Tuesday, December 31, 2024

परिवार की जिम्मेदारियों को संभालना और खुद में बदलाव लाना

 परिवार की जिम्मेदारियों को संभालना और खुद में बदलाव लाना

 i-सक्षम से जुड़ने के बाद मेरी जिंदगी में जो बदलाव आए, उन्हें मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। यह सफर न केवल मेरे व्यक्तित्व को निखारने का रहा है, बल्कि मुझे आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने का भी रहा है।

शुरुआत और बदलाव की ओर पहला कदम

डेढ़ साल पहले, जब मैंने i-सक्षम से जुड़ने का फैसला किया, तब मैं एक साधारण लड़की थी, जो घर और स्कूल की चारदीवारी तक सीमित थी। मुझे यह भी नहीं पता था कि किसी के साथ बातचीत कैसे की जाती है। धीरे-धीरे मैंने सीखा कि कैसे किसी से संवाद करना है, अपनी बातों को आत्मविश्वास के साथ रखना है और दूसरों की मदद के लिए आगे आना है।


पहले मैं अपने ही जिले, बेगूसराय, जाने से डरती थी। अगर कहीं जाना होता था, तो मां या भाई का साथ जरूरी था। लेकिन i-सक्षम ने मुझे वह आत्मविश्वास दिया, जो मुझे अपनी सीमाओं को पार करने में मदद करता है। आज मैं अकेले दिल्ली जैसे बड़े शहर में चार बार आ-जा चुकी हूं। यह अनुभव मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था।

मेरे भाई और पापा बाहर जॉब(Job) करते हैं। जिसके वजह से घर पर नहीं रहते हैं। जो काम लोगों के घरों में पापा या भाई करते हैं, वो सब 

मैंने किया है, जैसे कि राशन कार्ड में नाम जुड़ना, ब्लॉक जाना, हिसाब-किताब और खेतों के कामकाज तक, हर जिम्मेदारी निभाई। जब पापा और भाई कहते हैं, "तुम हमारा दायां हाथ हो," तो मेरा दिल गर्व से भर जाता है। 

स्कूल में बदलाव
मैंने अपने घर के साथ-साथ स्कूल में भी बदलाव लाने की कोशिश की। मैंने बच्चों को साफ कपड़े पहनकर आने, बैग चेक करके लाने, बाल अच्छे से बांधने और रोज़ चप्पल पहनने जैसी आदतें सिखाईं। मैंने उन्हें सिखाया कि कचरा कूड़ेदान में डालें और एक-दूसरे की मदद करें। आज, जब मैं स्कूल नहीं जाती, तो भी वहां वही अनुशासन और आदतें देखने को मिलती हैं, जो मैंने वहां विकसित की थीं। शिक्षक के साथ जुड़ पाए एक-दुसरे पे विश्वास करना

चुनौतियों का सामना
इस सफर में मुझे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अकेले कहीं जाने का डर मुझे हमेशा सताता था। मैं बहुत दूर तक पैदल चल जाती, लेकिन उस गाड़ी में कभी नहीं बैठती, जिसमें महिलाएं नहीं होतीं। धीरे-धीरे मैंने अपने डर को हराना सीखा। स्कूल में भी, जब मैंने बदलाव का कोई कदम उठाया, तो हेडमास्टर सर कई बार रोक देते थे। लेकिन मेरे काम को देखकर उन्होंने भी मुझ पर भरोसा करना शुरू कर दिया।
आत्मनिर्भरता और गर्व
आज मैं जो कुछ भी कर रही हूं, वह न केवल मेरे लिए, बल्कि मेरे परिवार, गांव और स्कूल के लिए भी गर्व का विषय है। i-सक्षम ने मुझे वह सशक्त पहचान दी, जो हर लड़की का सपना होती है। अब मुझे लगता है कि कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती, बस हमें अपनी सोच और आत्मविश्वास को मजबूत रखना होता है।

