना करती है कि कुछ पढ़-लिख लोगे तो भविष्य में बड़े आदमी बनोगे। 


बिलकुल दीदी की बात नहीं मानते हो! 


मुझे उनकी बातें सुनकर अच्छा लगता था और ऐसे ही करते-करते कुछ दिन बीत गए। फिर सभी बच्चे समय से विद्यालय आने लगे। सबसे बढ़िया बात यह थी कि इन्ही बच्चों के असर (ASER) के एण्ड लाईन (Endline) का रिजल्ट उनके बेस लाईन (Baseline) से बहुत अच्छा आया।


जो इस प्रकार थासात स्टूडेंट प्रारम्भिक स्तर से अक्षर स्तर, पाँच स्टूडेंट अक्षर स्तर से शब्द स्तर और तीन स्टूडेंट अक्षर स्तर से अक्षर स्तर पर गए। इसी के साथ हमारे स्कूल के ‘मिशन दक्ष’ का उद्देश्य पूरा हुआ। 


नेहा

बैच- 10, बेगूसराय


इस बार की PTM के विषय थे- गर्मी, लू और पौष्टिक आहार

प्रिय साथियों, मैं आपके साथ लोहार गाँव में मई माह में हुई शिक्षक अभिभावक मीटिंग (PTM) का अपना अनुभव साझा करना चाहती हूँ। यह PTM मेरे लिए इसलिए अलग थी क्योंकि यह मेरे द्वारा अकेले लीड (lead) की गयी पहली PTM थी। 

हुआ यह था कि मेरे विद्यालय के प्रधानाध्यापक इस मीटिंग में मेरा साथ देने के लिए एक शिक्षक को जिम्मेदारी सौंपने वाले थे। परन्तु किन्ही कारणों की वजह से मीटिंग लीड (lead) करने के लिए कोई शिक्षक नहीं आ पाये। मैंने अकेले ही यह मीटिंग लीड की और मैं इस PTM के उद्देश्यों को सुचारू रूप से अभिभावकों को समझा पायी। यह मीटिंग लंच के बाद हुई थी। वैसे तो हर बार 10-12 ही अभिभावक उपस्थित होते थे। परन्तु इस बार की PTM में 22 अभिभावक शामिल हुए। 


यह मेरे लिए अच्छी बात भी थी लेकिन मैं थोड़ा डर भी रही थी। यह काम मुझे मुश्किल भी लग रहा था। 


मैंने एक गतिविधि से PTM की शुरुआत करवाई। गतिविधि इस प्रकार थी कि सभी अभिभावकों को दो मिनट के लिए अपनी आँखें बंद करके अपने बचपन की खट्टी-मीठी यादों को एकत्रित करके एक चार्ट-पेपर पर ड्रा (draw) करना या लिखना था। 

सभी अभिभावकों ने इस गतिविधि में भाग लिया और अपनी यादें भी साझा की। उन्होंने यह भी बताया कि इस गतिविधि को करके उनकी यादें ताज़ा हो गयीं और उन्हें फिर से पुराने दिन याद आ गए। उन्हें बहुत अच्छा लगा और मुझे भी उनकी बातें सुनकर बहुत ख़ुशी महसूस हुई। यही तो उद्देश्य था इस गतिविधि का- कि सभी लोग अपने बचपन में जाकर कुछ साझा करें और बाकी लोग उनसे कनेक्ट (connect) कर पायें।अब बारी थी PTM के अहम लक्ष्य पर बात करनी की। इस बार मुझे अभिभावकों के साथ गर्मी और लू से बचाव, पौष्टिक आहार एवं साफ़-सफाई सम्बंधित बातों पर अभिभावकों की राय जाननी थी और उन्हें शिक्षित भी करना था। 



मैंने जितना सोचा था मुझे उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ी। सभी अभिभावकों को पौष्टिक आहार के बारे में बहुत अच्छी समझ थी। मैंने बच्चों को मौसमी फल देने के बारे में भी कहा। 

कुछ बच्चे स्कूल आने से पहले कुछ खाते नहीं हैं और स्कूल में मिड-डे-मील का भोजन दोपहर बाद ही मिलता है तो इस कारण उनके लिए गर्मी और लू का शिकार होने की संभावनाएँ ज्यादा बढ़ जाती हैं।


