जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।
साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गए, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गए, पर साथ-साथ चल रही याद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।
आदित्य त्यागी
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