अंशु 

बैच-9, बेगूसराय 


मीडिया की दुनिया में पहला कदम: डर और हिम्मत की जंग

 मीडिया की दुनिया में पहला कदम: डर और हिम्मत की जंग

आज मैं आप लोगों से सोशल मीडिया और कम्युनिकेशन टीम के साथ जुड़े अपने अनुभवों को साझा करना चाहती हूं। यह एक ऐसी कहानी है, जिसमें डर, संघर्ष, लगातार प्रयास और अंततः सफलता का संगम है।

शुरुआत: जब मिली बड़ी चुनौती
लगभग चार महीने पहले की बात है, एक मीटिंग के दौरान मुझे एक जिम्मेदारी सौंपी गई। मुझे अपने जिले की न्यूज़ को स्थानीय अखबारों में प्रकाशित करवाने और i-सक्षम से जुड़ी लाइव न्यूज़ दिखाने का लक्ष्य दिया गया। सुनने में तो यह काम आसान लग सकता था, लेकिन मेरे लिए यह किसी पहाड़ पर चढ़ने जैसा था।
क्योंकि मैं ना किसी मीडिया पर्सन को जानती थी, ना कभी किसी रिपोर्टर से बात की थी। मेरे पास उनका कोई नंबर नहीं था। मुझे बस अखबार के ऑफिसों के नाम और उनके जानकारी मालूम थे—दैनिक जागरण, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर और हिंदुस्तान। लेकिन यह सब जानकारी तब तक बेकार थी, जब तक मैं कोई ठोस कदम नहीं उठाती।

डर के आगे जीत है
मैंने तय किया कि डर से भागने के बजाय इसे हराने की कोशिश करूंगी। सबसे पहले मैं दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर के ऑफिस गई। वह दिन मैं कभी नहीं भूल सकती, जब मैं पहली बार दैनिक जागरण के संपादक से मिलने गई। दिल तेजी से धड़क रहा था, मन में बहुत सारा सवाल चल रहा था और डर लग रहा था कि क्या मैं अपनी बात सही तरीके से रख पाऊंगी?
लेकिन मैं तैयार थी। मैंने i-सक्षम के बारे में PPT बनाकर ले गई थी और लैपटॉप भी साथ में ले कर गई, ताकि मैं उन्हें अपनी बात बेहतर तरीके से समझा सकूं। यह मेरी पहली जीत थी—मैंने डर पर काबू पाया और खुद को एक नई दिशा में धकेल दिया।

लगातार प्रयास: सुबह 9 से रात 9 की दौड़
अगले दो-ढाई महीने तक मेरा यही रूटीन बन गया। कभी सुबह नौ बजे तो कभी शाम छह बजे, जब भी संपादक या रिपोर्टर से मिलने का समय मिला, मैं तुरंत पहुंच जाती। कई बार पांच-दस मिनट की देरी से मिलने का मौका छूट जाता। लेकिन मैंने हार नहीं मानी।
मैंने धीरे-धीरे उन्हें i-सक्षम से जुड़ी सफलताओं, मैसेज, वीडियो और तस्वीरें भेजनी शुरू कीं। इस दौरान, दैनिक भास्कर के एक रिपोर्टर से मुलाकात हुई। मैंने प्रियंका दी और प्रिंस सर को दिखाया और रूपल दी बात कर के न्यूज़ तैयार की और उसे जमा कर दिया।
पहली सफलता: पहला न्यूज़ प्रकाशित हुआ
जब मेरा पहला न्यूज़ प्रकाशित हुआ, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। यह मेरे लिए सिर्फ एक खबर नहीं थी, यह मेरे प्रयासों का पहला ठोस परिणाम था। मैंने महसूस किया कि मेहनत और धैर्य के साथ कुछ भी संभव है।
इसके बाद मैंने दैनिक जागरण के ऑफिस को और विकसित करना शुरू किया। मेरी मेहनत रंग लाई और एक दिन वहां के रिपोर्टर का नंबर मिल गया। मैंने उन्हें कॉल करके i-सक्षम के बारे में बताया। वह बहुत खुश हुए और उन्होंने मेरी खबर को प्रकाशित करने का वादा किया।
यह मेरी दूसरी बड़ी जीत थी। यह एहसास हुआ कि जब आप प्रयास करते हैं, तो चीजें अपने आप आपके पक्ष में आने लगती हैं।
उसके बाद,
अब मेरा अगला लक्ष्य था i-सक्षम का लाइव न्यूज़ दिखाना। मुझे अपनी टीम के साथ मिलकर एक वीडियो तैयार करना था। जब मेरे सभी साथी अपने-अपने क्लस्टर को सेलिब्रेट कर रहे थे, मैंने भी अपनी टीम के साथ इस अवसर का उपयोग किया।
हमने वीडियो बनाया और मुजफ्फरपुर वाव के संस्थापक सर को भेजा। उन्होंने इसे बहुत पसंद किया और मुझे एक रिपोर्टर का नंबर दिया। मैंने उनसे बात की और i-सक्षम का विजुअल न्यूज़ (Visual News) भी प्रकाशित हो गया।
साझा सफलता और धन्यवाद,
यह सबकुछ संभव हो पाया क्योंकि मेरी टीम, एडु लीडर, मेंटर और कम्युनिकेशन टीम ने मुझे हर कदम पर प्रेरित किया। मैंने सीखा कि डर को जीतने का सबसे अच्छा तरीका है, उसे सीधे चुनौती देना।
मैं अपने प्रयासों और सफलता की इस यात्रा को सभी के साथ साझा करके बहुत खुश हूं। आशा है कि मेरी कहानी आपको भी अपने सपनों की ओर बढ़ने की प्रेरणा देगी।
आप सभी का सहयोग और विश्वास के लिए दिल से धन्यवाद।

