Tuesday, July 23, 2024

टीम के साथ कलकत्ता की दो संस्थाओं का विजिट किया

आज़ाद फाउंडेशन

जब हम सभी एडु-लीडर्स मोकामा हावड़ा एक्सप्रेस से हावड़ा स्टेशन पर उतरे तो मुँगेर की एडु-लीडर्स वहाँ पहले से पहुँचकर हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। हम सभी एक साथ हुए और खूब बातें की। हमने समय बिताने के लिए अन्ताक्षरी भी खेली। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम, मुँगेर की एडु-लीडर्स से पहली बार मिल रहे हैं। 


जब सभी लोग एक जगह एकत्रित हो गए तो शिवानी दीदी ने कैब (Cab) बुक की और हम कलकत्ता सेवा केंद्र की ओर चल दिए। हम प्रातः नौ बजे वहाँ पहुँचे और देखा कि प्रिंस सर, नम्रता दीदी, गया और मुज्ज़फ्फरपुर के एडु-लीडर्स वहाँ पहले से उपस्थित थे। आज़ाद फाउंडेशन जाने में अभी समय था तो हम सभी ने फ्रेश होकर नाश्ता इत्यादि कर लिया।


फिर हम सभी चल दिए अपनी मंजिल की ओर- जो थी कलकत्ता की आज़ाद फाउंडेशन। हम वहाँ पहुँचे हमारा आदर-सत्कार हुआ और हमें मीटिंग करने के लिए एक कक्ष मिला। मीटिंग की शुरुआत छोटे से इंट्रोडक्शन से हुई। नम्रता दीदी और प्रिंस सर ने i-सक्षम के बारे में जानकारी साझा की।


आज़ाद फाउंडेशन, विज़न और उद्देश्य: 


इसके बाद आज़ाद फाउंडेशन के बैकग्राउंड और वर्तमान कार्यों के बारे में एक प्रेजेंटेशन के माध्यम से हम सभी को बताया गया। हमने जाना आजाद फाउंडेशन की शुरुआत 2008 में दिल्ली से हुई थी। कोलकाता में इसकी शुरुआत 2015 में हुई। यह संस्था महिलाओं और लड़कियों के लिए काम करती है।

वेबसाइट: https://azadfoundation.com/


आजाद फाउंडेशन का विज़न “we envision a world, where all women in particular” था।

(हम एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं जहाँ विशेष रूप से सभी महिलाएँ हो।)


इस संस्था में 18 से 35 वर्ष की महिलाओं और लड़कियों को ड्राइविंग (driving) सिखाई जाती है।

इस संस्था में काम करने वाली महिलाओं को leader कहा जाता है। यहाँ महिलाओं को सेल्फ डेवलपमेंट, सेल्फ डिफेन्स, स्पोकन इंग्लिश, मैप रीडिंग, सिक्योरिटी, कम्युनिकेशन ट्रेनिंग, टेक्नीकल और नॉन-टेक्निकल ट्रेनिंग दी भी जाती है। 


इस संस्था का उद्देश्य समाज को यह बताना है कि महिलाएँ वो हर काम कर सकती हैं, जो पुरुष कर सकते हैं। महिलाएँ कमजोर नहीं होती। प्रत्येक महिला अपनी छोटी-बड़ी ख्वाहिशों के लिए पुरुष पर निर्भर न होकर स्वयं आत्मनिर्भर हो। आजाद फाउंडेशन महिलाओं को सक्षम बनाने का कार्य करती है। आजाद फाउंडेशन की कुछ लीडर्स ने अपनी स्टोरी भी बताई, जो बहुत अधिक प्रेरणादायक थी। जैसे- कुछ महिलाओं को ड्राइविंग सीखने के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा यहाँ तक कि उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया। परिवार,पति सब रिश्ते टूट गए। फिर भी उन महिलाओं ने हार नहीं मानी! 