अभिभावक इस बात को समझ रहे थे, परन्तु उनकी अपनी समस्याएँ हैं। जैसे: स्कूल का समय जल्दी होना, बच्चो का अपने माता-पिता का कहना ना मानना और बच्चों को भी इस बारे में शिक्षा का आभाव होना। 


इसके बाद मैंने साफ़-सफाई पर बात की और अभिभावकों की ओर से आ रही बातों को भी एक जगह लिखकर रखा। मैं उन सभी मुद्दों पर बच्चों से भी बात करूँगी। 


इस तरह इस बार की PTM बहुत अच्छे तरीके से संपन्न हुई। मैंने अभिभावकों को समय देने और अपनी आवश्यक राय देने के लिए धन्यवाद भी किया।


मुझे सीखने को भी मिला और यह भी पता चला कि मैं अकेले ही 20-25 अभिभावकों की उपस्थिति वाली PTM को लीड कर सकती हूँ। मेरा मनोबल बढ़ा और PTM के अंत तक मुझे खुद पर गर्व भी हो रहा था। 


अंजली 

बैच- 9, जमुई


भट्ठे पर जाने वाले बच्चों को उनकी महत्वकांक्षाओं के अनुरूप समझाया

आप सभी जानते हैं कि मेरी कक्षा के कुछ बच्चे माता-पिता के साथ भट्ठे पर काम करने के लिए पलायन कर जाते हैं। बहुत तेज गर्मी के दिनों में ये लोग वापस आते हैं। वैसी ही मेरी कक्षा कि तीन बच्चियाँ जो लगातार दस दिनों से पढ़ने आ रही हैं यह लेख उनके बारे में है।

उनके सीखने का उत्साह देखकर मेरा मन बहुत खुश हो जाता है। मैं यह भी सोचती हूँ कि काश सारे बच्चे इन्हीं की तरह पढ़ने और सीखने के लिए स्वयं आगे आयें। जब भी मैं इन्हें कुछ सिखा रही थी चाहे वो गिनती हो या अल्फाबेट ये सभी चीजों को जल्दी से समझते और आगे सिखाने को बोलते।



पिछले साल जब ये आते थे तो तीसरी कक्षा में थे और अब चौथी कक्षा में आ गए हैं। मुझे खुशी के साथ-साथ एक दुख भी है कि इनकी मेहनत और सीखने का सिलसिला लगातार न होने की वजह से ये बच्चे फिर से शुरुआती लेवल पर आ जाते हैं।


मैंने सोचा कि मैं डायरेक्ट इन बच्चों से इनके सपनो के बारे में पूछूँ और उस पर थोड़ी बात करूँ। मैंने उनकी आकांक्षाएँ जानना चाहा तो मनीषा ने बोला कि वो शिक्षक बनना चाहती है। बाकी दो बच्चियों सुहानी, सरस्वती ने बोला कि वो पुलिस अधिकारी बनना चाहती हैं। मुझे उनके सपनों की झलक उनके अन्दर दिखायी दे रही थी।


मैंने उनसे पूछा, “आपको इसके लिए क्या करना होगा”?

उन्होंने उत्तर दिया कि पढ़ना होगा।


मैने फिर उनसे पूछा, आप पढ़ाई को बीच में छोड़कर बार-बार कहाँ चले जाते हैं?

उन्होंने उत्तर दिया अपने अभिभावकों के साथ भट्ठे पर गए थे। उन्होंने यह भी बताया कि अभी उनके कुछ दोस्त तो वापस भी नहीं आयें हैं। 


मैंने उन्हें सलाह दी कि यदि आपके घर में कोई बड़ा-बुज़ुर्ग है तो आप इस बार भट्ठे पर ना जाकर उनके साथ रुक सकते हो। 


मैंने और अच्छे से पूछा कि घर में कोई दादी-नानी रहती हैं क्या? 

