Friday, October 18, 2024

एडु-लीडर के भविष्य को संवारने के लिए, दोस्त ने उसकी माँ को मनाया

मेरा नाम खुशबू है। मैं प्रीति की दोस्त हूँ और मैं यह लेख प्रीति के बारे में साझा कर रही हूँ। प्रीति एक चौगाईन गाँव की लड़की है। उसने i-सक्षम संस्था में दो वर्ष की फेलोशिप पूरी की है। फ़ेलोशिप के उपरांत वो कुछ समय घर में रह रही थी। वह कोई जॉब इत्यादि नहीं कर रही थी परन्तु अपनी आगे की पढ़ाई जरुर कर रही थी।

एक शाम की बात है। वह शाम मेरे जीवन की सबसे परेशानी वाला रात में से एक थी। अचानक मेरे फ़ोन में आदित्य सर का कॉल आया। उनके कॉल का मतलब हमेशा किसी न किसी नई चुनौती से होता है। मैंने जैसे ही कॉल उठायी, सर ने मेरी तारीफ की। मुझे एहसास हुआ कि मेरे कार्यों ने उनका विश्वास जीत लिया है।  


उसके बाद सर ने अपनी बात रखी। उन्होंने बोला कि ‘प्रीति को किशनगंज भेजना है’ किसी भी तरह से उसे गाँव से बाहर निकालना हैं। 


आदित्य सर की बातों से मुझे समझ आ रहा था कि वो बहुत चिंतित हैं। मैंने उन्हें अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करने का आश्वासन दिया।


मैंने सर को आश्वस्त तो कर दिया परन्तु मैं पूरी रात सो नहीं पायी। क्योंकि मैं भी प्रीति के घरवालों को जानती हूँ। 

पूरी रात मेरा मन बस यही सोचता रहा कि प्रीति की माँ को कैसे मनाया जाए? उन्हें कैसे समझाया जाए?


मैं सुबह 4 बजे ही उठ गयी और प्रीति के घर जाने के लिए तैयार हो गयी। प्रीति की माँ मुझे देखते ही बोली कि आप आ ही गयी! परन्तु उनकी आँखें नम थी और चेहरा उदास था। मैंने उन्हें समझाया कि देखिये आंटी, यदि आज आप प्रीति को मौका देती हैं तो वह जरुर कुछ बड़ा कर सकती है। 

पर वो मान ही नहीं रही थीं। उनके आँसुओ ने मुझे भी हिला कर रख दिया।



जब मैंने देखा की प्रीति की माँ को मनाना इतना आसान नहीं है, तो मैंने आदित्य सर को कॉल किया। सर ने उन्हें समझाने के लिए बहुत तरीकों से प्रयत्न किया। 


उन्होंने यह तक कहा कि याद कीजिये जब प्रीति पेट में थी तब आपने कितने कष्ट सहे? 

कुछ अच्छा करने के लिए थोड़ा-बहुत सहन तो करना पड़ता ही है। आखिरकार सर की बातों का प्रीति की माँ पर प्रभाव पड़ा और प्रीति की माँ मान गई। 


उसी दिन प्रीति और मैं बस में बैठ गए। प्रीति बार-बार पीछे मुड़कर अपनी माँ को देख रही थी, मानो उसका दिल वहाँ छूट गया हो। मुझे डर था कि कहीं वह अपना मन न बदल ले और वापस घर न चली जाए। जब ट्रेन चल पड़ी और मैंने प्रीति को ट्रेन में बैठा हुआ देखा, तब जाकर मुझे संतोष हुआ। 


मैं खुद भूखी-प्यासी थी, लेकिन दिल में एक अजीब सा सुकून था। मुझे खुद पर गर्व महसूस हो रहा था कि मैंने वह काम कर दिखाया, जिसके लिए सर ने मुझ पर भरोसा किया था। 


अगले दिन मुझे यह सुनकर बहुत ख़ुशी हुई कि प्रीति ने वह हासिल कर लिया जिसके लिए हम तीन-चार दिनों से प्रयासरत थे मेरे लिए यह गर्व का पल था कि मैं इस यात्रा में उसकी मदद कर पायी


खुशबू कुमारी 

बडी इंटर्न, गया


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