Wednesday, October 23, 2024

सपनो को पूरा करने के लिए संघर्षशील लड़कियाँ

नमस्ते साथियों,

मेरा नाम रजनी है, मैं फ़िलहाल बडी के रूप में i-सक्षम में जुड़ी हुई हूँ पिछले सप्ताह मैं बेसलाइन(Baseline) लेने के लिए लखनपुर गई थी। इस यात्रा में मैंने कई अनुभव किए, जिन्होंने मेरे दिल को छुआ और मेरी सोच को बदल दिया।

सबसे पहले, मैंने राजनंदनी का बेसलाइन लेना शुरू किया। मुझे राजनंदनी के बारे में बहुत कुछ पता चला। उन्होंने बताया कि वह अपने गाँव की पहली लड़की हैं जिन्होंने 12वीं कक्षा पास की है, लेकिन आर्थिक समस्याओं के कारण वह बी.ए. (B.A) नहीं कर पाईं। उनके पिता ने कहा कि वह अगले साल नामांकन करवाएंगे। राजनंदनी ने बताया कि उनकी शादी चार साल पहले तय हुई थी, जब वह दसवीं कक्षा में पढ़ती थीं। उनके चाचा और फूफा ने दबाव डाला कि उनकी शादी कर दी जाए। लेकिन राजनंदनी ने अपने होने वाले पति से अपनी पढ़ाई के बारे में बात की और उन्होंने समर्थन किया। उन्होंने कहा कि वह राजनंदनी के पैरों पर खड़े होने के बाद ही शादी करेंगे। राजनंदनी ने बताया कि वह अपने आसपास की लड़कियों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करती हैं और उन्हें आधार कार्ड बनाने के लिए कहती हैं। लड़कियां उनकी बातों पर ध्यान नहीं देती है लेकिन वह हार नहीं मानती हैं और अभी भी अपने लक्ष्य की ओर काम कर रही हैं।
 
इसके बाद, मैं संगीता का बेसलाइन लेने गई। लेकिन संगीता की माँ ने मुझसे कहा कि वह पैसे कमाने के लिए आते हैं और उन्हें कुछ नहीं मिलता है। संगीता ने कुछ देर बाद बात करना बंद कर दिया और कहा कि उसका सर दर्द कर रहा है। मैंने समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी। जब मैं वहाँ से निकली, तो संगीता अपनी माँ से लड़ाई करने लगी। उसने कहा कि वह मुझसे बात नहीं करना चाहती है और इसलिए वह सेशन में नहीं जाती है। आज की यात्रा मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक थी, लेकिन यह भी दुखी भरा था। मैंने देखा कि कैसे लड़कियों को उनके सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन मैंने यह भी देखा कि कैसे वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए लड़ती हैं।  


आज की यात्रा मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक थी, लेकिन यह भी दुखी भरा था। मैंने देखा कि कैसे लड़कियों को उनके सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन मैंने यह भी देखा कि कैसे वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए लड़ती हैं।


रजनी

बडी, जमुई


(रजनी ढंढ गाँव की रहने वाली हैंरजनी ने मुंगेर यूनिवर्सिटी से भूगोल में स्नातक की पढ़ाई की है और वर्तमान मे बिहार से बाहर जाकर पोस्ट ग्रेजुएशन करने कि तैयारी कर रही हैं। उन्हें i-सक्षम के बारे में बैच एक कि फ़ेलो रह चुकीं स्वेता से पता चला और रजनी 2018 में बैच पाँच के फेलो के रूप में i-सक्षम से जुड़ी थी। उनके जीवन का उद्देश्य हैं की वो अपने जैसी लड़कियों को आगे बढ़ाने के लिए समाज के लिए काम करना चाहते हैं।)




2030 तक 10,000 महिला लीडर्स का सशक्तिकरण: i-सक्षम का मिशन

2030 तक 10,000 महिला लीडर्स का सशक्तिकरण: i-सक्षम का मिशन

27 सितंबर 2024 को i-सक्षम एजुकेशन एंड लर्निंग फाउंडेशन ने PTEC (प्राइमरी टीचर एजुकेशन कॉलेज) के मैदान में क्लस्टर सेलिब्रेशन का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में गाँव से आई कई महिलाओं, अभिभावकों, PRI (पंचायत राज्य संस्था) सदस्यों और शिक्षकों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसका उद्देश्य पिछले डेढ़ साल में क्लस्टर द्वारा किए गए कार्यों की उपलब्धियों को साझा करना और उनका जश्न मनाना था।


