Wednesday, June 28, 2023

क्या सीमा का निर्णय सही था? अगर आप उनकी जगह होते, तो आपका निर्णय क्या होता?


नामांकन कराती सीमा


हर दिन की तरह आज भी आमस प्रखंड के नीमा गांव की रहने वाली सीमा सुबह-सुबह बच्चियों के नामांकन हेतु गांवों के निरीक्षण के लिए निकल पड़ी। आज सीमा अकेली नहीं थीं बल्कि उनके साथ उनकी एक सहयोगी भी मौजूद थी इसलिए गंतव्य पर पहुंचने के दौरान दोनों ने आपस में विचार विमर्श किया कि क्यों न समय को ध्यान में रखते हुए दो साथी दो अलग-अलग स्कूलों में चले जाएं। इस बात पर सहमति बनने के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए मगर मंजिल एक रही अनामांकित बच्चियों का नामांकन। 


सीमा ने शेरघाटी ब्लॉक के बार गांव का सर्वे पहले किया था इसलिए उन्हें जानकारी थी कि वहां पर दो स्कूल हैं। पहला, एक प्राथमिक विद्यालय बार स्कूल और दूसरा मध्य विद्यालय बार हुसैनगंज स्कूल है। सर्वे के दौरान उन्हें पता चला था कि बार के पोषक क्षेत्र वाले बच्चे बार के ही स्कूल में नामांकन करवाते हैं और वार हुसैनगंज वाले पोषक क्षेत्र वाले बच्चे वार हुसैनगंज में ही नामांकन करवाते हैं इसलिए सीमा प्राथमिक विद्यालय बार में बच्चों के नामांकन के लिए चली गई। साथ ही अपने साथ आईं सहयोगी अंजना ने मध्य विद्यालय वार हुसैनगंज में बच्चों के नामांकन की कमान संभाली। 


जब सीमा बच्चों और उनके अभिभावकों को लेकर बार स्कूल में पहुंची तो वहां उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। प्राथमिक विद्यालय बार स्कूल के हेडमास्टर ने कहा, “आज हम नामांकन नहीं लेंगे।” हालांकि ये स्थिति पहली दफा नहीं थी बल्कि कई बार सीमा ने ऐसी चुनौतियों का सामना किया था इसलिए वे स्पष्ट थी कि इन चुनौतियों के बाद नामांकन हो ही जाएगा इसलिए उन्होंने हेडमास्टर को समझाने का प्रयास किया और कहा, “सर, नामांकन ले लीजिए।” सीमा के इतना कहते ही हेडमास्टर ने कहा, “ऐसे कैसे लेंगे नामांकन? क्योंकि अब तो नामांकन ऑनलाइन होता है और जब तक बच्चे का सारा डॉक्यूमेंट हमारे पास उपस्थित नहीं होगा, तब तक नामांकन नहीं लेंगे।” 


इतना सुनने के बाद सीमा ने कहा, सर, मुझे भी एस आर नंबर लेना रहता है। इस पर हेडमास्टर ने तल्ख मिजाज में कहा, कोई बात नहीं। आप किसी दूसरे दिन आकर ले लीजिएगा। इस पर सीमा ने कहा, नहीं सर। आज ही नामांकन करवाएंगे और एस आर नंबर किसी दूसरे दिन लेने आएंगे। मुझे आज ही एस आर नंबर नहीं लेना है बल्कि नामांकन कराना है। इसपर हेडमास्टर ने कहा, ठीक है। आधार कार्ड का फोटो कॉपी करवा कर लाइए। सीमा तुरंत आधार कार्ड की कॉपी करवाकर ले आईं लेकिन तब भी उन्हें 15 मिनट तक इंतजार कराया गया मगर तब भी नामांकन के लिए नहीं बुलाया गया। इस पर सीमा ने हेडमास्टर से मिल कर उन्हें कहा, सर, मैं 20 मिनट तक इंतजार कर लूंगी लेकिन मुझे अब नामांकन और एस आर नंबर आज ही चाहिए। अंततः हेडमास्टर को बच्ची का नामांकन करना पड़ा और सीमा के इतने प्रयास के बाद बच्ची का एस आर नंबर भी मिला। इस प्रकार सीमा ने प्राथमिक विद्यालय बार में दो लड़कियों का नामांकन करवाया। 


