मैं जमुई जिले की रहने वाली हूँ। जमुई में i-सक्षम में मैं बडी इंटर्न के रूप में कार्यरत हूँ। मैं आप सभी के साथ अपनी कहानी साझा करने जा रही हूँ। मेरा जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ है। मैं अपनी 5 बहनों में तीसरे स्थान पर हूँ और हमारा एक छोटा भाई है।
शुरूआती पढ़ाई और विद्यालय के अनुभव:
मैंने 8वीं तक की पढ़ाई गाँव के ही सरकारी विद्यालय से की है। मैं हर दिन विद्यालय जाती थी क्योंकि मुझे घर से ज्यादा विद्यालय में अच्छा लगता था। मैं विद्यालय में सबसे छोटी दिखती थी इस वजह से मुझे बहुत कमेंट्स (comments) सुनने को मिलते थे। इस वजह से मुझे बहुत बुरा लगता था और मैं वहाँ के शिक्षकों से ज्यादा बात नहीं कर पाती थी। अगर मुझे कुछ पूछना भी होता था तो मैं अपनी बात नहीं रख पाती थी।
मैं पढ़ने में ठीक-ठाक थी। जब मैं छठी कक्षा में थी, तब हमारे विद्यालय में विपिन सर आए। उन्होंने पहले ही दिन सभी बच्चों को अंग्रेजी की क़िताब पढ़ने को बोला और कुछ वर्ड-मीनिंग (word-meaning) याद करने के लिए दिए। जिसे कुछ बच्चों ने याद किया और कुछ बच्चों ने नहीं भी याद किया। जब उन्होंने मुझसे सवाल पूछे तो मैंने उनके सवालों के सही ज़वाब दिए। फिर धीरे-धीरे सर ने मुझे मेरी कक्षा में नई पहचान दिलाई। सर कक्षा में सभी को मेरा उदाहरण देने लगे कि इस लड़की की तरह पढ़ो और याद करो। इससे मुझे बहुत अच्छा लगता था और मैं सर से कोई भी सवाल अच्छे से कर पाती थी।
दीदी की शादी, कर्ज और समस्याएँ:
नौंवी और दसवीं की पढ़ाई मैंने गाँव से थोड़ी दूर के हाई स्कूल (High School) से की। जिस वर्ष मैंने दसवीं की परीक्षा पास की थी, उस वर्ष मेरी बड़ी बहन की शादी हुई थी। जिसके बाद घर में पैसों की बहुत दिक्कत होने लगी। तभी मुझे पता लगा कि जो भी पैसे मेरी बहन की शादी में खर्च हुए है वो सारे पैसे मेरे पिता ने कर्ज पर लिए हुए थे तो उस दिन मुझे जोर का झटका लगा।
मुझे समझ में नहीं आ रह था कि अब क्या होगा?
तो मैंने घरवालों से कहा कि अब मैं नहीं पढूंगी! पढ़ना क्या जरूरी है? पढ़ना से क्या होगा?
उसी बीच मेरे पापा की तबियत भी खराब होनी शुरू हो गई जिस कारण परिवार में और भी टेंशन बढ़ गई। हमारे घर की स्थिति बिगड़ती ही जा रही थी और जिम्मेदारियाँ बढ़ती जा रही थी। फिर मेरी दीदी ने बोला कि तुम पढ़ाई करो, ट्यूशन फीस हम देंगे। मैंने 2020 में बारहवीं की परीक्षा पास की और घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया।
साथ में मैं अपने छोटे भाई-बहन को भी पढ़ाती थी। उसके बाद मैंने घर जा कर बच्चों को पढ़ना शुरू किया। फिर मैंने एक प्राइवेट विद्यालय में पढ़ाना शुरू किया। यह सिलसिला एक साल तक ऐसे ही चलता रहा फिर जून 2021 में मैं जब ट्यूशन पढ़ाने गई तो एक व्यक्ति द्वारा मुझे पता चला कि जमुई में एक एक्जाम (exam) होने वाला है जिसमें बहुत सारे लोगों ने अपना नामांकन करवाया है। सभी ने मुझे अपना नाम लिखवाने को कहा।
पर जब मैंने मना किया तो सब कहने लगे कि एग्जाम नहीं देना होगा तो मत देना बस हमारे साथ बैठी रहना। तो मैंने भी वह फॉर्म भर दिया। मुझे पापा को बताने का मौका भी नहीं मिला और मेरे जमुई जाने का समय हो गया था।