तभी तीनों बच्चियों ने हाँ में सिर हिलाया और कहा कि हाँ हम अब नहीं जायेंगें। 

उन्होंने यह भी बोला कि स्कूल से हमें बैग मिला, स्लेट और चौक मिला। हम यहीं रहकर पढ़ेंगें।

उनकी बातों को सुनकर मुझे थोड़ी राहत मिली। 


मैंने इस बारे में अपने स्कूल के टोला सेवक “भोला मांझी” से भी बात की। जो उनके समुदाय से ही हैं। उन्होंने भी मुझे आश्वासन दिया कि इस बार हम लोग अपनी तरफ से भी प्रयास कर रहें हैं ताकि इनकी शिक्षा में कोई रूकावट ना आये। सबकी मेहनत अपनी-अपनी तरफ से जारी है। 


सबसे अच्छी बात यह है कि ये बच्चे हमेशा हिंदी में ही बात करने की कोशिश कर रहे थे। ऐसा नहीं था कि इन्हें हिंदी बोलनी आती थी। लेकिन कोशिश करते हैं। 


मैंने इस प्रयास के लिए उनकी सराहना भी की। और कक्षा के बाकी बच्चों के सामने एक डेमोंसट्रेट करके भी दिखाया कि अपने घर-समुदाय की भाषा, स्कूल में बोलना बहुत आसान है। परन्तु हम यदि सही मायनो में शिक्षित होना चाहते हैं तो हम हिंदी में अपनी बात रखना सीखेंगें और कक्षा में इसका निरंतर उपयोग करते रहेंगें। 


खुशबू 

बैच-9, जमुई


बच्चों को गुड टच और बेड टच सिखाया

पिछले महीने हमारे क्लस्टर ने अपना लक्ष्य बच्चों को स्कूल में गुड टच और बेड टच के बारे में शिक्षित करना रखा था। 

यह कार्य हमें गर्मी की छुट्टियों से पहले पूरा करना था ताकि बच्चे छुट्टियों में इधर-उधर घूमने जायें तो सतर्क रह सकें।  


अपनी कक्षा में मैंने कैसे इसे करवाया यही मैं इस लेख के माध्यम से बताना चाहती हूँ। तो कल मैंने जब कक्षा में पहुँची ‘मैंने बच्चों को’ और ‘बच्चों ने मुझे’ ग्रीट (greet) किया। मैंने बच्चों की क्यूरोसिटी (curiosity) जगाने के लिए प्रश्न किया कि पता है आज हम सभी क्या सीखेंगे?

बच्चों से अपनी तरफ से अलग-अलग उत्तर दिए। जैसे- हिंदी, इंग्लिश, गणित और ड्राइंग। हमने उन्हें आज के टॉपिक के बारे में बताया कि आज हम गुड टच और बेड टच सीखेंगे।

सभी बच्चों के लिए ये नया टॉपिक था। मैंने जैसे ही सिखाना शुरू किया वैसे ही क्लास टीचर आकर खड़े हो गए। मुझे थोड़ी घबराहट तो हुई पर मैंने सोचा कि मैं अपना सिखाना ज़ारी रखती हूँ। मैंने ऐसा ही किया और इतने में ही सर अपनी कुर्सी लेकर वहीं बैठ गए। 

मुझे और बच्चों को हिचकिचाहट तो हो रही थी पर हम आगे बढ़ते रहे। मैंने एक लड़की को आगे बुलाया और उसे डेंजर ज़ोन (danger zone), ओके ज़ोन और गुड ज़ोन (good zone) जैसे शब्दों की मदद से कुछ एक्शन सिखाये। जैसे “ना कहने” के लिए ‘हाथों को जोर से झटककर’ ना कहना सिखाया। 

यह सब सर भी देख रहे थे। यह देखकर सर बोले कि सभी बच्चे ध्यान से देखिये, सीखिए कि दीदी क्या सिखा रहीं हैं? यह आप लोगो के लिए बहुत काम का विषय होगा। सर ने मेरी सराहना भी की।

पहली बार बच्चों को समझ नहीं आया तो एक बार और समझाया और अच्छी तरह से समझाने के लिए तीन बार समझाना पड़ा। 

फिर धीरे-धीरे मेरी कक्षा के सभी बच्चों को यह टॉपिक समझ आ गया। सर के कहने पर मैंने अन्य तीन कक्षाओं की लड़कियों को भी यह टॉपिक अच्छे से समझा दिया। इस तरह मेरे क्लस्टर का यह गोल पूरा हुआ। मुझे भी इस कार्य को करके बहुत ख़ुशी हुई।

चन्दा 

बैच-10, जमुई 


आप जो सोचोगे वो सच हो जाएगा

क्या कभी ऐसा हुआ है कि आपने किसी चीज को इमेजिन किया हो और वह सच हो गई हो?