राधा 

बडी 

मुजफ्फरपुर



Friday, December 27, 2024

रुकशाना खातून: एक शिक्षक की प्रेरणादायक कहानी

रुकशाना खातून: एक शिक्षक की प्रेरणादायक कहानी

यह कहानी रुकशाना खातून की है, जो बिहार के उत्क्रमित मध्य विद्यालय, बुधनगरा में पढ़ाती हैं। अपने छोटे-छोटे लेकिन प्रभावशाली प्रयासों से रुकशाना ने न केवल अपने समुदाय में बदलाव लाया, बल्कि पढ़ाई के प्रति एक नई सोच भी पैदा की। 


गाँव के चाचा-चाची और आई-सक्षम का परिचय

रुकशाना के लिए उनका काम सिर्फ स्कूल तक सीमित नहीं है। वे अपने गाँव के चाचा-चाचियों से जुड़कर उनके जीवन में भी शिक्षा का उजाला फैलाने का प्रयास कर रही हैं। एक दिन जब वे गाँव में गईं, तो एक चाचा ने पूछा, "रुकशाना, क्या तुम्हें सरकारी नौकरी मिल गई?"

रुकशाना मुस्कुराते हुए बोलीं, "नहीं चाचा, मैं आई-सक्षम संस्था से जुड़ी हूँ। यह संस्था हमें बच्चों और समुदाय की बेहतरी के लिए काम करने का मौका देती है।" जब चाचा-चाचियों ने यह सुना, तो वे बहुत खुश हुए।

हस्ताक्षर से शुरू हुआ बदलाव

एक दिन रुकशाना ने अपने गाँव के एक चाचा से पूछा, "क्या आपको हस्ताक्षर करना आता है?" चाचा ने शर्माते हुए कहा, "थोड़ा बहुत आता है।"

रुकशाना ने तुरंत उन्हें हस्ताक्षर करना सिखाया। अगले दिन, वही चाचा उनके घर आए और बोले, "रुकशाना, क्या तुम मुझे रोज एक घंटा पढ़ा सकती हो?"