कार्यक्रम की शुरुआत एक स्वागत गीत के साथ हुई, जिसे हमारे एडु-लीडर्स ने प्रस्तुत कियाइसके बाद संस्था के उद्देश्य और विजन पर चर्चा की गई, जिसमें "Voice & Choice for Every Woman" के प्रति हमारा संकल्प साझा किया गया। i-सक्षम का मिशन 2030 तक 10,000 महिला लीडरों को सशक्त करना है, जो शैक्षिक, सामुदायिक और व्यक्तिगत नेतृत्व के क्षेत्रों में काम करेंगी।


एडु-लीडर्स अंजली, सारिका, चंचला, काजल, पम्मी, चांदनी, काजल, बबिता, निशा और शालू ने अपनी कहानियां और अनुभव साझा किए। सामुदायिक नेतृत्व के अंतर्गत महिलाओं को हस्ताक्षर करना सिखाने, सरकारी सेवाओं के बारे में जागरूकता फैलाने, गांवों में सफाई और वृक्षारोपण अभियान चलाने, और सरकारी स्कूलों में ड्रॉपआउट बच्चों के पुनः नामांकन पर कार्य किया गया। महिलाओं को आयुष्मान कार्ड, आधार कार्ड जैसे लाभ समझाने और मासिक धर्म जागरूकता पर विशेष जोर दिया गया।


खेल और गतिविधियों में म्यूजिकल चेयर और गुत्तम-गुत्था जैसी पारंपरिक खेल शामिल थीं, जिन्होंने कार्यक्रम में जोश भरा और सभी प्रतिभागियों को एक साथ लाने का कार्य किया।



सहयोग की अपील PRI सदस्यों से उनके समर्थन की अपील की गई, और सभी ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए भविष्य में भी जुड़ने की इच्छा जताई।


अंत में, सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया गया और सुझाव मांगे गए कि हम अगली बार कार्यक्रम को और बेहतर कैसे बना सकते हैं। उनके विचारों ने हमें आगे के लिए प्रेरित किया।


इस कार्यक्रम की सफलता में i-सक्षम टीम के सदस्य अंकिता और अदीबा की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 


i-सक्षम का उद्देश्य स्थानीय महिलाओं को लीडर के रूप में विकसित करना है, ताकि वे अपने गांवों में बदलाव ला सकें और अन्य महिलाओं को भी सशक्त कर सकें। यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि जब महिलाएं एकजुट होती हैं, तो वे समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं।


आदिबा 

बडी,गया


(आमना हुसैन, गया जिला, आमस प्रखंड के हमजापुर गॉव से सम्बन्ध रखते हैं। आपने आपनी स्नातक की डिग्री इतिहास ओनर्स में उतर प्रदेश कॉलेज (अलिग्रह मुस्लिम विश्वविधायल  से मान्यता प्राप्त कॉलेज) से ली है। आपके घर के एक भाई, तीन बहन और माता-पिता हैं। 

आप i-सक्षम में जुड़ने से पहले घर पे रह कर पढाई करते थे। आपको i-सक्षम के बारे में whatsapp स्टेटस से जानकारी मिली, और वर्ष 2023 में संस्था के साथ जुड़े हैं। i-सक्षम में बड्डी के नाम से आपको समाज और संस्था में नयी पहचान मिली है। आप अपने जीवन में पुलिस बनाना चाहते है। )


एडू-लीडर्स के आत्मविश्वास की नई दिशा

एडू-लीडर्स के आत्मविश्वास की नई दिशा

झरी पंचायत एक छोटा सा गाँव है, जहाँ आज एक खास दिन की तैयारी चल रही थी। गांव के छोटे से पंचायत भवन में क्लस्टर आयोजन होना था।

सोमवार को, स्नेहा (बैच 10 की एडु लीडर) और मैं दोनों मिलकर पंचायत के मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति के सदस्यों, वार्ड मेंबर्स, गांव के प्रमुख लोगों और विद्यालय के प्रिंसिपल को आमंत्रित करने की योजना बनाई। सभी ने आश्वासन दिया कि वे प्रतियोगिता में जरूर शामिल होंगे।


क्लस्टर प्रतियोगिता का दिन आया। ब हम झरी पंचायत भवन पहुंचे, तो मन में कई सवाल उठ रहे थे:

क्या आयोजन सफल होगा?

क्या सभी लोग आएंगे?