इसके बाद सीमा के अंदर आत्मविश्वास जाग उठा और अब वे बार हुसैनगंज स्कूल में नामांकन के लिए चल पड़ी। सीमा जैसे ही स्कूल के पास पहुंची तब अंजना का फोन आया। फोन के दूसरी ओर से आवाज आई, दीदी, आज सर नामांकन नहीं लेंगे। इस पर सीमा ने अंजना से कहा, कोई बात नहीं। मैं अभी स्कूल ही पहुंचने वाली हूं। 


सीमा ने जैसे ही स्कूल में कदम रखा, उन्हें उनकी पहली चुनौती मिल गई। हेडमास्टर गेट के पास ही खड़े थे। सीमा ने उनका अभिवादन किया लेकिन हेडमास्टर ने बिना अभिवादन का जवाब दिए ही प्रश्नों की बौछार कर दी और पूछा, “आप भी आई सक्षम से ही आए हैं?” इस पर सीमा ने हामी भरी। इस पर हेडमास्टर ने कहा, ठीक है। आप अंदर जाकर बैठिए।” इसके बाद सीमा अंदर जाकर बैठ गईं, तभी हेडमास्टर ने कमरे में कदम रखते हुए ही पूछा, आपको भी नामांकन करवाना है? सीमा ने हामी भरी और कहा, जी हां सर। आज ही नामांकन करवाना है। उन्होंने दोबारा सुनिश्चित करने के लिए पूछा कि सच में आज ही नामांकन कराना है, तो सीमा ने ढता से जवाब दिया कि जी हां, आज ही नामांकन कराना है। 


इस पर हेडमास्टर ने कहा, ठीक है। अभी मेरे पास एक भी एडमिशन का फॉर्म नहीं है, तो इसे आप फोटो कॉपी करवा कर लाइए और इसे भरिए तभी एडमिशन आज के डेट में लेंगे। अन्यथा जब तक हमारे पास 5 बच्चे एक साथ उपस्थित होंगे तब तक एडमिशन नहीं लेंगे। इतना सुनने के बाद सीमा ने स्वयं जाकर फॉर्म का फोटो कॉपी करवाया और लाकर उसे भरकर दे दिया। 


सीमा द्वारा इतना कार्य करने के बाद हेडमास्टर ने दोबारा कहा, आप तो एडमिशन करवा कर चले जाइएगा लेकिन बच्चे नहीं आएंगे इसलिए बच्चे के विद्यालय नहीं आने पर जिम्मेदारी आपकी होगी क्योंकि पहली कक्षा में भी आपने कई बच्चों का एडमिशन करवा लेकिन एक भी बच्चे उपस्थित नहीं होते हैं इसलिए आप आवेदन लिखिए और इसमें अपना हस्ताक्षर करिए। इसके साथ ही अपने संस्था का नाम लिखिए और बच्चों के अभिभावक से भी रोज आने के लिए हस्ताक्षर करवाइए, तभी हम आज एडमिशन करेंगे अन्यथा नहीं करेंगे। 


इस पर भी सीमा राजी हो गई और कहा, ठीक है सर। अंततः सीमा ने लिखित आवेदन दे दिया मगर सीमा के मन में उधेड़बुन थी कि ये आजतक की सबसे बड़ी चुनौती थी लेकिन वे खुश थी कि उन्होंने मध्य विद्यालय  हुसैनगंज में 4 बच्चियों का नामांकन करवाया। 