रुकशाना ने खुशी-खुशी यह प्रस्ताव स्वीकार किया। उन्होंने चाचा को अक्षर, गिनती, और पढ़ाई का पहला


10 दिन में बड़ा बदलाव

सिर्फ 10 दिनों में चाचा ने:

  • 'अ' से 'ज्ञ' तक पढ़ना और लिखना।

  • 'A' से 'Z' तक अंग्रेजी अक्षरों को समझना।

  • '1' से '100' तक की गिनती सीख ली।

रुकशाना को अब पूरा विश्वास है कि चाचा जल्द ही किताबें भी पढ़ने लगेंगे।

पढ़ाई का असर पूरे समुदाय पर

रुकशाना के इस छोटे से प्रयास ने उनके गाँव में एक नई लहर पैदा कर दी। चाचा के अलावा, तीन और गाँव के बुजुर्ग अब रुकशाना से पढ़ाई कर रहे हैं। यहाँ तक कि उनकी दादी, खतीजा खातून, जो कभी स्कूल नहीं गईं, उन्होंने भी पढ़ाई शुरू कर दी।

रुकशाना रात में सोने से पहले अपनी दादी को पढ़ाई में मदद करती हैं। अब दादी न केवल अक्षरों को पहचान रही हैं, बल्कि खुद पर गर्व महसूस करती हैं।

एक छोटे प्रयास का बड़ा प्रभाव

रुकशाना की मेहनत ने यह साबित किया कि शिक्षा की लौ जलाने के लिए केवल एक सही शुरुआत की जरूरत होती है। उन्होंने अपने समुदाय के लोगों को पढ़ाई की अहमियत समझाई और उन्हें इस सफर पर साथ ले आईं।

आज रुकशाना के गाँव में हर कोई कहता है:
"अगर हमें कुछ सीखना है, तो रुकशाना से बेहतर कोई नहीं!"

नेहा कुमारी
बडी, मुजफ्फरपुर

 

Wednesday, December 25, 2024

हिचकिचाहट से आत्मविश्वास तक का सफर: गुड्डी

 हिचकिचाहट से आत्मविश्वास तक का सफर: गुड्डी

आई-सक्षम: एक नई दिशा

आई-सक्षम केवल एक प्लेटफॉर्म नहीं है, यह एक ऐसा वातावरण है जहाँ हर व्यक्ति की बात सुनी जाती है, समझी जाती है, और जरूरत पड़ने पर उसे पूरा समर्थन मिलता है। यहाँ मैंने अपने व्यक्तित्व और क्षमताओं को समझने और निखारने का अनमोल अवसर पाया।

पहले और अब के बीच का बदलाव

दो साल पहले, मैं एक ऐसी लड़की थी जो लोगों से जुड़ने में हिचकिचाती थी। अपनी बातें दूसरों के सामने रखने की हिम्मत नहीं थी और समूह में कार्य करना तो दूर की बात थी। लेकिन जब मैंने आई-सक्षम के साथ अपनी यात्रा शुरू की, तो मेरे अंदर अद्भुत बदलाव आया।

अब मैं न केवल लोगों से जुड़ने लगी हूँ, बल्कि शिक्षकों, प्रिंसिपल, बच्चों, उनके अभिभावकों और अपने समाज से भी सक्रियता से संवाद करने लगी हूँ। क्लस्टर के माध्यम से मैं समूह में कार्य करने और सहयोग निभाने का आनंद ले रही हूँ।
बच्चों के जीवन में बदलाव
जो बच्चे स्कूल आने से कतराते थे, पढ़ाई से दूर भागते थे या खेल को प्राथमिकता देते थे, उन्हें मैंने खेल-खेल में शिक्षा से जोड़ा। इस प्रक्रिया में बच्चे खेलते भी हैं और सीखते भी हैं। उनका उत्साह और रुचि देखकर मुझे अपने प्रयासों पर गर्व होता है।

लाइब्रेरी: शिक्षा का नया केंद्र
हमारे क्लस्टर के प्रयास से फर्दा में एक लाइब्रेरी की स्थापना की गई है। यह केवल किताबों का घर नहीं, बल्कि एक दोस्ताना माहौल, शिक्षा के संसाधन, और सीखने के नए तरीकों का केंद्र है। यहाँ बच्चे और समुदाय के लोग समान रूप से लाभान्वित हो रहे हैं।

मेरी सीख और आगे का रास्ता
आई-सक्षम ने मुझे आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझने का अवसर दिया। यह यात्रा न केवल मेरे लिए बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणादायक है, जिनके जीवन को मैंने छूने का प्रयास किया।
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गुड्डी कुमारी
बैच-10, मुंगेर



