नमस्ते साथियों,
मैं आप सभी के साथ अपने समुदाय (फरदा) में किए काम का अनुभव साझा कर रही हूँ। इस माह समुदाय को लेकर मेरा ये लक्ष्य था कि “समाज की महिलाओं से अलग जुड़ाव बना पाना”।
हम सभी बच्चों के अभिभावकों से मिलते ही रहते हैं, मगर एक बात जो मैंने अनुभव की कि बच्चे और परिवार से हटकर भी महिलाओं की ‘अपनी जिंदगी’ भी होती है।
उनकी जिन्दगी को जानने के लिए मैं अपने गाँव की महिलाओं से मिलने गई थी। इसकी एक खास वजह यह भी थी कि सभी क्षेत्रों में से, एक क्षेत्र के लोग PTM में बहुत कम शामिल होते है। जिसका मुख्य कारण अभिभावक का खेतों में काम करना है। क्योंकि उनका यही रोजगार है, अगर अभिभावक यह नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या? वे सुबह निकलते हैं और रात को लौटते हैं। जिसकी वजह से मैं भी उनसे कभी भी अच्छे से नहीं मिल पाती थी।
पहले मुझे लगता था कि मैं तो रोज जा रही हूँ मिलने, उन्हीं की गलती है जो नहीं मिलते है!
फिर मैंने खुद को थोड़ा ध्यान देकर सोचने के लिए कहा कि हर बार ऐसा क्यों हो रहा है?
यह सोचते समय, इस बार मैंने खुद के अंदर एक नया बदलाव देखा कि मैंने उनकी गलती न देखकर, उनकी मजबूरी को जाना। समझा और पाया कि यह उनकी दिनचर्या है जिसकी वजह से मैं उनसे नहीं मिल पाती थी।
मैंने यहाँ खुद को ठीक किया और मैं कल कुल नौ महिलाओं से मिली। मैं अपनी खुशी की बताऊं तो सबसे अलग बात ये रही कि कल मैंने उनके बच्चे को लेकर कोई बात नहीं की।
मैंने बस उनकी दिनचर्या को जाना। वो कब सबसे ज्यादा खुश थी, कब दुखी थी। मैंने जब उनसे ये सब बात उनके परिवार की सदस्य की तरह पूछा तो उनके चेहरे पर एक अलग ही खुशी थी। जिससे मुझे उनसे जुड़कर बहुत अच्छा महसूस हुआ। इस कार्य के दौरान एक नया पर्सपेक्टिव (perspective) भी मुझे चीजों को देखने समझने का मिला ।
रश्मि
बैच- 9, मुंगेर
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