इसके बाद सीमा ने हेडमास्टर को धन्यवाद बोलते कहा और अपने दूसरे गंतव्य की ओर बढ़ गईं। जैसे-जैसे सीमा के कदम आगे बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे मन में सवालों का बवंडर उठ रहा था लेकिन वे समझ नहीं पा रही थी। अचानक सीमा के मन में मन में विचार आया कि दूसरे गांव में भी नामांकन के लिए चले जाते हैं। इसके बाद सीमा महमदपुर गांव में बच्चों के नामांकन के लिए चल पड़ी। यहां भी उन्हें सर्वे करने का फायदा हुआ क्योंकि उनके पास उन बच्चियों के अभिभावकों का नंबर और अन्य जानकारी थी, जिनका नामांकन नहीं हो सका था इसलिए उन्हें तुरंत अपना फोन निकाला और एक नंबर डायल किया।


उन्होंने एक अभिभावक को कॉल करके अपने बच्चे को लेकर महमदपुर स्कूल में लेकर आने के लिए कहा। अभिभावक भी अपने बच्चे को लेकर महमदपुर स्कूल में पहुंच गए। स्कूल पहुंचते ही एक शिक्षक ने पूछा, क्या आप लोगों का भी कोई प्रोग्राम करना है क्योंकि अभी-अभी प्रथम कक्षा वाले प्रोग्राम कर रहे हैं। इस पर सीमा ने कहा, नहीं सर। मुझे तो बच्चे का नामांकन करवाना है। इस पर उन्होंने कहा, ठीक है। आप जाकर हेडमास्टर से बातचीत कीजिए। 


सीमा ने हेडमास्टर से बातचीत करके और सारे कागजात देकर 3 बच्चियों का नामांकन कराया। सीमा और हेडमास्टर के बीच बातचीत चल ही रही थी कि हेडमास्टर ने थोड़ा रूक कर कहा, आप इतनी मेहनत दूसरों की बच्चियों के लिए कर रही हैं क्योंकि ईट-भट्टे पर काम करने वाले अभिभावक आने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वो शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं है और आप ईट-भट्टे पर जाकर माता-पिता का हाथ पकड़ कर उनके बच्चों का नामांकन करवा रहे हैं। इतना कोई भी नहीं कर सकता है। आप इतनी मेहनत कर रही हैं। दूसरे के बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए आपके मेहनत का वर्णन नहीं किया जा सकता है। इतना तो हम लोग टीचर हैं फिर भी नहीं कर सकते हैं, जितना आप कर रही हैं। ठीक इसी प्रकार जैसे आप बच्चियों का नामांकन करवा रही हैं, ठीक उसी प्रकार आप अपना पता और फोन नंबर दीजिए।” 



इतना सुनने के बाद सीमा ने सवालिया निगाहों से देखते हुए पूछा, “लेकिन क्यों सर?” इस पर हेडमास्टर ने कहा, “आप जिस बच्चे का नामांकन करवाए हैं, अगर वह बच्चा विद्यालय में अनुपस्थित रहेगा तो आपके पास तुरंत कॉल जाएगा। जिस तरीका से आप अभी इनके ईट-भट्टे पर से लाकर एडमिशन करवा रहे हैं, ठीक उसी प्रकार विद्यालय के समय बच्चे के विद्यालय में उपस्थित नहीं रहने पर आप आकर बच्चे को स्कूल में उपस्थित करवाइएगा।” 


सीमा मौन रही लेकिन बच्चियों का चेहरा देखकर उन्होंने अपना पता और नंबर तो साझा कर दिया और उन्होंने 3 विद्यालयों में 9 बच्चियों का नामांकन कराया लेकिन अपनी निजी जानकारी साझा करने और लिखित में घोषणा-पत्र देने के कारण सीमा चिंतित हैं क्योंकि अगर कोई बच्ची स्कूल नहीं जाएगी, तो उन्हें दोषी ठहराया जाएगा। भले ही सीमा ने नामांकन और जागरूक करने का बीड़ा उठाया हो लेकिन क्या बार-बार सीमा को कॉल करना और बच्चों के अनुपस्थित रहने पर जिम्मेदार ठहराना सही है और क्या सीमा का निजी जानकारी साझा करना सही है जबकि सीमा ने तो समाज में बदलाव के लिए झंडा उठाया है? 