आज आत्मनिर्भर हैं।


आजाद फाउंडेशन में 1500 महिलाएँ काम करती है। 630 महिलाओं का अब तक परमानेंट लाइसेंस बन चुका है। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आजाद फाउंडेशन महिलाओं और लड़कियों के साथ-साथ युवा लड़कों पर भी काम करती है। 

संस्था का मानना है कि महिलाओं की स्थिति को बदलने के लिए पुरुष की सोच को बदलना भी आवश्यक है। इसके लिए उनका एक स्पेशल एक वर्षीय फ़ेलोशिप प्रोग्राम भी चलता है। वहाँ के लोगों से मिलकर और उन लोगों के काम के बारे में जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा। 


यह सब जानने के बाद हमें कोलकाता की प्रसिद्ध मिठाई रसगुल्ला खाए और कुछ ग्रुप फोटो क्लिक की। अब शाम हो चुकी थी तो हम वापस कलकत्ता सेवा केंद्र की तरफ चल पड़े। अगली सुबह हमें एक और संस्था का विजिट करना था।



NOSKK: Nari-O-Sishu Kalyan Kendra 

वहाँ के लोगों का स्वागत करने का तरीका मुझे बेहद पसंद आया। उन्होंने हम सभी के हाथों में राखी बांधकर हमारा स्वागत किया।  NOSKK Nari -O-shishu kalyan kendra संस्था की शुरुआत 1978 में हुई। जिसमें 9000 महिला, 400 ग्रुप में काम करती है। यह संस्था भी लड़कियों की शिक्षा के लिए काम करती है। जैसे: - ड्रापआउट गर्ल्स (dropout girls) का नामांकन करना, ट्यूशन फीस प्रोवाइड करना, कम कीमत में नैपकिन प्रोवाइड करना। यह संस्था महिलाओं को फ्री में सिलाई, कढ़ाई, ड्राइविंग, ब्यूटीशियन आदि कोर्सेज में भी प्रशिक्षित करती है। 

वेबसाइट: http://www.noskk.org.in/index.html


फिर हम लोग फील्ड विजिट करने के लिए टोटो से उनकी बस्ती पहुंचे। मैंने पहली बार किसी महिला को टोटो चलाते देखा, और मैं उनके साथ टोटो पर बैठी भी। उन्हें टोटो चलाना भी इसी संस्था ने सिखाया।


 


इस बस्ती में हम उन लोगों से मिलने गए थे जो इस संस्था जुड़कर आगे बढ़े हैं। जिन लोगों को रुपयों की आवश्यकता होती है यह संस्था उन्हें लोन भी दिलाती है। लोन की शुरुआत 10000 रूपये से होती है और पूरे साल का 12% इंटरेस्ट देना पड़ता है। 


बस्ती के लोगो से मिलकर हमने यह जाना कि यहाँ से बहुत लोग लोन लेकर बिजनेस में लगाते हैं। यहाँ हमने ये भी देखा कि नैपकिन कैसे बनते हैं? हमने कपड़ों पर की गयी कढ़ाई को बारीकी से देखा, जो बहुत ही सुन्दर दिख रही थी। सभी लोगो को यहाँ का काम पसंद आया और हमने कुछ फ़ोटो भी क्लिक करवाई। 


इसके बाद हम अपने विश्रामगृह सेवा केंद्र की ओर चल दिए। 


अगली सुबह तैयार होकर हम सभी विक्टोरिया महल की तरफ चल दिए। यहाँ हमने बहुत सारी ऐतिहासिक चीजें देखीं। हमने पूरा विक्टोरिया महल घूमा। फिर हम अपने अगले पड़ाव साइंस सिटी (Science City) की ओर चल दिए। यहाँ स्पेस थिएटर (space theatre) के अन्दर हमने 3-डी शो (3-D show) देखा। जिसे देख कर लगा था कि मानों मैं पूरे अन्तरिक्ष में घूम रही हूँ। मैंने सारे प्लानेट्स (planets) देख लिए हैं। मैं खुद को वहाँ पर महसूस कर पा रही थी कि मैं वहाँ मौजूद हूँ। 


वहाँ से निकलने के बाद हम लोग शॉपिंग करने के लिए मार्केट गए। थोड़ी-बहुत शॉपिंग की और फिर चल पड़े अपने-अपने घर की ओर उसे समय मुझे बहुत दुःख महसूस हो रहा था। क्योंकि हम लोग कुछ ही पल में एक-दूसरे से दूर हो जाएंगे। हम लोगों ने हावड़ा जंक्शन पहुँचकर अपनी ट्रेन का इंतज़ार किया। जो साढ़े ग्यारह बजे रात में थी। अगली सुबह मैं आठ बजे स्टेशन पर उतर गई और साढ़े आठ बजे तक अपने घर आ गईं। घर आने के बाद भी मैंने इस यात्रा को और सभी साथियों को बहुत मिस किया। 


शीतल कुमारी

बैच 10, जमुई


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