Tuesday, December 24, 2024

रंजन की कहानी: एक गहरी समस्या की झलक

रंजन की कहानी: एक गहरी समस्या की झलक
स्नेहा, जो कि एक कम्यूनिकेशन बडी है, सुबह-सुबह सरारी के स्कूल का में गई। यह स्कूल उस क्षेत्र के बच्चों के लिए एक सीखने का केंद्र था, और एडु-लीडर पिंकी यहां की जिम्मेदारी संभाल रही थीं। जब स्नेहा स्कूल पहुंचीं, तो उन्होंने देखा कि सारे बच्चे पिंकी के साथ बड़े ध्यान से पढ़ाई कर रहे थे। स्नेहा ने मुस्कुराते हुए सभी बच्चों को "गुड मॉर्निंग" कहा।
पिंकी का दर्द और समर्पण
पिंकी थोड़ी उदास लग रही थीं। स्नेहा को पता चला कि कुछ दिन पहले ही उनके पिता का निधन हो गया था। यह पिंकी का स्कूल में पहला दिन था, और उन्होंने खुद को संभालते हुए बच्चों को पढ़ाने का संकल्प लिया।
पिंकी कक्षा में बच्चों को हिंदी में महीने के नाम लिखना और पढ़ना सिखा रही थीं। उनकी मेहनत और समर्पण स्नेहा के दिल को छू गया। हालांकि, स्नेहा ने महसूस किया कि पिंकी को थोड़ा आराम की जरूरत है।
कक्षा में मेरी गतिविधि :- एक घंटे तक पिंकी को पढ़ाते हुए देखने के बाद, स्नेहा ने पिंकी से कहा, "आप थोड़ा बैठ जाइए, मैं बच्चों के साथ एक एक्टिविटी करूंगी।" बच्चों को उत्साहित करने के लिए स्नेहा ने एक नई गतिविधि शुरू की।
"गुस्सा कब और क्यों आता है?" स्नेहा ने बच्चों से यह सवाल पूछा। उन्होंने बच्चों से कहा, "थोड़ी देर के लिए अपनी आंखें बंद कीजिए और सोचिए कि आपको गुस्सा कब और क्यों आता है। फिर एक-एक करके अपनी बात साझा कीजिए।"


बच्चों की भावनाएँ
बच्चे उत्साह से अपनी भावनाएँ साझा करने लगे। किसी ने कहा, "जब पापा मोबाइल देखने नहीं देते, तो गुस्सा आता है।" किसी ने कहा, "जब मम्मी खेलने नहीं देतीं, तो गुस्सा आता है।" बच्चों के जवाब मासूम थे, और स्नेहा उनके साथ हंस रही थीं।

फिर स्नेहा ने देखा कि कक्षा 3 का एक बच्चा, रंजन, शांत बैठा हुआ था। स्नेहा ने उससे पूछा, "रंजन, तुम्हें गुस्सा कब आता है?"

रंजन ने धीरे-धीरे जवाब दिया, "दीदी, मुझे गुस्सा तब आता है जब पापा शराब पीकर आते हैं। वे मम्मी से झगड़ा करते हैं और उन्हें मारते भी हैं।"

सन्नाटा और सहानुभूति

कक्षा में गहरा सन्नाटा छा गया। सभी बच्चे रंजन की बात सुनकर शांत हो गए। स्नेहा ने देखा कि रंजन की आंखों में दर्द था। उसने महसूस किया कि यह बात केवल रंजन की नहीं, बल्कि कई बच्चों की हो सकती है।

समाधान की ओर

स्नेहा ने बच्चों से पूछा, "अगर आप रंजन की जगह होते, तो क्या करते?" बच्चों ने गंभीरता से जवाब दिए।

  • "हम किसी बड़े से मदद मांगते।"

  • "हम बाहर जाकर हल्ला करते और लोगों को बुलाते।"

  • "हम पापा को नींबू पानी देते ताकि उनका नशा कम हो जाए।"

  • "जब पापा शांत होते, तो उनसे बात करते।"

