फल के कारण लोग लगाता
पर काम लोग का बड़ा है आता।
धूप पानी से लड़ कर बढ़ता
ठंडी धूप बरसात है सहता।
जब लोग का पेट भर है जाता
तब काट के नीचे इसे गिराता।
फिर भी मुंह से उफ्फ न करता
सबकुछ यूं ही चुप चाप है सहता।
बनकर लकड़ी आग जलाता
लोग इसपर है भोजन पकाता।
दवा के रूप में बन है जाता
सब मरीजों को शिफा दिलाता।
बनकर कागज खुद को दिखलाता
लोगों को विद्वान बनाता।
आओ पेड़ को हम लगाते
अपने जिवन को बढ़ाते।
शाहिला
बैच-10, मुंगेर
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