नमस्ते
साथियों
मैं 20
फरवरी को, गया
ज़िले के बांके बाज़ार स्थित परसाचुआ
गाँव में रिटेंशन करने के लिए गया था। इस गाँव के चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं और बीच
में यह गाँव बसा हुआ है।
जब
मैं गाँव में पहुँचा तो मैंने देखा कि सभी बच्चे
एक जगह इकट्ठे होकर सड़क पर खेल रहे थे। मुझे देखकर सभी बच्चे इधर-उधर भागने लगे।
कोई अपने घर में छुपकर जा दुबका तो कोई अपनी
छत पर चढ़ गया! जैसे कि इन्होनें भूत देख लिया हो।
यह
सब देखकर मैं सोचने लगा कि अब इन बच्चों को
कैसे समझाया जाए?
तब
हम एक-एक बच्चे के घर गए, उनके अभिभावकों से मिले। उनके बच्चों को बुलाने को कहा, तो
बच्चे आ भी गए। हमने सभी से प्रश्न करना शुरू किया, कि आप विद्यालय क्यों नहीं गए हो?
कोई बच्चा बोला कि कॉपी-कलम नहीं है, कोई बोला कि ड्रेस
साफ़ नहीं है और भी अन्य बहाने बनाने लगे।
अभिभावक
भी बोलने लगे कि विद्यालय से आकर बच्चे अपनी कॉपी, जहाँ-तहाँ रख देतें हैं। मैंने बच्चों
को समझाने का प्रयास किया कि ऐसा नहीं करते हैं। ऐसा करने से विद्या नहीं आती है।
मैंने
इस टोले से दो बच्चों का एडमिशन कराया
था। अन्य अभिभावकों को कहीं यह न लगे कि मैं बस इन्ही दो बच्चो के बारे में चिंतित
हूँ। यह सोचकर मैंने सभी बच्चों को समझाना शुरू किया। उन्हें रोज़ विद्यालय जाने के
लिए मोटीवेट किया।
मेरा
अनुभव यह भी है कि महादलित टोले के बच्चे,
दूसरे बच्चों को देखा-देखी विद्यालय जाते हैं। कितने बच्चे यह भी बोलते हैं कि
इस टोले के बच्चे रोज़ विद्यालय नहीं जाते हैं। उनके मन में इस तरह की बात घर कर लेती
है।
हमने
सबको समझाने के बाद अभिभावकों से बच्चों को रोज़ विद्यालय भेजने का आग्रह किया। सभी
ने हाँ कहा कि हम कल से बच्चे को विद्यालय भेजने की पूरी कोशिश करेंगें।
प्रमोद कुमार
मैत्री टीम, गया
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