जब मैंने i-सक्षम की फ़ेलोशिप में चयन के लिए एग्जाम दिया था तब मुझे इस बात का बिलकुल अंदाज़ा नहीं था कि इस फ़ेलोशिप के माध्यम से मुझे मेरी पहचान मिलेगी।
पहचान क्या होती है? इस बात का अर्थ भी मैं नहीं जानती थी।
सरल शब्दों में कहा जाए तो पहले लोग मुझे किसी की बेटी, किसी की बहन के रूप में पहचानते थे। परन्तु अब मुझे मेरे नाम और मेरे काम से पहचानते हैं।
पहले मुझे अकेले कहीं जाने में घबराहट होती थी। सोचना पड़ता था कि कैसे जाउंगी!
अब बिना किसी डर के अकेले कहीं भी आ-जा सकती हूँ। फ़ेलोशिप से जुड़ने के बाद एक बड़ा बदलाव मेरे अन्दर यह भी आया कि मैं निसंकोच अपनी बात किसी के भी सामने रख सकती हूँ। जबकि पहले मेरे अन्दर बहुत घबराहट और झिझक थी। पहले कम्युनिटी में भी मुझे कोई नहीं जानता था। परन्तु अब लोग मुझे मेरे नाम से जानते हैं।
मेरे अन्दर की घबराहट और झिझक को दूर करने में मेरी बडी (मोनिका दीदी) ने मेरा बहुत साथ दिया। उन्होंने कभी मुझे दोस्त बनकर तो कभी मेरी बड़ी बहन बनकर मुझे समझाया और सही रास्ता दिखाया। उनसे मैंने यह भी सीखा कि यदि कोई समस्या है तो उसका समाधान भी आस-पास ही है। हमें बस उसे खोजने की जरुरत है।
मेरे अन्दर इतने सारे बदलाव, मुझे मेरी पहचान दिलाने और मेरा आत्म-विश्वास बढ़ाने के लिए मैं i-सक्षम को धन्यवाद देना चाहती हूँ।
दिव्या वर्मा
बैच 10
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