Wednesday, June 21, 2023

सीमाः ऑटो ना मिलने के कारण पैदल चलना पड़ा लेकिन कम नहीं हुआ हौसला

साल 2023 में NGO प्रथम द्वारा 17वीं वार्षिक शिक्षा रिपोर्ट (ASER), 2022  के अनुसार कोविड-19 के दौरान आर्थिक तंगी के कारण लड़कियां स्कूल जाने से वंचित हो गई और कई लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी गई। साथ ही रिपोर्ट बताती है कि स्कूलों में गैर-नामांकित 11-14 आयु वर्ग की लड़कियों के अनुपात में साल 2018 के 4.1% से 2022 में 2% की कमी एक महत्त्वपूर्ण सुधार और सकारात्मक विकास है। यह इंगित करता है कि शिक्षा में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के प्रयास प्रभावी रहे हैं और इससे स्कूलों में लड़कियों के नामांकन को बढ़ाने में मदद मिली है। 


हालांकि ग्रामीण इलाकों की बात करें तो वहां शिक्षा के स्तर में अब भी व्यापक बदलाव की आवश्यकता है, जिसे MAITRI प्रोजेक्ट के जरिए सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है। i-Saksham के तत्वधान में चलाए जा रहे MAITRI प्रोजेक्ट के जरिए एडूलीडर्स गांवों-कस्बों एवं दुर्लभ परेशानियों का सामना करते हुए अनामांकित बच्चियों का दाखिला सरकारी विद्यालयों में करा रहे हैं। ये एडू-लीडर्स मुंगेर, जमुई एवं गया के ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जो विभिन्न चरणों में अनामांकित बच्चियों की पहचान करके उन्हें शिक्षा से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं। 


इस कड़ी में वे सबसे पहले सर्वे करते हैं, जिसमें वे घर-घर जाकर अनामांकित बच्चों को चिह्नित करते हैं एवं अभिभावकों को समझाने का प्रयास करते हैं। एडू-लीडर्स उन्हें शिक्षा की महत्ता बताते हैं, सरकारी योजनाओं की जानकारी देते हैं एवं जरूरी कागजातों को इक्ट्ठा करते हुए बच्चियों का नामांकन नजदीक के विद्यालय में कराते हैं। 


नामांकन कराती सीमा



और पैदल चल पड़ी सीमा 


सीमा दिनांक 27/5/2023 दिन शनिवार को सुबह 5:30 बजे दिनचर्या एवं घर के कामों को निपटाकर अनामांकित लड़कियों के नामांकन के लिए ढाबचिरैया के लिए चल पड़ी। जब वे शेरघाटी पहुंची, तो उन्होंने ओटो रिजर्व करने का निर्णय लिया क्योंकि गांव की दूरी अधिक होने के कारण रास्ता काफी कठीन था लेकिन दुर्गम रास्ता होने के कारण ओटो भी वाला तैयार नहीं हुआ। 


ऑटो ना मिलने और रास्ता कठीन होने की बात को दरकिनार करते हुए सीमा ने बिना किसी का इंतजार किए पैदल ही चलने का निर्णय लिया। इतने में कुछ ही दूर जाने के बाद उन्हें एक और ओटो वाला दिखा, जिससे उन्होंने बात करने की कोशिश की और कहा, भईया, ज्यादा दूर नहीं जाना है। आप बीच रास्ते में एक स्कूल पड़ता है। आप मुझे बीच रास्ते में ही उतार दिजिएगा। बार-बार कहने के बाद ऑटो वाले ने हामी भरी और सीमा स्कूल पहुंच गईं।


