Friday, September 26, 2025

“वो स्कूल नहीं जाती, उससे क्या बात करेंगी?”

छर्रा पाटी—मुंगेर का एक ऐसा गाँव, जिसका नाम सुनते ही लड़ाई-झगड़े और छेड़छाड़ की कहानियाँ याद आ जाती थीं। 

बाहरी लोगों के प्रति यहाँ का रवैया इतना सख़्त माना जाता था कि कोई भी वहाँ जाने से कतराता था। सच कहूँ तो जब मैंने वहाँ जाने का फैसला किया, तो मेरे मन में भी डर था। रास्ते भर एक ही सवाल घूमता रहा—“क्या मुझे सच में जाना चाहिए?”

लेकिन हिम्मत जुटाकर मैंने अपनी साथी मोंटी और एडू-लीडर पूजा दीदी के साथ उस गाँव का रुख किया। जैसे ही हम वहाँ पहुँचे, अजीब सी घूरती नज़रें और कानाफूसी ने हमें घेर लिया, मानो हमने कोई अनजानी सीमा पार कर दी हो। पर हमने सब अनसुना किया और सीधे लक्ष्मी के घर पहुँचे।

लक्ष्मी तो नहीं मिली, लेकिन उसकी 13 साल की बहन पूनम चूल्हे पर गाय के लिए चारा पका रही थी। छोटी उम्र, बड़ी ज़िम्मेदारियाँ। जब मैंने उससे बात करने की कोशिश की, तो उसकी चचेरी बहन ने हँसकर कहा—“वो स्कूल नहीं जाती, उससे क्या बात करेंगी?” 

यह सुनकर मेरा मन ठहर गया। मैंने पूनम से सीधे पढ़ाई की बात करने के बजाय, पहले उसकी दिनचर्या के बारे में पूछा। थोड़ी देर बाद जब मैंने धीरे से पूछा, “तुम स्कूल क्यों नहीं जाती?” तो उसने पहले बहाना बनाया, लेकिन फिर सच बता दिया। बोली—“मम्मी को छोटा बच्चा हुआ है, इसलिए घर का सारा काम मुझे करना पड़ता है। शाम को 6 बजे ट्यूशन जाती हूँ।”

इतनी जिम्मेदारियों के बीच जब मैंने पूछा कि वह बड़ी होकर क्या बनना चाहती है, तो उसकी आँखों में अचानक एक चमक आ गई। उसने कहा—“डॉक्टर। लोगों का इलाज करना चाहती हूँ।” उस पल, उसकी मासूम आवाज़ और बड़ी सोच ने मुझे अंदर तक छू लिया।

बातचीत के दौरान आस-पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए। मैंने पूनम से एक तस्वीर लेने की अनुमति माँगी, लेकिन सबने विरोध किया। मैंने उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए, सबके सामने ही फोटो डिलीट कर दी। उस एक पल में मैं समझ गई कि यहाँ सबसे पहली और सबसे मुश्किल चुनौती भरोसा जीतना है।

बाद में, पूजा दीदी ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि शुरू में लड़के उनका पीछा करते थे, गलत बातें करते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने मुझसे कहा—“डर तो लगता है दीदी, लेकिन लोगों की बातों को अनसुना करके हमें अपना काम करते रहना है।” उनकी यह बात मेरे लिए सिर्फ एक सलाह नहीं, बल्कि नेतृत्व का सबसे बड़ा सबक थी।

उस दिन मैं छर्रा पाटी से सिर्फ एक गाँव का दौरा करके नहीं लौटी। मेरे लिए असली शिक्षा पूनम की आँखों में थी, जो जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर भी डॉक्टर बनने का सपना देख रही थी। और असली नेतृत्व पूजा दीदी के उस साहस में था, जो रोज़ डर का सामना करके भी अपना काम करती हैं। यह यात्रा मेरे लिए डर से हिम्मत तक और अनजानेपन से भरोसे तक का एक यादगार सफ़र बन गई।

........

लेखिका के बारे में:

नाम: सरिता

परिचय: सरिता पिछले 3 सालों से i-Saksham से जुड़ी हुई हैं। वह बैच-9 की एडू-लीडर रह चुकी हैं और वर्तमान में मुंगेर में 'बडी' की भूमिका में काम कर रही हैं।

लक्ष्य: सरिता का लक्ष्य है कि उनके गाँव की जो भी बच्चियाँ किसी भी कारण से पढ़ाई छोड़ देती हैं, उन्हें वापस शिक्षा से जोड़ा जाए।

No comments:

Post a Comment