नमस्ते साथियों,
मेरा नाम तनुप्रिया है और मैं बैच दस की एडु-लीडर हूँ। मैं आशा करती हूँ कि आप सभी शुभ और मंगलमय हैं। आज मैं अपने गाँधी फ़ेलोशिप का अनुभव i-सक्षम के साथ साझा कर रही हूँ। मैं इसे चार मुख्य बिंदुओं में बाटूँगी :
1) अवलोकन
2) चुनौती
3) सीखना
4) भावना
अवलोकन
मैंने ज्यादा ऑब्जरवेशन नहीं किया, लेकिन जो कुछ भी मैंने देखा, वो साझा करना चाहूंगी। यहां के लोग बहुत अच्छे थे। शुरुआत में मुझे लगा कि वे मेरी मदद करेंगे या नहीं, लेकिन सभी ने खुले दिल से बात की और एक-दूसरे को समझा। मैंने देखा कि लोग एक-दूसरे के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे। जब मैंने कहा कि मैं बिहार से हूँ, तो वे बिहार के बारे में जानने की कोशिश करते थे, मैं भी उनके बारे में जानने की कोशिश करती थी। यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। यहां सीखने का एक तरीका यह था कि हर नई चीज एक गतिविधि के माध्यम से शुरू होती थी, जिससे वह हमें लंबे समय तक याद रहती।
चुनौती
जब मैंने चयन का ईमेल (Email) प्राप्त किया, तो मैं खुश हो गई, लेकिन मन में कई सवाल आए कि क्या मैं परिवार को बताऊँगी तो वो मुझे जाने देंगी या नहीं? मैंने अपने पिताजी को सारी बातें बताईं, और उन्होंने मुझसे कई सवाल किए। मैंने अनन्या दी और सुमन दी का उदाहरण दिया, जिससे उन्हें मेरी बात समझ में आई। अंततः, मेरे पापा मान गए। अगर वे नहीं मानते, तो मैं उन्हें अनन्या दी का अनुभव पढ़ने के लिए देती, लेकिन उन्होंने जल्दी ही मेरा साथ दिया।
कोई भी चीज बेकार नहीं जाती। कल i-सक्षम ने मुझे अपनी आवाज उठाना सिखाया, और आज मुझे आगे बढ़ने का जुनून मिला।
सीखना
मुझे छोटी-छोटी चीजों से बहुत कुछ सीखने को मिला, जैसे गूगल पे(Google pay) चलाना, अकेले रात मे सफर करना। एक खास अनुभव था मेरी पहली रात की यात्रा, जब मैं रांची से बरौनी अकेले गई। मुझे बहुत डर भी लग रहा था, लेकिन एक विश्वास भी था मै ये कर पाऊँगी और जब मैं घर पहुंची, तो मैंने महसूस किया कि मैं खुद को पहचानने की कोशिश कर रही हूँ ।
गूगल पे (Google pay) का महत्व मैंने तब समझा, जब मैंने देखा कि सभी लोग ऑनलाइन पेमेंट(Online payment) कर रहे हैं और मैं कैश पैसा लेकर चल रही थी। एक फैसिलिटेटर ने मुझे बताया कि ऑनलाइन पेमेंट करना ज्यादा सुविधाजनक है। उस दिन मैंने गूगल पे बनाया और उसे इस्तेमाल करना शुरू किया। इससे मुझे यह सिखने को मिला कि फीडबैक को स्वीकार करना चाहिए, न कि उसका जवाब देना चाहिए।
i-सक्षम ने मुझे बहुत कुछ सिखाया, लेकिन मैंने कुछ चीजें नहीं की, क्योंकि गाँव में कई चीजें महत्व नहीं रखती थीं।
भावना
जाने से पहले मैं बहुत खुश थी, लेकिन जब मैं घर से निकली, तो मेरा मन नहीं लग रहा था। मैं हमेशा उदास रहती थी, लेकिन वहां के दोस्तों ने मुझे मोटिवेट(Motivate) किया। उन्होंने कहा, "तुम बिहार से हो, बिहार तो नजदीक है।" इससे मुझे अच्छा महसूस हुआ।
अब मैं पहले से खुश रहने लगी हूँ। मेरे प्यारे दोस्तों, आपके प्यार और आशीर्वाद से मुझे उम्मीद है कि मैं इस दो साल की फेलोशिप को बहुत अच्छे से पूरा कर पाऊँगी।
तनु प्रिया
बैच 10, बेगूसराय
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