अनामांकित बच्चों का हुआ नामांकन 


स्कूल पहुंचने के बाद उन्होंने देखा कि उस समय तक एक भी टीचर उपस्थित नहीं थे। स्कूल में केवल बच्चे थे। इस दौरान सीमा ने सोचा कि क्यों न गांव में जाकर बच्चों के अभिभावकों से मिलकर बातचीत की जाए। इसके बाद वे ढाबचिरैया गांव में जाकर बच्चों के अभिभावकों से मिलकर बातें करने लगी और उसके बाद वे टोला कुशी में आ गई। 


वहां भी बच्चों के अभिभावकों से मिलकर बातचीत करके दोबारा स्कूल में पहुंची, तब तक प्रिंसिपल सर भी आ चुके थे। उन्होंने प्रिंसिपल से मिल कर नामांकन के लिए बात चीत की और उन्होंने 8 बच्चों का नामांकन कराया, जिसमें 2 लड़कियां और 4 लड़के शामिल थे। 


सीमा के ऑटो ना मिलने की समस्या यहां भी थी लेकिन उन्होंने हार ना मानते हुए ढाबचिरैया स्कूल से काफी दूरी बसे एक गांव के घुजी स्कूल में पहुंच गई। वहां भी उन्होंने बच्चों के माता-पिता से मिलकर नामांकन के लिए प्रोत्साहित किया और 2 अनामांकित लड़कियों का घुजी स्कूल में नामांकन करवाया गया।  


सीमा ने सुबह-सुबह की अपने घर की चौखट को अनामांकित लड़कियों एवं लड़कों के नामांकन के लिए पार किया था और उनका यह प्रयास दिन ढलते-ढलते यर्थाथ में तब्दील हो रहा था।

 

Saturday, June 17, 2023

Meet Sunita, the Silent Trailblazer from a remote Bihar village: Inspiring Transformation, Defying Norms, and Empowering Girls

In the remote and underprivileged areas of Bihar, where we are actively running the i-Saksham fellowship, the struggles faced by the youth are all too common. The lack of basic amenities and resources makes it incredibly challenging for individuals to access education and opportunities for progress.

Meet Sunita, a determined young girl from the small village of Jatikutiya in the Mahagama Panchayat. Despite the obstacles she faced, Sunita joined our fellowship in the fifth Cohort. She holds the distinction of being the first girl from her village to pursue higher education. Initially, upon joining the fellowship, she spoke very little and remained silent during conversations. She would feel shy when nursery rhymes were sung during the training sessions as she never had such an environment in her school. Her low confidence stems from her limited exposure. 
During a classroom visit by her assigned Buddy, in the underserved school where she is placed as part of the fellowship program, she expressed her desire to teach math but was unsure about how to go about it. To support her, the class was taken over by the Buddy. Many times, the children in that school wouldn't come to study, prompting Sunita to fetch them individually. Sadly, her efforts often went in vain.
There were moments when Sunita contemplated quitting, but with the support and encouragement from her buddy and i-Saksham team, she found the strength to persevere. This marked a turning point in her life. Today, Sunita confidently asserts her ability to speak fearlessly and has become an inspiration to all. Over the past year, Sunita has conducted engaging activities and utilized teaching-learning materials to teach all subjects in her school. She has witnessed significant improvement in the learning abilities of her students, with more children attending school than ever before. 

 Adhawesh Kumar, a teacher at UMS Jatikutiyal, shared an encouraging observation during a visit to their middle school in Jatikutiya. He noted the positive impact Sunita has had on the community.  He said, "It isn’t just that she is assisting us, but the fact that she comes from such a difficult and backward background makes all the difference and it is inspirational for all the girls in the vicinity! We have noted that since Sunita joined, the number of children attending school had significantly increased and it is only increasing. And if girls like her continue to grow and inspire like this, creating a positive environment in the society for girls and women is definitely possible."

