Friday, October 18, 2024

मैत्री प्रोजेक्ट में दो वर्षों का अनुभव- अभिषेक

नमस्ते साथियों,

मैं बैच पाँच का फेलो था। फेल्लोशिप समाप्त होने के बाद मेरा चयन मैत्री प्रोजेक्ट में हुआ। मुझे अभी भी याद है कि इस प्रोजेक्ट में चयन होने के कारण मुझे बहुत ख़ुशी हुई थी। शुरूआत में गाँव में सर्वे (survey) करने में कठिनाई हो रही थी परन्तु धीरे-धीरे मुझे यह कार्य करने में मज़ा आने लगा।

मैत्री प्रोजेक्ट: आउट ऑफ़ स्कूल (Out of school) लड़कियों को स्कूल से जोड़ना और उनका रिटेंशन (retention) करना इस प्रोजेक्ट का अहम उद्देश्य है। 

प्रोजेक्ट की अवधि 21 सितम्बर 2022 से 31 अगस्त 2024 थी। मैंने अपनी पञ्चायत तक के सभी गाँव नहीं देखे थे, और मैत्री प्रोजेक्ट के अंतर्गत मैंने मुंगेर जिले के चार ब्लॉक क्रमशः बरियारपुर, धरहरा, मुंगेर सदर, और जमालपुर के लगभग एक सौ गाँवों का सर्वे किया। जमुई के कुछ गाँव भी मेरे सर्वे का हिस्सा रहे। 

समस्याएँ और समाधान: 

सर्वे करने के दौरान हमारी टीम के साथियों को बहुत परेशानियाँ हो रही थी। जैसे- सर्वे के दौरान, सम्मानपूर्वक बात ना करना, डांट कर भगा देना और बदतमीज़ी करना आदि। 

  • परेशानियों के साथ-साथ मदद के हाथ भी आगे आये। मदद करने वाले लोगो में मुखिया, वार्ड सदस्य और आम ग्रामीण लोग थे। 

  • शिक्षा के प्रति बच्चों और अभिभावकों में जागरुकता की कमी भी एक अहम समस्या रही।

  • हम ऐसे गाँवों में भी गए जहाँ तक किसी प्रकार की कोई सड़क नहीं जाती है, पक्के घर नहीं हैं। इस प्रकार के कुछ गाँव मन कोटिया, गोपाली चेक, ब्लॉक धरहरा में है। यहाँ लड़कियों को विद्यालय आने-जाने को लेकर अलग समस्याएँ थी। उनके अभिभावक भी इन समस्याओं के बारे में नहीं जानते थे। जिसको हमने अभिभावकों से लगातार बात करके हल किया।

  • जब हम आर.एन. मुसहरी टोला (बदला हुआ नाम) की दो बच्चियों का नामांकन कराने के लिए उन्हें विद्यालय लेकर गए तो वहाँ के प्रधानाध्यापक का कहना था कि आप दोनों गोरा होने वाली क्रीम (Fair&Lovely) लगा कर ही विद्यालय आ सकते हैं। ऐसे शब्द सुनकर किसी भी बच्ची का मनोबल टूट जाता। हमारी टीम ने दोनों पक्ष के साथ लगातार समय दिया और जातिवाद को किनारे करने के लिए बहुत समझाया।

  • गौरीपुर में हमारे काम करने के तरीके को लेकर भी प्रश्न उठाये गए। हम बच्चियों को स्कूल पहुँचाने के लिए जिस शिद्दत से लगे थे, उसे देखकर ग्रामीणों को लगने लगा कि अवश्य ही इन लोगो को (मैत्री टीम के सदस्यों) बच्चों के नाम पर विद्यालय में आने वाली राशि, अन्य सामान इत्यादि का हिस्सा मिलता होगा। उनका यह भी कहना था कि आधा तो विद्यालय के शिक्षक ही खा जाते हैं। हमने इस मानसिकता पर चोट की। अपने प्रयासों की एक विडियो बनाकर, सभी ग्रामीणों को उसे दिखाया। तब जाकर विश्वास अर्जित किया।

हितधारकों का व्यवहार: 

विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों का अधिकतार बार ऐसा व्यवहार दिखा कि इस कम्युनिटी विशेष के बच्चों का नामांकन नहीं करते हैं। जिसके कई कारण पाए गए- 

  • बच्चे भट्टे पर मजदूरी करने चले जाते थे। अभिभावकों को इससे सहूलियत होती थी। क्योंकि घर पर उनकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं बचता था।

  • अभिभावकों को नामांकन कराने हेतु लगने वाले दस्तावेजों का ज्ञान नहीं था।

  • आधार कार्ड ना बना होने के कारण विद्यालय बच्चे का नामांकन नहीं लेते थे।

  • बच्चियों के पास वर्दी ना होने के कारण उन्हें शिक्षक और प्रधानाध्यापक द्वारा कक्षा में बैठने नहीं दिया जाता था। 

  • जब हम किसी गाँव में सर्वे (survey) करने जाते थे तो कभी-कभी हमें आउट ऑफ़ स्कूल गर्ल्स (Out of School Girls) का डाटा देने से मना कर देते थे और तरह-तरह के झूठें आरोप भी हम पर लगाये जाते थे। उदाहरण के लिए जैसे कि हम डेटा बेच देंगें, या हमें कुछ आर्थिक रूप से कोई पैसा मिलने वाला हो!

क्या पद्धतियाँ काम आयीं?

  • गतिविधि के माध्यम से कम्युनिटी के लोगो को जोड़ना काफी कारगर साबित हुआ। 

  • बच्चियों का रिटेंशन (retention) करने में बाल-उत्सव, ग्राम सभा, शिक्षक-अभिभावक बैठक (PTM) जैसे इवेंट्स (events) काम आये।

  • अभिभावकों और ग्रामीणों के साथ ज्यादा समय और शिक्षा की जागरूकता सम्बंधित जानकारी देकर इंटरवेंशन (intervention) करना पड़ा। 

  • गर्मियों की छुट्टियों में जब बिहार सरकार द्वारा मिशन दक्ष चलाया जा रहा था, तब हमारी टीम भी दोपहर में दो घंटे बच्चियों को समुदाय में जाकर पढ़ाते थे।

  • अभिभावकों और विद्यालयों के बीच बातचीत करने से थोड़ा गैप (gap) कम हुआ।

इतना सब करने के बाद भी बच्चों के लिए प्रतिदिन विद्यालय जाना सरल नहीं था। हर गाँव-टोले की अलग-अलग समस्याएँ हैं, रिटेंशन के लिए निरंतर प्रयास करते रहना आवश्यक है। जो मैं और मेरी टीम कर ही रहे हैं।

मैत्री प्रोजेक्ट के दो वर्ष मेरे लिए मेरी लर्निंग जर्नी (learning journey) के अहम वर्ष रहेंगें। इन दो वर्षो में मैंने कम्युनिटी को, कम्युनिटी की समस्याओं को करीब से जाना है, जो मुझे जीवन पर्यंत इनके समाधानों पर विचार करने के लिए प्रेरित करेगा।

अभिषेक

टीम सदस्य, मुंगेर


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