तो फिर चलिए अनन्या की तरफ से उसकी लाइफ की एक इमेजिनेशन स्टोरी को पढ़ते हैं।


जब मैंने 2022 में i-सक्षम जॉइन किया था तब हम सभी को ट्रेनिंग के दौरान YouTube पर वीडियो दिखाई जाती था। जो वीडियो i-सक्षम के टीम मेंबर के द्वारा बनाया गया था। मैं जब भी वीडियो देखती थी तो मुझे उससे बहुत कुछ सीखने को मिलता था। 


एक दिन मैं जब ऑफिस से ट्रेनिंग अटेंड करके घर वापस आयी तो मैंने अपने फोन में i-सक्षम चैनल को YouTube पर सर्च किया। एक दिन में लगभग 10 वीडियो देख डाली। मैंने अपने पापा को भी दिखाया। मुझे हर वीडियो में कुछ ना कुछ सीखने को मिलता था। मैंने तभी इमेजिन किया था कि काश मेरी भी वीडियो i-सक्षम के चैनल पर होती!

मैं भी किसी टॉपिक पर पुरानी एडु-लीडर्स की तरह वीडियो बनाती। मैंने कुछ दिन सोचा फिर मैं इस बारे में भूल गयी। 



जिस दिन हमारा सेशन था उस दिन अमन भैया ग्रुप ने ग्रुप में एक मैसेज भेजा था। वह था कि “हमारे गांव में लोग पहले लड़कियों की महत्वाकांक्षाओं को उतनी अहमियत नहीं दिया करते थे, पर अब धीरे-धीरे एक बदलाव हो रहा है”। इस लाइन को साईकिल चलाते हुए बोलना है। उनका एक वीडियो शूट होगा। 


मैंने मैसेज देखा और सबसे पहले रिप्लाई किया कि मैं कर सकती हूँ। फिर और भी एडु-लीडर्स ने रिप्लाई किया। अमन भैया बोले आप सभी पहले इस लाइन को मनीष भैया (in-house designer & photographer) के पास बोलिए वो आप सभी में से किसी एक को सेलेक्ट कर लेंगे। 


सेशन खत्म होने के बाद हम चार-पाँच एडु-लीडर्स मनीष भैया को यह लाइन सुनायें, हमने अपना ऑडिशन दिया। फिर उन्होंने एक कॉपी में हमारे नाम और नंबर्स लिख लिए। उन्होंने बोला कि इस शूट को करने के लिए बाहर से विडियोग्राफर्स आ रहे हैं तो आप सभी में से जिनका नाम सेलेक्ट होगा हम कल उनके गाँव आयेंगें। इस बारे में इनफार्मेशन आपको आज शाम तक दे दी जाएगी। 


पता नहीं क्यों मुझे इंट्यूशन था कि यह शूट मेरे साथ नहीं होगा। शाम को मुझे मनीष भैया का कॉल आया। उन्होंने बोला कि आप कल प्रातः सात बजे तक रेडी रहिएगा। हम सभी लोग शूट करने के लिए आपके गांव (सोनपे) आएंगे। 

उनकी बात सुनकर मुझे थोड़ा आश्चर्य भी हुआ और इतनी खुश भी हुई कि मैं यहाँ शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती! क्या ही बताऊं! 

मैंने उन्हें उत्तर दिया, “ठीक है भैया मैं तैयार रहूंगी”। और फ़ोन रख दिया। 


पहला दिन: 

4 अप्रैल को मनीष भैया, अमन भैया, गोल्डन भैया और दिल्ली से आए हुए विडियोग्राफर्स क्षितिज भैया और अभिषेक भैया मेरे घर प्रातः साढ़े सात बजे पहुँच गए। मेरे पापा से सभी लोग मिले और सभी ने अपना परिचय दिया।


साईकिल वाले सीन की शूटिंग और ट्विस्ट: 

मुझे पता नहीं था कि i-संस्था पर एक शोर्ट फिल्म बनने जा रही है। जिसमें यह दिखाया जाएगा कि i-सक्षम किस तरह से काम करती हैं। तो मेरी जो एक साईकिल वाले सीन (scene) की शूटिंग होने वाली थी अब उसकी जगह एडु-लीडर के सम्पूर्ण रोल (role) की शूटिंग होगी। जैसे: बच्चों के साथ कक्षा में जुड़ना, शिक्षक अभिभावक मीटिंग, समुदाय में जाकर अभिभावकों से बातचीत, क्लस्टर मीटिंग, ट्रेनिंग और एक मेरा साक्षात्कार होना था।

  

यह सुनकर मैं थोड़ा घबरा गयी थी कि पता नहीं कैसे होगा? 