Sunita's journey didn't end with the fellowship. She took the initiative to continue her studies and achieve financial independence, leading to her selection as a Maitri Fellow. She now works with the i-Saksham edu-leaders and team, supported by Educate Girls, to ensure every girl in Bihar receives education and enrollment opportunities. 

Sunita's life took a transformative turn through the i-Saksham fellowship. It provided her with the opportunity to explore the world outside her secluded village, interact with role models, like-minded individuals, and peer groups, and gain exposure to diverse perspectives. Empowered with resources, mentorship, and guidance, she has turned her dreams into tangible action. Sunita's story reminds us that even the most challenging circumstances can be overcome with determination and support. Sometimes we need to walk alone for some distance and if we are on the right path, we will meet like-minded people with whom we can share our journey. Let's celebrate her journey and inspire more young girls to reach for their dreams!

Monday, June 12, 2023

Captivating City Chronicles: A Tapestry of Stories and Perspectives (Ayush)

Determined to ensure the return of Every Girl to School, our team members are fearlessly facing the sweltering heat of Bihar's summer. They tirelessly traverse numerous villages, extending their support not only within their own assigned locations but also lending a helping hand to their teammates in other areas. One of our team members, Ayush, found himself immersed in profound reflections while carrying out his duties in a new city - Gaya. As he made his way back to the office, he couldn't help but deeply observe the city, leading him to contemplate the following insights.

"It was around 12:00 noon. As I was heading from my workplace (villages) to the office, I suddenly saw an old man of around 70 years selling ice cream on the streets, facing the scorching heat and sunlight. Next to him was a hotel where a 13 or 14-year-old boy was scrubbing and cleaning utensils. Meanwhile, a group of 22 or 25-year-old boys was wandering here and there, listening to loud music in their cars. Sometimes I think about how difficult life is. Different people have different rules to live by. But then I remember that everyone has their own goals. 

    For the past three days, I have been in Gaya. I am observing Gaya deeply, trying to understand it. This city is beyond my comprehension. Not just Gaya, but other cities as well are beyond my comprehension. When our needs are not met in the village, we run towards the cities. With closed eyes, we enter an unfamiliar city. Sometimes we come across familiar faces in these unfamiliar cities, and sometimes these cities remain forever unfamiliar. 

    Nothing is predetermined in life. There is no foundation for anything to be predetermined, such as what a 70-year-old man should do or what tasks are assigned to a 14-year-old boy. What should 25-year-old boys do? We have a path, but it has no set standards. Often, when we are tired, we think that life is not dancing to our tunes. It's not everything we desire. In reality, there is no definition of life. It is an independent entity, with one end bound by our needs and responsibilities and the other end completely free. In this way, it is uncertain when life will take a turn. We all are playing different roles in our stories. Some carry the burden of living at the age of 70, while others bear the weight of responsibilities at the age of 14. There are those who roam without any responsibilities or work at the age of 25. We all have our own characters, and the amazing thing is that we will fulfill our acting until the curtain rises.

    Many times I wonder what is there in the city that attracts everyone. Then suddenly I see the crowd. I see an ice cream shop, a fruit and vegetable cart. I see a rickshaw puller. Later, I observe the entire city. It absorbs everyone within itself. "

- Ayush Babu, Gaya

Tuesday, June 6, 2023

विश्व पर्यावरण दिवस पर एडुलीडर प्रियांजलि ने आयोजित किया कार्यक्रम

 

पर्यावरण दिवस पर विद्यालय में पेड़ लगाते हुए।

i-Saksham के बैच-8 की एडू-लीडर प्रियांजलि ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्राथमिक विद्यालय हसनपुर में बच्चों को पर्यावरण दिवस को लेकर जागरुक करने के लिए शिक्षकों के सहयोग से नाटक का आयोजन किया। 