तो मैंने मम्मी को बताया कि मैं जमुई जा रही हूँ “एग्जाम देने के लिए”। मैंने एग्जाम पास कर लिया और इंटरव्यू के लिए मेरा सिलेक्शन हुआ। मैंने इंटरव्यू भी पास कर लिया। लेकिन जिन्होंने मुझे i-सक्षम के बारे में जानकारी दी उनका सेलेक्शन नहीं हुआ तो मुझे थोड़ा बुरा लग रहा था।
संस्था के साथ मेरा सफ़र:
यहाँ से मेरी कहानी में एक नया मोड़ आया और मैं जमुई जा पहुँची।
मुझे यहाँ का कल्चर (culture) बहुत अच्छा लगा। यहाँ के लोगों के बात करने का तरीका, समझाने का तरीका सब अच्छा लगा। लोगों की बातों को सुनना और महत्व देना ये सारी चीज़े मेरे लिए एकदम नई थी। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसे भी लोग होते हैं, ऐसा माहौल भी होता है। कभी कभी तो मुझे लगता था कि मैं कोई सपना देख रही हूँ।
मेरे लिए ये सफर एक नई दुनिया थी जहाँ मैं लोगों से बात करने में डरती थी। अब जब मैं यहाँ बोलना शुरू कर पाई और धीरे-धीरे मुझमें बहुत सारे बदलाव आये। मैं अपनी बात खुल कर रखने लगी। खुद को पहचानने लगी और लोगों से जुड़ने लगी। अपने गाँव में बच्चों के अभिभावकों से जब हमारे साथ बडी टाक होता तो मुझे अपनी क्षमता से बढ़ कर चीज़े कर पाने के लिए चैलेंज किया जाता है। जब कभी मुझे लगता कि यह कार्य मुझे से नहीं हो पाएगा, तब मेरी बडी मेरे साथ आकर मेरी हिम्मत बढ़ाती हैं और फिर हम एक-साथ मिलकर उस चीज को करते हैं और सफल भी हो जाते हैं।
मेरी 2 वर्ष की फेलोशिप पूरी होने के बाद मैं i-सक्षम में बडी इंटर्न के लिए सेलेक्ट हुई और मुझे इस दौरान थोड़े अलग अनुभव मिले। मुझे ट्रेनिंग के लिए अपने जिले से बाहर जाने का मौका मिला। जब मैं अपनी बडी को लैपटॉप पर काम करते देखते थी तो मेरा भी मन होता था कि मैं भी उनकी तरह लैपटॉप पर काम करूँ। यह सपना भी पूरा हुआ और मैंने इस दौरान अपनी ग्रेजुएशन भी पूरी कर ली थी।
APU में आवेदन और चयन:
इसके बाद मुझे APU (अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी) में M.A की पढ़ाई के बारे में पता चला और मुझे बताया गया कि मैं भी इसमें आवेदन करूं। मैने APU में आवेदन तो कर दिया लेकिन मुझे यकीन नहीं था कि मुझे इस यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने का सुनहरा अवसर मिलेगा। क्योंकि जब मैं खुद को आज से 3 साल पीछे देखती थी तो यकीन नहीं होता कि मैं वही लड़की हूँ जो कभी कक्षा में ‘हाँ’ बोलने की भी हिम्मत नहीं रखती थी। आज मुझे APU जैसी बड़ी यूनिवर्सिटी में जाकर पढ़ने का मौका मिला है। मैं अपने परिवार में पहली ऐसी लड़की हूँ जो ग्रेजुएट है और अब M.A के लिए भोपाल जा रही हूँ।
शायद M.A. करने वाली मैं अपने गाँव की पहली लड़की हूँ। इसके लिए मुझे अपने परिवार को बहुत समझाना पड़ा क्योंकि हमारे समाज में जो हो रहा है मैं उससे बहुत अलग करने जा रही हूँ। परन्तु मैं अब बहुत खुश हूँ कि आखिरकार मैंने अपने परिवार को मना लिया। उन्होंने मुझे गाँव से दूर शहर जाकर पढ़ाई करने की परमिशन (permission) भी दे दी।
सबसे बड़ी बात कि आज मैं अगर APU जा पा रही हूँ तो इसमें सबसे बड़ा योगदान i-सक्षम का रहा है। जिसने मुझे इस लायक बनाया है कि आज मैं अपनी आवाज़ अपने पसंद के अनुसार रख पाऊं और अपने सुनहरे भविष्य के लिए खुद स्टैंड ले सकूँ।
मोनिका
बडी इन्टर्न, जमुई
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