मैं कर भी पाऊंगी या नहीं? 

फिर हुआ यूं कि उन्होंने पहली शूटिंग करने की जगह सिलेक्ट की और मेरी पहली शूटिंग बहुत अच्छे से साईकिल चला कर जाने वाली हुई। 


स्कूल में शूटिंग: 


अब स्कूल में शूटिंग होने बारी थी तो इस कारण हम सभी लोग स्कूल गए। मैंने प्रिंसिपल सर से i-सक्षम की टीम से परिचय करवाया और शूटिंग के बारे में उन्हें जानकारी दी। 

प्रिंसिपल सर ने बड़े प्यार से कहा कि आप हो और i-सक्षम है तो कोई दिक्कत ही नहीं है। जो भी शूटिंग करनी है आप कीजिए। 

प्रिंसिपल सर बहुत अच्छे हैं। उनकी यह बात सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई। मेरा मनोबल भी बढ़ा। 


स्कूल में बच्चों के साथ मेरी शूटिंग हुई, कुछ फ्रेम्स लिये गए। 

फिर सभी ने एक घंटे का ब्रेक लिया। सभी भैया जमुई चले गए और मैं अपने घर आ गई। ठीक 1 घंटे के बाद हम सभी स्कूल में मिले। उन्होंने बताया कि अभी हम कलस्टर मीटिंग की शूटिंग करेंगे। 


क्लस्टर मीटिंग का शूट: 

मैंने अपने गाँव में क्लस्टर मीटिंग के लिए विडियोग्राफर्स को कुछ जगहें दिखायीं। जिनमें से एक जगह को सेलेक्ट किया गया। मैंने अपनी बडी और गाँव के आसपास जो क्लस्टर मेम्बर्स थे उन्हें सुबह ही इस शूटिंग के बारे में और समय के बारे में इन्फॉर्म कर दिया था।


सभी लोग (विपिन सर, सोनम दीदी और मेरी बडी ज्योति दीदी) समयानुसार दो बजे दोपहर को सोनपे गाँव आ गए थे। सभी का परिचय शूटिंग टीम से हुआ और हम अपने क्लस्टर मीटिंग के लिए चुने गए स्थान पर गए। 

हमने क्लस्टर मीटिंग में गाँव की महिलाओं को भी बुलाया। और हमारी क्लस्टर मीटिंग वाली शूटिंग भी प्लान के अनुसार पूरी हुई। 


मैं बता नहीं सकती कि क्लस्टर मीटिंग की शूटिंग के दौरान हम सभी लोग इतना हंसे-इतना हंसे कि किसी के पेट दर्द होने लगा। तो किसी की आंखों से आंसू निकल आए। 

हम सभी ने उस शूटिंग को बहुत ही ज्यादा इंजॉय किया।


कलस्टर मीटिंग के शूटिंग के बाद एक फ्रेम गांव में बच्चों के साथ लिया गया। शाम भी हो चुकी थी। आज को शूटिंग को यहीं रोका गया। अगले दिन सुबह साढ़े छ: बजे मिलने का प्लान बनाया गया।


दूसरा दिन: 


दूसरे दिन की शूटिंग की शुरुआत मेरे साक्षात्कार (interview) से हुई। ठीक साढ़े छ: बजे क्षितिज भैया, अभिषेक भैया, मनीष भैया सभी लोग अमन भैया के घर के पास आ गए। मैं भी पहुंची। 

अब फिर से मुझे 2022 में इमेजिन की हुई बातें याद आ रही थी। मैं कैसे सोच रही थी कि काश मेरा भी ऐसा वीडियो होता और आज वो बातें सच होने जा रही हैं। 


साक्षात्कार से बढ़ा मनोबल: 

वैसे तो साक्षात्कार के दौरान मुझसे जो भी सवाल पूछे जाते मैंने उसकी प्रैक्टिस की थी। क्योंकि मनीष भैया ने मुझे एक दिन पहले सवाल भेज दिए थे और मिरर में प्रैक्टिस करने की सलाह भी दी थी। 

लेकिन फिर भी मुझे बहुत ज्यादा डर लग रहा था, मैं बहुत ज्यादा नर्वस (nervous) थी। 


क्षितिज भैया मुझसे पूछ भी रहे थे कि आप इतनी नर्वस क्यों हो? 

