Wednesday, July 24, 2024

नीतू अपनी कक्षा, गाँव और अभिभावकों की सोच में ला रही है बदलाव

जब मैं पहली बार प्राथमिक विद्यालय मुर्रा मनिका गयी तो मैंने देखा कि कक्षा पाँच तक के बच्चे मौजूद होने के बाद भी शिक्षिका ही प्रार्थना करा रही थी। इस बात पर मैंने शिक्षिका से बात करके एक पहल की। कुछ बच्चों को प्रार्थना याद करवाई और तबसे ही मेरे विद्यालय में पहली और दूसरी कक्षा के बच्चे प्रार्थना करा रहे हैं।

पहले मेरे विद्यालय के बच्चे शिक्षक अभिभावक मीटिंग (PTM) के बारे में नहीं जानते थे। लेकिन जब मैंने उन्हें इस बारे में बताया तो अब बच्चे स्वयं ही अपने अभिभावकों को विद्यालय आने के लिए प्रेरित करते हैं। लगभग 20 अभिभावकों की उपस्थिति PTM में दर्ज होती है। 


मेरे विद्यालय में शिक्षण सामग्री (TLM) की भी कमी थी। जबसे मैं विद्यालय जा रही हूँ तबसे अपने हाथ से बनी शिक्षण सामग्री का उपयोग कक्षा में बच्चों को कराती हूँ। इससे बच्चे बहुत मन लगाकर पढ़ते हैं और इस कार्य के लिए प्रधानाध्यापक ने भी मुझे प्रोत्साहित किया था।


जब मुझे पता चला कि मेरे मुर्रा मनिका (गाँव का नाम) की कुछ महिलाओं को अपना नाम तक लिखना नहीं आ रहा है। तो मैंने निश्चय किया कि मैं रविवार के दिन इस कार्य के लिए समय निकालूँगी। हर सप्ताह मैंने दो-तीन महिलाओं को नाम लिखना सिखाने का टारगेट लिए और अब तक मैं अपने गाँव की दस महिलाओं को नाम लिखना सिखा पायी हूँ। इस कार्य को करने के लिए मुझे एक-एक महिला के घर जाकर सिखाना पड़ा। परन्तु मैं खुश हूँ कि उन सभी ने अपना नाम लिखना सीखा। 


नीतू कुमारी

बैच- 10, मुज्ज़फ्फरपुर


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