आप सभी जानते हैं कि मेरी कक्षा के कुछ बच्चे माता-पिता के साथ भट्ठे पर काम करने के लिए पलायन कर जाते हैं। बहुत तेज गर्मी के दिनों में ये लोग वापस आते हैं। वैसी ही मेरी कक्षा कि तीन बच्चियाँ जो लगातार दस दिनों से पढ़ने आ रही हैं यह लेख उनके बारे में है।
उनके सीखने का उत्साह देखकर मेरा मन बहुत खुश हो जाता है। मैं यह भी सोचती हूँ कि काश सारे बच्चे इन्हीं की तरह पढ़ने और सीखने के लिए स्वयं आगे आयें। जब भी मैं इन्हें कुछ सिखा रही थी चाहे वो गिनती हो या अल्फाबेट ये सभी चीजों को जल्दी से समझते और आगे सिखाने को बोलते।
पिछले साल जब ये आते थे तो तीसरी कक्षा में थे और अब चौथी कक्षा में आ गए हैं। मुझे खुशी के साथ-साथ एक दुख भी है कि इनकी मेहनत और सीखने का सिलसिला लगातार न होने की वजह से ये बच्चे फिर से शुरुआती लेवल पर आ जाते हैं।
मैंने सोचा कि मैं डायरेक्ट इन बच्चों से इनके सपनो के बारे में पूछूँ और उस पर थोड़ी बात करूँ। मैंने उनकी आकांक्षाएँ जानना चाहा तो मनीषा ने बोला कि वो शिक्षक बनना चाहती है। बाकी दो बच्चियों सुहानी, सरस्वती ने बोला कि वो पुलिस अधिकारी बनना चाहती हैं। मुझे उनके सपनों की झलक उनके अन्दर दिखायी दे रही थी।
मैंने उनसे पूछा, “आपको इसके लिए क्या करना होगा”?
उन्होंने उत्तर दिया कि पढ़ना होगा।
मैने फिर उनसे पूछा, आप पढ़ाई को बीच में छोड़कर बार-बार कहाँ चले जाते हैं?
उन्होंने उत्तर दिया अपने अभिभावकों के साथ भट्ठे पर गए थे। उन्होंने यह भी बताया कि अभी उनके कुछ दोस्त तो वापस भी नहीं आयें हैं।
मैंने उन्हें सलाह दी कि यदि आपके घर में कोई बड़ा-बुज़ुर्ग है तो आप इस बार भट्ठे पर ना जाकर उनके साथ रुक सकते हो।
मैंने और अच्छे से पूछा कि घर में कोई दादी-नानी रहती हैं क्या?
तभी तीनों बच्चियों ने हाँ में सिर हिलाया और कहा कि हाँ हम अब नहीं जायेंगें।
उन्होंने यह भी बोला कि स्कूल से हमें बैग मिला, स्लेट और चौक मिला। हम यहीं रहकर पढ़ेंगें।
उनकी बातों को सुनकर मुझे थोड़ी राहत मिली।
मैंने इस बारे में अपने स्कूल के टोला सेवक “भोला मांझी” से भी बात की। जो उनके समुदाय से ही हैं। उन्होंने भी मुझे आश्वासन दिया कि इस बार हम लोग अपनी तरफ से भी प्रयास कर रहें हैं ताकि इनकी शिक्षा में कोई रूकावट ना आये। सबकी मेहनत अपनी-अपनी तरफ से जारी है।
सबसे अच्छी बात यह है कि ये बच्चे हमेशा हिंदी में ही बात करने की कोशिश कर रहे थे। ऐसा नहीं था कि इन्हें हिंदी बोलनी आती थी। लेकिन कोशिश करते हैं।
मैंने इस प्रयास के लिए उनकी सराहना भी की। और कक्षा के बाकी बच्चों के सामने एक डेमोंसट्रेट करके भी दिखाया कि अपने घर-समुदाय की भाषा, स्कूल में बोलना बहुत आसान है। परन्तु हम यदि सही मायनो में शिक्षित होना चाहते हैं तो हम हिंदी में अपनी बात रखना सीखेंगें और कक्षा में इसका निरंतर उपयोग करते रहेंगें।
खुशबू
बैच-9, जमुई
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