अंगूठे के निशान से हस्ताक्षर तक का सफ़र
मेरा नाम निभा कुमारी है और मैं बेगूसराय के बन्हारा गाँव में i-Saksham की एक Edu-Leader के रूप में काम कर रही हूँ। जब मैंने यह सफ़र शुरू किया, तो मेरा एक सीधा-सा लक्ष्य था – अपनी कम्युनिटी की महिलाओं और किशोरियों को इतना सशक्त बनाना कि वे गर्व से अपना नाम लिख सकें।
यह कहानी उसी एक छोटे से लक्ष्य की है, जिसने कई महिलाओं के जीवन में आत्मविश्वास का एक नया अध्याय लिखा।
बदलाव की पहली दस्तक
एक दिन गाँव में घूमते हुए मेरी मुलाक़ात कुछ महिलाओं से हुई। बातों-बातों में मैंने एक आंटी जी से सहजता से पूछ लिया, “आंटी जी, क्या आपको हस्ताक्षर करना आता है?”
वह कुछ पल के लिए चुप हो गईं, फिर एक हल्की मुस्कान के साथ बोलीं, “नहीं, मुझे नहीं आता।”
उनकी इस सादगी ने मुझे हिम्मत दी। मैंने उनसे पूछा, “क्या आप सीखना चाहेंगी?”
शुरुआत में वह झिझक गईं और बोलीं, “हम नहीं सीखेंगे, अब इस उम्र में सीखकर क्या करेंगे? हमें तो लिखना बहुत मुश्किल लगता है।” यह सिर्फ उनका डर नहीं था, बल्कि उस सोच का प्रतीक था, जहाँ कई महिलाएँ मान लेती हैं कि अब कुछ नया सीखने की उनकी उम्र निकल चुकी है।
चुनौती और समाधान
मैंने उन्हें समझाया, “सोचिए, अगर आप हस्ताक्षर करना सीख लेंगी, तो कितने काम आसान हो जाएँगे। बैंक से पैसे निकालने या कोई भी सरकारी काम के लिए अब आपको अंगूठा नहीं लगाना पड़ेगा।” मेरी इस बात ने शायद उनके मन में एक उम्मीद जगाई। आखिरकार, वह मान गईं और बोलीं, “अगर आप सिखाएँगी, तो हम कोशिश करेंगे।”
यह मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी। शुरुआत में उन्हें अक्षर पहचानने और पेन पकड़ने में भी दिक्कत हो रही थी। वे बार-बार रुक जातीं और कहतीं, “ये अक्षर हमसे नहीं बन रहा।”
तब मैंने ठान लिया कि मैं उन्हें रोज़ एक घंटा सिखाऊँगी। धैर्य और निरंतर अभ्यास के साथ, धीरे-धीरे उनकी उँगलियाँ अक्षरों को साधने लगीं।
खुशी का वह पल
कुछ ही दिनों की मेहनत रंग लाई। जब मैं उनसे दोबारा मिली, तो उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी। वे गर्व और खुशी से भरकर बोलीं, “आपने हमें सिखाया, अब हम बैंक में खुद साइन करते हैं। अब हमें अंगूठा लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। यह बहुत अच्छा लगता है।”
उनकी आँखों में जो आत्मनिर्भरता की चमक थी, वह किसी भी पुरस्कार से बढ़कर थी। उनकी सफलता ने गाँव की दूसरी महिलाओं को भी प्रेरित किया। कुछ महिलाएँ खुद मेरे घर आकर सीखने लगीं और जो नहीं आ पाती थीं, मैं उनके घर जाकर उन्हें सिखाने लगी।
आज वे सभी महिलाएँ आत्मविश्वास के साथ अपने दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करती हैं। उनके चेहरों पर गर्व और आत्मनिर्भरता की जो मुस्कान है, वही मेरे लिए असली इनाम है।
लेखिका:
नाम: निभा कुमारी
परिचय: निभा कुमारी बेगूसराय के तेघड़ा प्रखंड से हैं और वर्तमान में बन्हारा गाँव में i-Saksham की Edu-Leader (बैच-12) के तौर पर काम कर रही हैं।
लक्ष्य: निभा का मानना है कि शिक्षा और आत्मनिर्भरता ही समाज में वास्तविक बदलाव ला सकते हैं, और वह इसी दिशा में आगे भी काम करना चाहती हैं।