जैसे ही प्रतियोगिता का समय आया, गांव के मुखिया, सरपंच और अन्य प्रमुख सदस्य समय पर 11 बजे आ गए। इसने हमें आश्वस्त किया कि हमारा प्रयास सही दिशा में है।


प्रतियोगिता की शुरुआत दीप प्रज्वलन और स्वागत गीत से हुई। इसके बाद मैंने i-सक्षम और क्लस्टर के उद्देश्य और अनुभवों के बारे में सभी को जानकारी दी। रानी, सविता और मनीता दीदी ने भी अपने अनुभव साझा किए, जिन्होंने सभी को प्रेरित किया।



सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि उपस्थित PRI (पंचायत राज संस्था) सदस्य, प्रिंसिपल और अभिभावकों ने अपने विचार और सुझाव दिए। यह मेरे लिए बेहद सकारात्मक अनुभव था। PRI सदस्यों ने न केवल हमारी पहल की सराहना की, बल्कि इसे और व्यापक स्तर पर ले जाने का वादा भी किया।


हमने पहले से योजना बनाई थी कि कार्यक्रम के अंत में हम गाँव के प्रमुख और PRI सदस्यों से सहयोग मांगेंगे, लेकिन ऐसा करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। वे खुद ही हमें सहयोग देने के लिए तैयार हो गए।


कार्यक्रम का समापन "चेतना" गीत से हुआ, और सभी ने इस प्रतियोगिता के लिए आभार व्यक्त किया। झरी पंचायत के मुखिया ने खास तौर पर कहा, "आप जो काम कर रहे हैं, हम चाहते हैं कि यह और बड़े स्तर पर हो। जितनी मदद चाहिए, हम सभी प्रतिनिधियों से लें।" यह बात न सिर्फ हमारे लिए, बल्कि पूरे क्लस्टर के लिए बेहद उत्साहजनक थी।


यह प्रतियोगिता न केवल सक्षम, बल्कि सशक्त बनाने में भी मदद करेगी और हमारे एडु लीडर्स को अपने कार्य में आत्मविश्वास प्रदान करेगी। इस आयोजन ने हमें यह महसूस कराया कि जब सामुदायिक सहयोग मिलता है, तो किसी भी चुनौती को आसानी से पार किया जा सकता है।


निकी कुमारी  

बडी, गया


मीडियावाला सेशन का अनुभव और सीख

नमस्ते साथियों, 

मैंने हाल ही में आठ दिनों के मीडियावाला सेशन में भाग लिया, जिसने मेरी जिंदगी को सकारात्मक दिशा में बदला। इस सेशन में, मैंने कई नए कौशल सीखे, जैसे फोटोज़ को गोल्डन रेशियो (Golden ration) में लेना, वीडियो में अलग-अलग एंगल(Angle )और फ्रेम(Frame) का उपयोग करना, एक उद्यम के लिए लोगो, टेम्पलेट(Templet), कलर पैलेट (Color palette), टैगलाइन (Tagline), विजिटिंग कार्ड(Visiting card) बनाना, और फोटो-वीडियो एडिटिंग(Editing)।

लेकिन यह सेशन सिर्फ नए कौशल सीखने तक सीमित नहीं था। इसने मुझे आत्मविश्वास बढ़ाने और अपनी क्षमताओं को पहचानने का अवसर दिया। जब मैंने अपने ग्रुप के साथ मिलकर "अनमोल गारमेंट्स" के लिए लोगो(Logo) डिज़ाइन किया और उनका वीडियो शूट किया, तब मुझे एहसास हुआ कि मैं किसी भी चुनौती को स्वीकार कर सकती हूँ।


हालांकि, जब दुकान के मालिक कोलकाता जाने के कारण वीडियो शूट में शामिल नहीं हो सके, तो हमने हार नहीं मानी। हमने दूसरा विकल्प चुना और एक अन्य दुकान के लिए लोगो और वीडियो बनाया। इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा विकल्प तलाशने चाहिए।

अंत में, हमने अपने काम को एक्ज़िबिशन (Exhibition) में प्रदर्शित किया और सभी ऑफिस सदस्यों को अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया। इस सेशन से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और सबसे बड़ी बात यह कि मैंने अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना सीखा। यह अनुभव मेरे जीवन में हमेशा खास रहेगा, और मैं इसे कभी नहीं भूल सकती हूँ।

आस्था 

बडी इन्टर्न


(आस्था सोनपय गाँव की रहने वाली हैं। आस्था ने मुंगेर यूनिवर्सिटी से प्राणिविज्ञान ( zoology ) मे स्नातक की पढ़ाई की है और वर्तमान मे APU यूनिवर्सिटी मे मास्टर्स करने के लिए तैयारी कर रही हैं। वह 2022 मे i- सक्षम के बैच नौ के फेलो के रूप मे जुड़ी थी। दो साल की फेलोशिप के बाद ,आस्था का कहना है कि वो आगे अपने समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं और professor बनना चाहती हैं |)

