किसने सोचा था ? की बिहार के ग्रामीण क्षेत्र (बड़गाव) के मध्य वर्गीय परिवार की एक साधारण सी लड़की कभी भोपाल जा कर उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाएगी। क्योंकि , वर्षों तक सामाजिक रूढ़ियों, आर्थिक सीमाओं, और सुविधाओं की कमी ने ग्रामीण लड़कियों की शिक्षा को बाधित किया है। लेकिन अब परिस्थितियां धीरे-धीरे बदल रही है।
ऐसी ही कहानी है - कल्पना की। कल्पना का बचपन से ही सपना था की वो कुछ अलग करें। परिवार की स्थिति दयनीय होने के बावजूद भी उसके मन में अपने सपने को पूरा करने की चाह लगी हुई थी। जहाँ लड़कियों के लिए बुनियादी शिक्षा पाना भी मुश्किल होता है वहां उच्च शिक्षा तक पहुंचने की चाह रखना तो सच में ही एक संघर्ष से कम नहीं है।
कल्पना के सपनो को तब पंख मिल गई जब उसे आई - सक्षम फ़ेलोशिप का साथ मिला। जो उनके सपने को पाने में उनका एक मजबूत हथियार बना। कल्पना पहले सिर्फ अपने सपने को देख रही थी , लेकिन जब कल्पना को आई - सक्षम में "अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी " के बारे में पता चला , तो वो अपने सपने को जीने लगी। कल्पना ने ये कब सोचा था की उसके सपनो को नई उड़ान मिल जाएगी।
उन्होंने अपनी पढाई शुरू की जिसमे आई-सक्षम के टीम ने उनकी काफी मदद की और मार्गदर्शन किया। फ़ेलोशिप के सेशन और प्रक्रियाओं द्वारा कल्पना को प्रेरणा मिली और वो अपने सपनो के राश्ते पर आगे बढ़ी। आई-सक्षम ने उन्हें वित्तीय रूप से भी सहायता प्रदान किया। अपने आत्म-विश्वास और आई-सक्षम के सहायता से कल्पना सौ प्रतिशत स्कॉलरशिप के साथ अपना एग्जाम और इंटरव्यू पास की।
जिस दिन कल्पना का चयन "अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी" में हुआ और स्कॉलरशिप की पुष्टि मिली, वह दिन उसके जीवन का सबसे खास दिन बन गया। ग्रामीण क्षेत्र की एक साधारण लड़की के लिए यह केवल एक अकादमिक उपलब्धि नहीं थी, बल्कि वर्षों से देखे गए उस सपने की पहली झलक थी — बिना किसी आर्थिक बोझ के, देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका।
जब घर से बाहर जाकर पढ़ने की बात आई, तो परिवार की चिंता ने एक बार फिर परंपराओं का जाल बुन दिया — "एक लड़की अकेली शहर में कैसे रह पाएगी?", "लोग क्या कहेंगे?"
कल्पना का आत्मविश्वास धीरे-धीरे डगमगाने लगा। उसने खुद को उन लड़कियों की कतार में खड़ा पाया जिनकी दुनिया रसोई और आँगन से आगे नहीं जाती। वह सोचने लगी, शायद मेरा भी जीवन बुनियादी शिक्षा और घरेलू जिम्मेदारियों तक ही सीमित रहेगा।
पर उसने चुप रहना नहीं चुना। उसने अपना दिल खोलकर आई-सक्षम टीम से बात की। उन्होंने न सिर्फ उसकी बातों को सहानुभूति से सुना, बल्कि उसके परिवार तक पहुँचकर उन्हें समझाया कि बदलते दौर में लड़कियों को भी आगे बढ़ने का हक है। उन्होंने शिक्षा की ताकत, आत्मनिर्भरता और समाज के बदलते नज़रों को बड़ी सहजता और सच्चाई से सामने रखा।
कल्पना की जिद और आई-सक्षम टीम के विश्वासपूर्ण प्रयासों ने आखिरकार परिवार की सोच को बदल दिया। जिस बेटी को लेकर कल तक सवाल उठाए जा रहे थे, आज उसी पर गर्व किया जा रहा था।
हाल ही में कल्पना ने भोपाल चली गई — अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की ओर, जहाँ अब उसका नया अध्याय शुरू हो चुका है।
यह सिर्फ कल्पना का कॉलेज जाना नहीं है — यह उस जज़्बे की उड़ान है, जिसने समाज की तमाम बंदिशों को पार कर अपने सपनो को पाया है।
यह सिर्फ कल्पना का कॉलेज जाना नहीं है — यह उस जज़्बे की उड़ान है, जिसने समाज की तमाम बंदिशों को पार कर अपने सपनो को पाया है।
कल्पना
बैच-10,मुजफ्फरपुर