बच्चों के जवाब ने स्नेहा को भावुक कर दिया। वह खुश थीं कि बच्चे न केवल समस्या को समझ रहे थे, बल्कि समाधान की दिशा में सोच भी रहे थे।

होमवर्क और एक नई शुरुआत

स्नेहा ने बच्चों को होमवर्क दिया। उन्होंने कहा, "घर में दो लोगों से बात करो और उनसे पूछो कि रंजन अपनी मम्मी की मदद कैसे कर सकता है। कल इस पर चर्चा करेंगे।"

बच्चों ने यह जिम्मेदारी बड़े उत्साह से ली। स्नेहा ने देखा कि इस गतिविधि ने बच्चों में सहानुभूति और दूसरों की भावनाओं को समझने का गुण विकसित किया।

पिंकी और स्नेहा का समर्पण

स्नेहा ने पिंकी की ओर देखा, जो यह सब देखकर मुस्कुरा रही थीं। स्नेहा को लगा कि पिंकी की उदासी थोड़ी कम हुई थी। इस स्कूल में स्नेहा और पिंकी ने न केवल पढ़ाई, बल्कि बच्चों के दिल और दिमाग में नई सोच पैदा करने का बीड़ा उठाया था।

स्नेहा, कम्यूनिकेशन बडी
जमुई
 

लखनपुर की किशोरियों का नाटक और योगदान

लखनपुर की किशोरियों का नाटक और योगदान

आज मैं आपसे पिछले तीन दिनों के अनुभव साझा करने जा रही हूं। जैसा कि आप जानते हैं, हम एक सक्षम किशोरी कार्यक्रम लॉन्च इवेंट कर रहे हैं, जहां हम गाँव के लोगों से बात करते हैं और उन्हें बताते हैं कि हमारा काम क्या है और हम उनके गांव में किस उद्देश्य से आए हैं।


हम पिछले एक महीने से लॉन्च इवेंट की तैयारी कर रहे थे, लेकिन पिछले सप्ताह हमारे सभी प्रयासों का फल मिला। हमने दो गांवों में आयोजन सफलतापूर्वक आयोजित किया एक घरसंडा गाँव में और दूसरा लखनपुर में। लखनपुर का इवेंट विशेष रूप से सफल रहा, जहां निशा (बडी) ने नेतृत्व किया। लगभग 200 से 250 अभिभावक इस इवेंट में शामिल हुए।



निशा ने बहुत मेहनत की। उन्होंने हर रोज अभिभावकों से मिलना, किशोरियों से बात करना, मुखिया जी और आशा से बातचीत करना जारी रखा। उनकी तबीयत भी खराब हो गई थी क्योंकि लखनपुर तक पैदल जाना काफी दूर था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अंततः, उन्होंने इवेंट को सफलतापूर्वक पूरा किया।


लखनपुर की किशोरियां भी बहुत अच्छी थीं और उन्होंने नाटक में भाग लिया, जिसे उन्होंने शानदार तरीके से प्रस्तुत किया। मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती, और यह हमारे लिए सच साबित हुआ। पिछले एक सप्ताह की मेहनत का परिणाम हमें कल मिला, और हम आगे भी इसी तरह मेहनत करते रहेंगे।


हमारे पास 18 और गांव बाकी हैं, जहां हम अपने इवेंट आयोजित करेंगे। पिछले दो-तीन दिनों का अनुभव काफी थकान भरा रहा, जिससे मेरी तबीयत भी खराब हो गई। लेकिन एक खुशी की बात है कि हम सब मिलकर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि हम अपनी एक पहचान बना पाएंगे और लोगों तक पहुंच सकेंगे।


खुशी 

सक्षम किशोरी कार्यक्रम 

जमुई


Monday, December 23, 2024

छोटी कोशिश का बड़ा असर: सामुदायिक बदलाव की कहानी"

छोटी कोशिश का बड़ा असर: सामुदायिक बदलाव की कहानी"