Tuesday, October 22, 2024

हिम्मत के साथ नई शुरुआत: रूचि

हिम्मत के साथ नई शुरुआत : रूचि 

आज हम सुनते हैं एक ऐसी निडर लड़की की कहानी, जिसकी जिंदगी संघर्ष और साहस की मिसाल बन गई। यह कहानी है रूचि की, एक ऐसी लड़की जिसकी उम्र केवल 17 साल है। कल्पना कीजिये की आपकी माँ अब इस दुनिया में नहीं हैं, पिता जी घर से दूर रहते हैं, और आप अकेले एक परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी उठाने को मजबूर हैं

रूचि, मुंगेर बैच-10 की एडू लीडर, ने कम उम्र में ही ऐसी परिस्थितियों का सामना किया जिनसे बड़े-बड़े भी घबरा जाएं।जहाँ अधिकतर लोग गरीब होते हुए भी अपने माता-पिता के संरक्षण में सुरक्षित रहते हैं, वहीं रूचि अपने माँ के बिना और पिता की अनुपस्थित में घर की अकेली जिम्मेदार बन गई

दो साल पहले उसकी माँ की देहांत हो गया उस समय से, रूचि को अपने दो भाइयों और घर का पूरा भार उठाना पड़ाएक शांत, डरपोक और कमजोर लड़की के लिए यह काम बेहद कठिन था धीरे-धीरे, वह मानसिक तनाव की शिकार हो गई रूचि की जिंदगी जीना आसान नहीं था

जब रूचि के पिता ने उसकी कठिनाइयों को देखकर उसकी शादी कराने का निर्णय लिया, तो उसकी दुनिया और उलट-पुलट हो गई। रूचि ने दसवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की थी और वह आगे पढ़कर एक अच्छी नौकरी करना चाहती थी। लेकिन शादी के बात ने उसे अंदर से तोड़ दियावह अकेले घर से बाहर जाने में डरने लगी, उसकी हालत इतनी ख़राब हो गई कि वह रोते-रोते अचानक चिल्लाने लगती। आस-पड़ोस की लोग समझने की बजाय आलोचना करते, जिससे उसकी हालत और बिगड़ती गई

पर रूचि की जिंदगी में एक रोशनी की किरण आई। जब उसके दोस्तों और ऑफिस के सहकर्मियों ने उसकी स्थिति के बारे में जाना, तो उन्होंने उसे साहस दिया और समझायाउन्होंने कहा, "जब भी रोना आए, तो बिना रोए लोगों के बिच अपनी बातों को हिम्मत से रखो। "इस बात ने रूचि को एक नई राह दी उसने अपनी साथी रश्मि दीदी को सहारा लिया और अपनी समस्याओं को उनके साथ साझा करना शरू किया

धीरे-धीरे रूचि ने अपने भीतर की कमजोरी को हरा दिया।की कमजोर समझी जाने वाली एक लड़की कैसे अपने साहस से सबकुछ बदल सकती हैअब अपने पढाई पर ध्यान केन्द्रित कर रही है और अपने आत्म-सम्मान को बढ़ा रही है। वह अब दूसरों की बातों को सुनकर चुपचाप नहीं रोती, बल्कि मजबूती से उनका सामना करती है

कहते हैं:

"नारी, तू सबकुछ कर सकती है।
तू पत्थर से भी ज्यादा कठोर है,
हर बंधन-रुकावट तोड़ सकती है।
तेरी राह चाहे कितनी मुश्किल हो,
तू अपने दम पर नया रास्ता बना सकती है।
तू शांति भी है, और जंग की तलवार भी,
हर मुश्किल का हल तू खुद निकाल सकती है।
नारी, तुझमें बेमिसाल ताकत का दरिया बहता है,
बस खुद पर भरोसा रख,तू हर सपना साकार कर सकती है।"

रुचि
बैच-10, मुंगेर
(रुचि कुमारी बांक टोला फ़रदा की रहने वाली है । रुचि मुंगेर विश्वविद्यालय में पॉलिटिकल विषय से स्नातक की पढ़ाई कर रही है । वह 2023 में i - सक्षम में जुड़ी है, जो बैच 10 की एड़ू लीडर है ।  यह i सक्षम में जुड़ने से पहले बस एक आम लड़कियों की तरह घर में चूल्हा चौका करती थी , और कम उम्र में शादी का बोझ था । आज ये i सक्षम के साथ मिलकर खुद को और अपने जैसी लड़कियों को हौसलों के साथ उभारना चाहती है।)