विद्यालय में जगह की कमी थी इसलिए एडू-लीडर एवं शिक्षक थोड़ी आशंकित थे और उन्हें जागरुकता कार्यक्रम करना थोड़ी मुश्किल लग रहा था। उस गांव में एक प्राथमिक और राजकीय मध्य विद्यालय भी थे, जहां एक बड़ा ग्राउंड था और वहां कार्यक्रम को आसानी से कराया जा सकता था इसलिए शिक्षकों ने प्रिंसिपल सर से बात की ताकि इस कार्यक्रम को थोड़े बड़े पैमाने पर किया जा सके। प्रिंसिपल सर ने कार्यक्रम को करने के लिए हामी भर दी और स्वयं भी कार्यक्रम में उपस्थित हुए। 

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर शिक्षकों एवं ए़डू-लीडर ने बच्चों को वृक्षारोपण के प्रति जागरुक किया एवं वृक्षों की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया ताकि वे लंबे समय तक हमारे साथ बने रहें। साथ ही इस अवसर पर सामुदायिक तौर पर अभिभावकों, शिक्षकों एवं बच्चों ने वृक्षारोपण किया। जैसे- आंवला, नीम, आम आदि क पौधे लगाए गए। 

पर्यावरण दिवस पर विद्यालय में पेड़ लगाते हुए।

अंत में बच्चों की ओर से एक नाटक प्रस्तुत किया गया, जिसमें उन्होंने वृक्षारोपण करने के लिए लोगों को जागरुक किया। कुछ बच्चों ने पेड़-पौधे बन कर वर्तमान समय की हकीकत बयान कि और बढ़ते तापमान को देखते हुए वृक्षारोपण करने के लिए लोगों को उत्साहित किया कि अगर वे एक पेड़ काटेंगे, तो दो पेड़ लगाएंगे और उसकी रक्षा करेंगे। 

यह कार्यक्रम i-Saksham के एडु-लीडर के सहयोग से किया गया क्योंकि उन्होंने ही शिक्षकों के साथ मिल कर कार्यक्रम को करने का निर्णय लिया था एवं सारी तैयारियां भी की थी। 

Sunday, June 4, 2023

Claiming Identity: Empowering Girls through Self-Agency to Inspire Change and Challenge Gender Stereotypes

   

    One of the sessions that take place during the i-Saksham Fellowship for Community Change leaders ' Capacity Building in Leadership is about self-agency. The objective of this session is to create awareness about agency and empower individuals to take control of their lives and make positive changes.

In one such session, the girls shared their personal stories of change and empowerment, highlighting the importance of self-agency. Here is how the session in general rolls!

    To kickstart the session, a picture of Amal Hussein, a girl affected by war and malnutrition, was shared, which sparked a discussion about values, thoughts, and actions. The girls were encouraged to think deeply about the impact of their choices and actions and how they could use their agency to create positive change in their lives and communities. The session also incorporated Kamla Bhasin's writings to encourage critical thinking and reflection.

    Kamla Bhasin's stories and poems provided an opportunity for the girls to explore their beliefs and values and to challenge traditional gender roles and stereotypes. During the session, Rakhi shared her experience of advocating for boys and girls to study together in her school, while Rozi shared how she encouraged girls to play with boys during playtime. Nikita shared how she was the only girl in her village who goes out and does all the work, which highlighted the importance of breaking gender stereotypes and challenging traditional roles.

 During the session, the girls actively participate in heartfelt exchanges, revealing their profound awareness of how traditional gender roles confine and restrict them, leaving them helpless and reliant. Their testimonials, wherein they acknowledge these limitations and strive to challenge them, serve as a powerful source of empowerment. The session centers on instilling the importance of self-agency, critical thinking, and reflection, equipping the girls with the necessary tools to effect positive transformations in their lives and communities.