मैंने उन्हें बताया कि मैंने कभी कैमरा फेस नहीं किया है तो मुझे इसलिए डर लग रहा है। उन्होंने मुझे कुछ टिप्स और ट्रिक्स दिए और बाकी लोगो को वहां से थोडा दूर जाने के कहा तो मैं थोड़ा सहज हुई।


टिप्स ये थी कि कैमरे को देखना ही नहीं है। जो मुझसे सवाल कर रहा है उन्हें ही देखकर उत्तर देना है। ये काम मुझे कैमरे में देखने की तुलना में आसान लगा। 

परन्तु आसान यह भी नहीं था! 


मेरे लिए उनसे ऑय-कांटेक्ट (eye-contact) करना बहुत मुश्किल हो रहा था। मैं इतनी नर्वस थी कि मुझे हंसी आ रही थी। मुझे देखकर दोनों भैया भी हंस रहे थे। फिर उन्होंने मुझे हिम्मत दी और साक्षात्कार शुरू हुआ।


साक्षात्कार जब ख़त्म हुआ तो मुझे लगा ही नहीं कि ये पूरा हो गया है। या मैं किसी नये व्यक्ति के साथ बैठी हूँ। यह शूट होने के बाद मेरा आत्मविश्वास और बढ़ा।


PTM, अन्य फ्रेम और शूटिंग्स: 

अब हम स्कूल चले आए। स्कूल के फील्ड में मेरे एक फ्रेम की शूटिंग हुई। फिर कम्युनिटी में जाकर बच्चों के घर में शूटिंग हुई।

फिर स्कूल में PTM की शूटिंग हुई। अब हमें जमुई आना था क्योंकि हमारी ट्रेनिंग की शूटिंग बची थी। 


हम सभी जमुई पहुंचे और ट्रेनिंग की शूटिंग पूरी की। फिर ऑफिस में टीम मेम्बर्स के साथ शूटिंग हुई। आखिरकार सारी शूटिंग समय पर समाप्त हुई। 


जुड़ाव और अलगाव:

फिर क्षितिज भैया और अभिषेक भैया सबसे मिलकर पटना के लिए निकले। वहाँ से उनकी दिल्ली के लिए फ्लाइट थी। 

मेरे लिए क्षितिज भैया और अभिषेक भैया दोनों अजनबी थे। लेकिन इन दो दिनों की शूटिंग के दौरान उनसे इतना जुड़ाव बन गया कि मुझे लगने लगा कि जैसे कोई अपना हो।

 

मैं जब भी शूटिंग के दौरान थक जाती तो सारे भैया लोग मुझे कभी खाने के लिए पूछते, तो कभी पानी के लिए पूछते। 

जब भी नर्वस हो जाती तो भैया मुझे कभी हंसाते, तो कभी मोटिवेट करते कि आप अच्छा कर रहे हो।

बहुत बढ़िया कर रहे हो, प्राउड ऑफ़ यू अनन्या। 

हर तरह से मोटिवेट करते रहे। 


मेरा इतना ध्यान रखा कि मुझे लगा ही नहीं कि मैं दो अजनबी लोगों के साथ हूँ। मेरे इस शूटिंग में मनीष भैया ने मेरी बहुत मदद की।

अब मुझे बेसब्री से इंतजार है कि कब मूवी बनकर आएगी और मैं उसे कब देखूंगी! 