Saturday, October 19, 2024

मुस्कान के प्रयासों से बच्चों में आत्मनिर्भरता

मुस्कान के प्रयासों से बच्चों में आत्मनिर्भरता

हसनपुर गाँव के एक छोटे से प्राथमिक विद्यालय में मुस्कान नाम की एक एडु-लीडर ने अपने प्रयासों से चमत्कारी बदलाव लाया। जब मुस्कान पहली बार इस विद्यालय में आई, तो उसे एक ऐसी तस्वीर दिखी, जो हर शिक्षिका के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती थी। बच्चे पढ़ाई में कोई रुचि नहीं लेते थे। वे हमेशा खेलकूद में ही व्यस्त रहते थे और किताबों से बहुत दूर थे। विद्यालय का माहौल भी नीरस और उत्साहविहीन था।

मुस्कान ने यह महसूस किया कि बच्चों को सिर्फ कड़े पाठ्यक्रम और अनुशासन के द्वारा नहीं, बल्कि उनके दिलों में शिक्षा के प्रति रुचि और उत्साह पैदा करके ही कुछ बदला जा सकता है। इसलिए उसने बच्चों से धीरे-धीरे दोस्ती करना शुरू किया। उसने उनके साथ खेलों में भाग लिया, उनकी रुचियों को समझा और इस तरह से बच्चों का विश्वास जीतने में सफल रही।

अब मुस्कान के पास एक नया दृष्टिकोण था – पढ़ाई को खेल की तरह मजेदार बनाना। उसने बच्चों के लिए छोटे-छोटे कहानी सत्र और गतिविधियाँ आयोजित कीं, जो न केवल उन्हें पढ़ाई के प्रति रुचि दिलातीं, बल्कि उनके मनोबल को भी बढ़ातीं। उसने दिखाया कि पढ़ाई सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक खेल की तरह मजेदार हो सकती है, जिसमें बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है। इन गतिविधियों के माध्यम से बच्चों ने देखा कि पढ़ाई भी आनंददायक हो सकती है और धीरे-धीरे उनकी पढ़ाई में रुचि बढ़ने लगी।

 

समय के साथ विद्यालय का माहौल बदलने लगा। पहले जहाँ बच्चे बैग रखकर विद्यालय से बाहर घूमते रहते थे, वहीं अब उनकी बातचीत और रहन-सहन में एक नया बदलाव आने लगा। शिक्षक-अभिभावक बैठक में यह चर्चा होने लगी कि अब बच्चे पढ़ाई में अधिक ध्यान देने लगे हैं। बच्चों की सोच में परिवर्तन आया, और विद्यालय में उत्साह का माहौल बनने लगा।

यह बदलाव सिर्फ पढ़ाई तक सीमित नहीं रहा। पहले जब विद्यालय में प्रार्थना होती थी, तो बच्चे उसे सिर्फ मजबूरी समझकर ताली बजा-बजाकर करते थे। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे कार्यक्रमों में बच्चों का उत्साह भी बहुत कम था। लेकिन मुस्कान ने बच्चों को समझाया कि अगर वे पढ़ाई में रुचि ले सकते हैं, तो बाकी सब चीजें भी उनके लिए आसान होंगी।

इस एक छोटे से संदेश ने बच्चों में जोश भर दिया। अब बच्चों ने खुद से प्रार्थना करवाई और स्वतंत्रता दिवस पर नारे लगाने और गाना गाने के लिए उत्साहित हो गए। यह देखकर मुस्कान को बहुत संतोष हुआ, क्योंकि उसने बच्चों में न केवल पढ़ाई की रुचि जगाई थी, बल्कि उन्हें जिम्मेदारी और आत्मविश्वास भी सिखाया था।

मुस्कान के छोटे-छोटे प्रयासों ने बच्चों के जीवन में बड़ा बदलाव ला दिया उनकी उत्साही भागीदारी और मुस्कान के निरंतर प्रोत्साहन ने न केवल उनके शैक्षिक स्तर को बढ़ाया, बल्कि उन्हें समाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सक्रिय रूप से भाग लेने की प्रेरणा दी। मुस्कान का आत्मविश्वास भी इन बदलावों को देखकर बढ़ा

मुस्कान कुमारी 

बैच-10 

बडी - नेहा कुमारी, मुजफ्फरपुर

हमारा स्कूल सबसे प्यारा- कविता

सुपर है, सुपर स्कूल हमारा!

