मैत्री टीम की ट्रेनिंग के बाद, मैंने और साक्षी दीदी ने मिलकर गया टीम के सदस्यों को रिटेंशन के तरीकों के बारे में सिखाया। सबसे पहले, सभी को PMS सिस्टम में लॉगिन कराया गया और रिटेंशन के नियमों को अच्छे से समझाया गया। नियम यह था कि केवल उन्हीं बच्चों का रिटेंशन किया जाए, जो पहले से ही स्कूल आ रहे थे। जो बच्चे लंबे समय से स्कूल नहीं आ रहे थे, उन्हें बाद में रिटेंशन किया जाएगा, जब वे नियमित रूप से स्कूल आना शुरू कर देंगे।
सभी एडू लीडर्स ने अपने-अपने कक्षाओं में बच्चों की जाँच की और जो बच्चा नियमित रूप से स्कूल आ रहा था, उसका रिटेंशन किया। इस प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ सामने आईं। एक दिन, जब सभी एडू लीडर्स स्कूल से ऑफिस आए, तो उन्होंने अपनी-अपनी चुनौतियों को सभी साथियों के सामने रखा। हर किसी की समस्या अलग-अलग थी। इसके बाद, सभी साथियों ने मिलकर इन चुनौतियों का समाधान खोजा।
भालुहार गाँव की चुनौती:
भालुहार गाँव में एक बच्ची थी, जो प्रतिदिन स्कूल जाती थी। जब वहाँ के प्रधानाध्यापक अशुतोष कुमार से हमारे प्रयासों में मदद करने की बात कही गई, तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। जब खुशबू दीदी और प्रीति दीदी वहाँ गईं, तो प्रिंसिपल ने कहा कि वे हमें नहीं जानते और उन्होंने डाटा देने से मना कर दिया। प्रमोद भैया भी वहाँ गए, लेकिन स्थिति नहीं सुधरी।
प्रीति दीदी और मैंने मिलकर योजना बनाई कि हम दोनों खुद वहाँ जाएँगे। जब हम पहुँचे, तो प्रिंसिपल ने फिर से वही व्यवहार किया। लेकिन हम धैर्यपूर्वक उनसे बात करते रहे। हमने कक्षा में जाकर सभी बच्चों को बुलाया और प्रिंसिपल को स्थिति समझाई, लेकिन उन्होंने फिर भी डाटा देने से मना कर दिया। अंत में, कक्षा के शिक्षक ने सहयोग किया और हमें डाटा दिया।
B.T. बिगहा की समस्या:
B.T. बिगहा गाँव में चार बच्चे ऐसे थे, जिनमें से दो बच्चे गाँव छोड़ चुके थे, और बाकी दो बच्चे पढ़ाई के लिए तैयार नहीं थे। गया की पूरी टीम ने मिलकर इन बच्चों को प्रेरित करने का प्रयास किया। जब हमने उनकी माँ से बात की, तो उन्होंने कहा कि बच्चे पढ़ाई के लिए तैयार ही नहीं हैं, और उन्होंने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
जीविका दीदी से मदद:
जब माता-पिता से बात करने पर भी कोई सुधार नहीं हुआ, तो मैं और प्रमोद भैया जीविका दीदी (सुनीता कुमारी) से मदद लेने गए। हम तीनों फिर से बच्चे के घर गए। जब हम पहुँचे, तो बच्ची की माँ घर पर नहीं थी, और पापा ने बात करने से मना कर दिया। फिर बच्ची की दादी ने भी यह कहकर बात टाल दी कि जब बच्ची पढ़ना नहीं चाहती, तो उसे छोड़ दीजिए।
जीविका दीदी ने बच्ची से कहा, "अगर तुम नहीं पढ़ोगी, तो माँ-पापा को पुलिस पकड़कर ले जाएगी।" लेकिन बच्ची ने फिर भी मना कर दिया और बोली, "अगर जेल भी जाना पड़े, तो चले जाएँगे, लेकिन पढ़ने नहीं जाएँगे।" इस पर हम तीनों उदास हो गए, लेकिन हमने हार नहीं मानी।
परिणाम और सीख:
रिटेंशन की अंतिम तिथि आ गई थी, और हमें कुछ बच्चों को छोड़ना पड़ा। इस अनुभव से हमने सीखा कि कुछ बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास करने की आवश्यकता होती है।
श्रृंखला कुमारी
मैत्री प्रोजेक्ट, गया
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