साथियों, आपने पिछले माह, रीतू (बेगूसराय) का अनुभव- “दरी की व्यवस्था” तो पढ़ा ही होगा। अब पढ़िए काजल (जमुई) द्वारा दरी की व्यवस्था की माँग का अनुभव।
नमस्ते साथियों,
सर
कुछ नहीं बोलते थे।
जब मैं फरवरी के अंतिम सप्ताह में स्कूल गयी तो मैंने अपनी क्लास में बेंच लगे हुए देखे। बच्चे भी खुश थे।
मैं तुरंत सर के पास दौड़कर गयी और उन्हें प्रणाम किया। सर ने पूछा कि अब तो तुम खुश हो न? क्योंकि मैंने तुम्हारी बात मान ली है। बच्चों के लिए दरी नहीं, बेंच ला दियें हैं।
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