वहां जाओगे जब तुम,
सपनों का संसार मिलेगा,
जीवन का आधार मिलेगा।

सुपर है, सुपर स्कूल हमारा!
खेल का मैदान बड़ा सुहाना,
हर खेल का सामान निराला।
पढ़ने का एक अलग मज़ा,
लिखने की दुनिया भी है सजा।

सुपर है, सुपर स्कूल हमारा!
वहां जाओगे जब तुम,
हर दिन बनेगा खास,
सुपर है, सुपर स्कूल हमारा!

सलोनी

बैच-9, मुजफ्फरपुर


(यह कविता सलोनी कुमारी ने लिखी है। वो छपरा मेघ गांव की रहने वाली हैं। उनकी पढ़ाई गाँव के एजुकेशन इंडिया स्कूल से शुरू हुईं और अभी महंत दर्शन दास महिला कॉलेज मिठनपुरा, मुजफ्फरपुर में पढ़ रही हैं। उन्हें i-सक्षम के बारे में उनकी दोस्त तृप्ति से वर्ष 2022 के अप्रैल माह में पता चला। वो पढ़-लिखकर प्रोफेसर बनना चाहती हैं।)


Friday, October 18, 2024

एडु-लीडर के भविष्य को संवारने के लिए, दोस्त ने उसकी माँ को मनाया

मेरा नाम खुशबू है। मैं प्रीति की दोस्त हूँ और मैं यह लेख प्रीति के बारे में साझा कर रही हूँ। प्रीति एक चौगाईन गाँव की लड़की है। उसने i-सक्षम संस्था में दो वर्ष की फेलोशिप पूरी की है। फ़ेलोशिप के उपरांत वो कुछ समय घर में रह रही थी। वह कोई जॉब इत्यादि नहीं कर रही थी परन्तु अपनी आगे की पढ़ाई जरुर कर रही थी।

एक शाम की बात है। वह शाम मेरे जीवन की सबसे परेशानी वाला रात में से एक थी। अचानक मेरे फ़ोन में आदित्य सर का कॉल आया। उनके कॉल का मतलब हमेशा किसी न किसी नई चुनौती से होता है। मैंने जैसे ही कॉल उठायी, सर ने मेरी तारीफ की। मुझे एहसास हुआ कि मेरे कार्यों ने उनका विश्वास जीत लिया है।  


उसके बाद सर ने अपनी बात रखी। उन्होंने बोला कि ‘प्रीति को किशनगंज भेजना है’ किसी भी तरह से उसे गाँव से बाहर निकालना हैं। 


आदित्य सर की बातों से मुझे समझ आ रहा था कि वो बहुत चिंतित हैं। मैंने उन्हें अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करने का आश्वासन दिया।


मैंने सर को आश्वस्त तो कर दिया परन्तु मैं पूरी रात सो नहीं पायी। क्योंकि मैं भी प्रीति के घरवालों को जानती हूँ। 

पूरी रात मेरा मन बस यही सोचता रहा कि प्रीति की माँ को कैसे मनाया जाए? उन्हें कैसे समझाया जाए?


मैं सुबह 4 बजे ही उठ गयी और प्रीति के घर जाने के लिए तैयार हो गयी। प्रीति की माँ मुझे देखते ही बोली कि आप आ ही गयी! परन्तु उनकी आँखें नम थी और चेहरा उदास था। मैंने उन्हें समझाया कि देखिये आंटी, यदि आज आप प्रीति को मौका देती हैं तो वह जरुर कुछ बड़ा कर सकती है। 

पर वो मान ही नहीं रही थीं। उनके आँसुओ ने मुझे भी हिला कर रख दिया।



जब मैंने देखा की प्रीति की माँ को मनाना इतना आसान नहीं है, तो मैंने आदित्य सर को कॉल किया। सर ने उन्हें समझाने के लिए बहुत तरीकों से प्रयत्न किया। 


उन्होंने यह तक कहा कि याद कीजिये जब प्रीति पेट में थी तब आपने कितने कष्ट सहे? 

