‘सुकराडीह गाँव’ जाने के लिए मैं और हेमा सुबह साढ़े छ: बजे घर से निकले। उस समय एक तरफ तो टोटो नहीं मिल रहा था और दूसरी तरफ मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न आ रहे थे। मैं पहली बार नेशनल हाईवे से चार किलोमीटर अन्दर जा रही थी।
मुझे पहाड़ी क्षेत्र में जाना था। कैसे जाउंगी? पहली बार विद्यालय के शिक्षकों से बात करूँगीं तो वो कैसे रियेक्ट (react) करेंगे? यह सब भाव मन में चल रहे थे।
गाँव और अर्थव्यवस्था:
हमें सवा सात बजे टोटो मिला और हम दोनों पौने आठ बजे गाँव पहुँच गए। वहाँ पहुँचते ही सबसे पहली चीज़ जिस पर ध्यान जा रहा था वह पहाड़ था। इस गाँव के लोग की अर्थव्यवस्था इसी पहाड़ पर निर्भर भी थी। यहाँ के ग्रामीण जो अल्पसंख्यक समुदाय के थे, पहाड़ से लकड़ी काटकर और उन्हें बेचकर अपना जीवन-यापन करते थे। एक और आय का स्त्रोत बीड़ी का पत्ता चुनना था।
विद्यालय और शिक्षक:
विद्यालय पहुँचने से पहले मेरे मन में चल रहा था कि बहुत सारे शिक्षक मिलेंगें। लेकिन वैसा नहीं हुआ।
हम जब विद्यालय पहुंचे तो विद्यालय में टोला सेवक पहले से उपस्थित थे। हमने उनसे अपना और अपनी संस्था का परिचय करवाया। लगभग आधे घंटे में (साढ़े आठ बजे) प्रधानाद्यापक भी विद्यालय आ गए। उनसे भी परिचय हुआ।
उन्हें हमारी संस्था के काम और गतिविधियों के बारे में सुनकर अच्छा लगा। उन्होंने इस समुदाय और विद्यालय में भी आवश्यक सुधार हों ऐसी इच्छा जताई। यह सुनकर हम दोनों को भी बहुत ख़ुशी हुई। हमने अपनी इन बातों को थोड़ा विराम दिया और हम गाँव की ओर चल दिए।
10 लड़कियाँ और परीक्षा:
इस गाँव में लगभग 25 घर हैं। हमने सभी घरों में जाने का निश्चय किया। लेकिन एक बुज़ुर्ग व्यक्ति मिले उन्होंने हमसे हमारा परिचय और संस्था के बारे में पूछा। हमें एक जगह बिठाया। जैसे ही उन्हें समझ आ गया उन्होंने घरों से कुछ ही देर में 10 लड़कियों को इकठ्ठा कर लिया, जो दसवीं पास थी।
मोबिलाइजेशन में ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ कि एक गाँव में एक ही साथ इतनी लड़कियाँ दसवीं पास मिल गयी हों। मुझे यह देखकर बहुत ख़ुशी हुई।
मैंने लड़कियों को फ़ेलोशिप के बारे में समझाया और सभी परीक्षा के लिए रेडी (ready) हो गयी। हम दोनों ने उन्हें परीक्षा देने के लिए बिठाया और मैं यह भी सोचने लगी कि इतनी लड़कियों में से लगभग आधी तो पास हो ही जायेंगीं।
दादी की जुबान और रिजल्ट:
इतने में एक दादी वहाँ आयीं और बोली कि “तुम लोगो में से कोई भी यह परीक्षा पास नहीं करेगा”!
मुझे उनकी बात सुनकर मुझे लगा कि दादी मज़ाक कर रही हैं और हँसी भी आयी। बात वहीँ खत्म हो गयी। गाँव की लड़कियों ने हमारे लिए फोन करके टोटो बुलाया और हम आसानी से अपने घर लौट आये।
दस दिनों बाद जब उस गाँव की लड़कियों का रिजल्ट (result) आया तो मैंने देखा कि उस गाँव से एक भी लड़की पास नहीं हुई है। उनका रिजल्ट देखकर मुझे काफी दुःख हुआ और दादी की बात भी याद आयी।
हमारे बड़े-बुज़ुर्ग कहते हैं ना कि हमें शुभ-शुभ बोलना चाहिए क्योंकि कभी-कभी जुबान पर माँ सरस्वती वास करती हैं। या हो सकता है दादी उन लड़कियों से इतना घुली-मिली हुई हो कि उनकी हर काबिलियत को पहचानती हो। यह सोचकर मैंने अगले गाँव का रिजल्ट देखना शुरू कर दिया।
निक्की कुमारी
गया
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