अनन्या 

बैच-9, जमुई


फिर से स्कूल जाने लगी आठवीं कक्षा की शबनम और कविता

आप सभी जानते ही हैं कि पिछले महीने हमारे क्लस्टर का गोल (goal) ऐसी दस लड़कियों/महिलाओं से मिलकर उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए मोटीवेट (motivate) करना था, जिन्होंने आठवीं कक्षा के बाद या पहले किन्ही कारणों की वजह से पढ़ाई को छोड़ दिया था।


हमें उन्हें ढूंढकर, उनसे बात करके उनकी आगे की पढ़ाई को लेकर उनकी सहायता करनी थी। इसलिए शनिवार को मौसम और मैं आठवीं में नामांकन करायी हुई अनुसूचित समुदाय (ST) की दो लड़कियों से मिले।


इनसे मिलना इतना आसान भी नहीं था। 


क्योंकि ये दोनों हमसे बातचीत करने से भाग रहीं थी। हम बहुत बार इनके घर गए, लेकिन बात नहीं हो पायी। बहुत प्रयास करने के बाद हम पिछले शनिवार को सफल हुए।


हमने इन्हें समझाया तो इन्होंने सोमवार से स्कूल जाने का वादा किया। उनकी बात से मुझे और मौसम को बहुत ख़ुशी हुई। मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न भी आ रहे थे परन्तु मैं उन प्रश्नों को अपने मन में लेकर घर वापस आ गयी। 

सोमवार को मैंने शबनम और कविता की कक्षा में जाकर उनसे पढ़ाई के बारे में बात की। उन्हें कैसा लग रहा है, यह प्रश्न भी किया।

उन्होंने बताया कि वो खुश हैं। उन्हें अच्छा लग रहा है और अब वो रोज़ स्कूल आएँगी। 


मुझे भी उन्हें स्कूल में देखकर, स्कूल की वर्दी में देखकर बहुत ख़ुशी हुई। 


पहले (जब ये स्कूल नहीं आती थी और हम इनके घर जाते थे।) इन्हीं लड़कियों ने फोटो क्लिक करने से मना किया था और इन्होंने आज खुद ही फोटो क्लिक करने को कहा। मैं आशा करती हूँ कि इनका आत्मविश्वास बना रहे और ये रोज़ स्कूल आयें।


सत्यम स्वाती 

बैच-9, जमुई 


महिला ने मीडिएटर (mediator) बनकर ‘भोजपुरी’ में गाँव वालो को समझाया

 एक दिन मैं लेम्बुआ गाँव में मोबिलाइजेशन के लिए गयी। यह गाँव नेशनल हाईवे से सटा हुआ था। यहाँ बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहाँ के लोगो कि भाषा मुझे बहुत ही आकर्षित करने वाली और लुभावनी लगी। क्योंकि यहाँ के लोग भोजपुरी में बोल रहे थे। 

जब मैं उस गाँव में पहुंची तो मुझे एक औरत मिली। मैंने उन्हें अपने और i-सक्षम के बारे में बताया। उन्होंने मेरी बात समझ ली थी परन्तु वह मेरी मदद करने के लिए जब किसी अन्य महिला या पुरुष को i-सक्षम के बारे में बता रही थी तो वह भोजपुरी में बता रही थी।


जैसे- यह सब लोगन आई-सक्षम से आइल बानी। जो यह गांव के बुचिया और महिला लोगन के खोज रहल बानी। जो अपने ही गांव और विद्यालय में काम करें के बा तो यह सब लोगन तोहनी के साथ बातचीत करेला चाहा तानी, और बता दे की का कर के बा। 

चली जा बुचिया लोगन तोहनी के काम कर के बा और एक बार से जुड़ के देखा और आगे बढ़ा। 


उस महिला की बात सुनकर लड़कियां मेरे पास आयीं और मैंने उनका एग्जाम लिया। उनकी बोली सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। इसलिए मैं यह अनुभव आपके साथ साझा कर रही हूँ।


निक्की कुमारी 


वो कहते हैं ना कि कभी-कभी जुबान पर सरस्वती वास करती हैं

‘सुकराडीह गाँव’ जाने के लिए मैं और हेमा सुबह साढ़े छ: बजे घर से निकले। उस समय एक तरफ तो टोटो नहीं मिल रहा था और दूसरी तरफ मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न आ रहे थे। मैं पहली बार नेशनल हाईवे से चार किलोमीटर अन्दर जा रही थी। 