कुछ अच्छा करने के लिए थोड़ा-बहुत सहन तो करना पड़ता ही है। आखिरकार सर की बातों का प्रीति की माँ पर प्रभाव पड़ा और प्रीति की माँ मान गई। 


उसी दिन प्रीति और मैं बस में बैठ गए। प्रीति बार-बार पीछे मुड़कर अपनी माँ को देख रही थी, मानो उसका दिल वहाँ छूट गया हो। मुझे डर था कि कहीं वह अपना मन न बदल ले और वापस घर न चली जाए। जब ट्रेन चल पड़ी और मैंने प्रीति को ट्रेन में बैठा हुआ देखा, तब जाकर मुझे संतोष हुआ। 


मैं खुद भूखी-प्यासी थी, लेकिन दिल में एक अजीब सा सुकून था। मुझे खुद पर गर्व महसूस हो रहा था कि मैंने वह काम कर दिखाया, जिसके लिए सर ने मुझ पर भरोसा किया था। 


अगले दिन मुझे यह सुनकर बहुत ख़ुशी हुई कि प्रीति ने वह हासिल कर लिया जिसके लिए हम तीन-चार दिनों से प्रयासरत थे मेरे लिए यह गर्व का पल था कि मैं इस यात्रा में उसकी मदद कर पायी


खुशबू कुमारी 

बडी इंटर्न, गया


प्राइवेट स्कूल में नामांकन होने की आशंका से सरकारी स्कूल से नामांकन कटा

आज मैं तीन स्कूलों और गांवों में गई, जहाँ का अनुभव साझा करना चाहूंगी। सबसे पहले, मैं महापुर गांव गई और सीमा दीदी को साथ लेकर गई क्योंकि यहाँ दो लड़कियाँ थीं जो बिल्कुल भी सुनने को तैयार नहीं थीं। जब भी उन्हें स्कूल ले जाने की कोशिश की जाती, वे या तो जंगल चली जातीं, या कहीं छिप जातीं, या फिर घर में ही रहतीं। उनके माता-पिता भी अब थक चुके थे क्योंकि वे भी उन्हें समझाने की कोशिश करते, लेकिन लड़कियाँ सुनती ही नहीं थीं।

जब हमने उनकी माँ से बात की, तो वह बोलीं कि उन्होंने कई बार बच्चियों को स्कूल भेजने की कोशिश की है, लेकिन वे नहीं सुनतीं और उल्टा लड़ने लगती हैं। इस स्थिति को देख हम भी असमंजस में थे कि अब क्या किया जाए!

आज जब हम वहाँ गए तो एक लड़की जिसका नाम काजल कुमारी था, की भाभी से बात की। उन्होंने बताया कि काजल धान की रोपाई के लिए दूसरे गांव गई है और आठ दिन बाद वापस आएगी। हमने उनसे कहा कि आप काजल को स्कूल क्यों नहीं भेजतीं, तो भाभी ने जवाब दिया कि हम उसे समझाते हैं लेकिन वह नहीं मानती।

फिर हम दूसरी लड़की के घर गए। उसकी माँ ने बताया कि वह प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई कर रही है। हमने कहा, "ठीक है, लेकिन कम से कम हफ्ते में दो दिन तो उसे सरकारी स्कूल भेज सकते हैं, ताकि उसका नामांकन कटा न हो।" इस पर उनकी माँ ने हामी भरी, लेकिन आधार कार्ड में गलती की वजह से समस्या थी। हमने उन्हें आधार कार्ड लेकर नाम चढ़वाने को कहा, लेकिन उन्होंने समय की कमी का हवाला दिया।


इसके बाद हम M.S. वृंदावन स्कूल गए, जहाँ प्रिंसिपल से बात की। उन्होंने बताया कि एक बच्ची का नाम उन्होंने काट दिया है क्योंकि वह प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाती है। हमने उनसे कहा कि बच्ची अब से नियमित रूप से सरकारी स्कूल आएगी, इसलिए उसका नामांकन वापस चढ़ा दें। लेकिन प्रिंसिपल ने कहा कि जब तक वह लगातार दो महीने स्कूल नहीं आएगी, तब तक नामांकन नहीं होगा। हमने बच्ची के अभिभावकों को भी बुलाया, लेकिन प्रिंसिपल नहीं माने। हमने दो घंटे तक बैठकर उनसे रिक्वेस्ट (request) की, लेकिन कोई हल नहीं निकला। अंत में, हमने वहाँ दो अन्य बच्चों का रिटेंशन किया।

इसके बाद, P.S. महापुर स्कूल में दो बच्चों का रिटेंशन हुआ। फिर हम सांवला गए, जहाँ एक बच्ची का रिटेंशन करना था। उसकी माँ ने बताया कि बच्ची बहाने बनाती है कि उसकी कॉपी नहीं है और स्कूल नहीं जाती। जब हम मैडम को लेकर गए, तो पता चला कि वह बच्ची मानसिक रूप से दिव्यांग है। मैडम ने कहा कि वह स्कूल नहीं जा पाएगी, इसलिए हम बेवजह परेशान हो रहे हैं।