एक छोटे से गाँव में, जहां ज्यादातर लोग पढ़ाई-लिखाई से दूर थे, वहां एक युवा लड़की ने ठान लिया कि वो लोगों की जिंदगी में बदलाव लाएगी। उसका नाम रानी था। रानी गाँव के बच्चों और अभिभावकों के साथ काम करती थी, उन्हें नई चीजें सिखाती और उनके जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करती है।


एक दिन, रानी ने सोचा कि गाँव के लोगों से मुलाकात की जाए और उनसे बातचीत की जाए। उसने सबसे पहले दो अभिभावकों से मिलने का फैसला किया। ये वही अभिभावक थे, जिन्हें रानी ने कुछ समय पहले सिग्नेचर करना सिखाया था।


रानी ने मुस्कुराते हुए पूछा, "तो बताइए, सिग्नेचर करना याद है या भूल गए?" अभिभावकों ने गर्व से जवाब दिया, "हाँ, बिलकुल याद है! देखिए!" उन्होंने कागज पर सिग्नेचर करके दिखाया।

रानी का दिल खुशी से भर गया। उन्होंने आगे बताया, "आपके सिखाने की वजह से हम बैंक गए थे और वहां अपने दस्तख़त से पैसे निकाले। वो दिन हमारे लिए बहुत खास था।"



रानी ने उनकी आँखों में आत्मविश्वास की चमक देखी और महसूस किया कि उसका छोटा-सा प्रयास उनकी जिंदगी में कितना बड़ा बदलाव ला चुका है।

इसके बाद, रानी एक महिला के घर गई। उसने पूछा, "आप अभिभावक मीटिंग में क्यों नहीं आतीं?"

महिला ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, "बहुत काम रहता है, इसलिए समय नही मिल पाता है

          


रानी ने समझाते हुए कहा, "मीटिंग में आप सबके लिए नई बातें सिखाई जाती हैं। बच्चों की परवरिश के बारे में चर्चा होती है, और साथ में खेल-कूद भी होता है। आपको मै अभी हस्ताक्षर करने के लिए सिखा रही हूँ।"

महिला ने आश्वासन दिया, "अगली बार जब मीटिंग होगी, तो मुझे जरूर बताइएगा। मैं आऊंगी। रानी ने खुश हो कर बोली जरुर आइएगा।"


फिर रानी ने रास्ते में एक लड़की को देखा। उसका नाम मुस्कान था। मुस्कान ट्यूशन जा रही थी। रानी ने मुस्कुराते 

हुए कहा, "जाओ, अच्छे से पढ़ाई करना।" मुस्कान ने सिर हिलाकर जवाब दिया और आगे बढ़ गई।


उस दिन रानी को महसूस हुआ कि उसके प्रयास धीरे-धीरे लोगों के जीवन में बदलाव ला रहे हैं। चाहे वो सिग्नेचर सिखाना हो, मीटिंग में शामिल होने की प्रेरणा देना, या बच्चों को प्रोत्साहित करना—हर छोटी-सी कोशिश का बड़ा असर हो रहा था।


रानी ने मन ही मन सोचा, "शायद इसी को असली खुशी कहते हैं—दूसरों की जिंदगी में रोशनी भरना।"


रानी कुमारी 

बैच-10, एडू-लीडर

गया


(रानी कुमारी, गया जिला, आमस प्रखंड के पथरा गाँव से सम्बन्ध रखते हैं। आपने आपनी स्नातक की डिग्री गणित ओनर्स, श्री महंथ शतानंद गर्ल कॉलेज शेरघाटी गया (मगध इन्वेर्सिटी विश्वविधायल ) से मान्यता प्राप्त ली है। आपके घर के एक बड़े भाई, तीन बहन और माता-पिता हैं। 
आप i-सक्षम में जुड़ने से पहले जेनरल की पढाई कर रहे थे और KYC किये हुए हैं। आपको i-सक्षम के बारे में अपनी माँ से जानकारी मिली, और 2023 में संस्था के साथ जुड़े हैं। i-सक्षम में एडू-लीडर के नाम से आपको समाज और संस्था में नयी पहचान मिली हैं। आप अपने जीवन में बिहार कर्मचारी बनाना चाहते है।)