मुझे पहाड़ी क्षेत्र में जाना था। कैसे जाउंगी? पहली बार विद्यालय के शिक्षकों से बात करूँगीं तो वो कैसे रियेक्ट (react) करेंगे? यह सब भाव मन में चल रहे थे।


गाँव और अर्थव्यवस्था: 

हमें सवा सात बजे टोटो मिला और हम दोनों पौने आठ बजे गाँव पहुँच गए। वहाँ पहुँचते ही सबसे पहली चीज़ जिस पर ध्यान जा रहा था वह पहाड़ था। इस गाँव के लोग की अर्थव्यवस्था इसी पहाड़ पर निर्भर भी थी। यहाँ के ग्रामीण जो अल्पसंख्यक समुदाय के थे, पहाड़ से लकड़ी काटकर और उन्हें बेचकर अपना जीवन-यापन करते थे। एक और आय का स्त्रोत बीड़ी का पत्ता चुनना था। 


विद्यालय और शिक्षक: 

विद्यालय पहुँचने से पहले मेरे मन में चल रहा था कि बहुत सारे शिक्षक मिलेंगें। लेकिन वैसा नहीं हुआ। 

हम जब विद्यालय पहुंचे तो विद्यालय में टोला सेवक पहले से उपस्थित थे। हमने उनसे अपना और अपनी संस्था का परिचय करवाया। लगभग आधे घंटे में (साढ़े आठ बजे) प्रधानाद्यापक भी विद्यालय आ गए। उनसे भी परिचय हुआ। 

उन्हें हमारी संस्था के काम और गतिविधियों के बारे में सुनकर अच्छा लगा। उन्होंने इस समुदाय और विद्यालय में भी आवश्यक सुधार हों ऐसी इच्छा जताई। यह सुनकर हम दोनों को भी बहुत ख़ुशी हुई। हमने अपनी इन बातों को थोड़ा विराम दिया और हम गाँव की ओर चल दिए। 


10 लड़कियाँ और परीक्षा:

इस गाँव में लगभग 25 घर हैं। हमने सभी घरों में जाने का निश्चय किया। लेकिन एक बुज़ुर्ग व्यक्ति मिले उन्होंने हमसे हमारा परिचय और संस्था के बारे में पूछा। हमें एक जगह बिठाया। जैसे ही उन्हें समझ आ गया उन्होंने घरों से कुछ ही देर में 10 लड़कियों को इकठ्ठा कर लिया, जो दसवीं पास थी। 


मोबिलाइजेशन में ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ कि एक गाँव में एक ही साथ इतनी लड़कियाँ दसवीं पास मिल गयी हों। मुझे यह देखकर बहुत ख़ुशी हुई। 


मैंने लड़कियों को फ़ेलोशिप के बारे में समझाया और सभी परीक्षा के लिए रेडी (ready) हो गयी। हम दोनों ने उन्हें परीक्षा देने के लिए बिठाया और मैं यह भी सोचने लगी कि इतनी लड़कियों में से लगभग आधी तो पास हो ही जायेंगीं। 


दादी की जुबान और रिजल्ट:


इतने में एक दादी वहाँ आयीं और बोली कि “तुम लोगो में से कोई भी यह परीक्षा पास नहीं करेगा”! 

मुझे उनकी बात सुनकर मुझे लगा कि दादी मज़ाक कर रही हैं और हँसी भी आयी। बात वहीँ खत्म हो गयी। गाँव की लड़कियों ने हमारे लिए फोन करके टोटो बुलाया और हम आसानी से अपने घर लौट आये।


दस दिनों बाद जब उस गाँव की लड़कियों का रिजल्ट (result) आया तो मैंने देखा कि उस गाँव से एक भी लड़की पास नहीं हुई है। उनका रिजल्ट देखकर मुझे काफी दुःख हुआ और दादी की बात भी याद आयी। 

हमारे बड़े-बुज़ुर्ग कहते हैं ना कि हमें शुभ-शुभ बोलना चाहिए क्योंकि कभी-कभी जुबान पर माँ सरस्वती वास करती हैं। या हो सकता है दादी उन लड़कियों से इतना घुली-मिली हुई हो कि उनकी हर काबिलियत को पहचानती हो। यह सोचकर मैंने अगले गाँव का रिजल्ट देखना शुरू कर दिया।


निक्की कुमारी

गया