अंजना वर्मा
मैत्री प्रोजेक्ट, गया


गया: मैत्री प्रोजेक्ट के तहत रिटेंशन की चुनौतियाँ और प्रयास

मैत्री टीम की ट्रेनिंग के बाद, मैंने और साक्षी दीदी ने मिलकर गया टीम के सदस्यों को रिटेंशन के तरीकों के बारे में सिखाया। सबसे पहले, सभी को PMS सिस्टम में लॉगिन कराया गया और रिटेंशन के नियमों को अच्छे से समझाया गया। नियम यह था कि केवल उन्हीं बच्चों का रिटेंशन किया जाए, जो पहले से ही स्कूल आ रहे थे। जो बच्चे लंबे समय से स्कूल नहीं आ रहे थे, उन्हें बाद में रिटेंशन किया जाएगा, जब वे नियमित रूप से स्कूल आना शुरू कर देंगे।


सभी एडू लीडर्स ने अपने-अपने कक्षाओं में बच्चों की जाँच की और जो बच्चा नियमित रूप से स्कूल आ रहा था, उसका रिटेंशन किया। इस प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ सामने आईं। एक दिन, जब सभी एडू लीडर्स स्कूल से ऑफिस आए, तो उन्होंने अपनी-अपनी चुनौतियों को सभी साथियों के सामने रखा। हर किसी की समस्या अलग-अलग थी। इसके बाद, सभी साथियों ने मिलकर इन चुनौतियों का समाधान खोजा।

भालुहार गाँव की चुनौती:

भालुहार गाँव में एक बच्ची थी, जो प्रतिदिन स्कूल जाती थी। जब वहाँ के प्रधानाध्यापक अशुतोष कुमार से हमारे प्रयासों में मदद करने की बात कही गई, तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। जब खुशबू दीदी और प्रीति दीदी वहाँ गईं, तो प्रिंसिपल ने कहा कि वे हमें नहीं जानते और उन्होंने डाटा देने से मना कर दिया। प्रमोद भैया भी वहाँ गए, लेकिन स्थिति नहीं सुधरी।

प्रीति दीदी और मैंने मिलकर योजना बनाई कि हम दोनों खुद वहाँ जाएँगे। जब हम पहुँचे, तो प्रिंसिपल ने फिर से वही व्यवहार किया। लेकिन हम धैर्यपूर्वक उनसे बात करते रहे। हमने कक्षा में जाकर सभी बच्चों को बुलाया और प्रिंसिपल को स्थिति समझाई, लेकिन उन्होंने फिर भी डाटा देने से मना कर दिया। अंत में, कक्षा के शिक्षक ने सहयोग किया और हमें डाटा दिया।

B.T. बिगहा की समस्या:

B.T. बिगहा गाँव में चार बच्चे ऐसे थे, जिनमें से दो बच्चे गाँव छोड़ चुके थे, और बाकी दो बच्चे पढ़ाई के लिए तैयार नहीं थे। गया की पूरी टीम ने मिलकर इन बच्चों को प्रेरित करने का प्रयास किया। जब हमने उनकी माँ से बात की, तो उन्होंने कहा कि बच्चे पढ़ाई के लिए तैयार ही नहीं हैं, और उन्होंने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

जीविका दीदी से मदद:

जब माता-पिता से बात करने पर भी कोई सुधार नहीं हुआ, तो मैं और प्रमोद भैया जीविका दीदी (सुनीता कुमारी) से मदद लेने गए। हम तीनों फिर से बच्चे के घर गए। जब हम पहुँचे, तो बच्ची की माँ घर पर नहीं थी, और पापा ने बात करने से मना कर दिया। फिर बच्ची की दादी ने भी यह कहकर बात टाल दी कि जब बच्ची पढ़ना नहीं चाहती, तो उसे छोड़ दीजिए।
जीविका दीदी ने बच्ची से कहा, "अगर तुम नहीं पढ़ोगी, तो माँ-पापा को पुलिस पकड़कर ले जाएगी।" लेकिन बच्ची ने फिर भी मना कर दिया और बोली, "अगर जेल भी जाना पड़े, तो चले जाएँगे, लेकिन पढ़ने नहीं जाएँगे।" इस पर हम तीनों उदास हो गए, लेकिन हमने हार नहीं मानी।

परिणाम और सीख:

रिटेंशन की अंतिम तिथि आ गई थी, और हमें कुछ बच्चों को छोड़ना पड़ा। इस अनुभव से हमने सीखा कि कुछ बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास करने की आवश्यकता होती है।

श्रृंखला कुमारी
मैत्री प्रोजेक्ट, गया