मैं आप सभी साथी के साथ अपने दिल्ली जाने आने के अनुभव को साझा करने जा रही हूँ। दिल्ली में मेरी दीदी और जीजा जी एक दशक से रहते हैं। जब भी उन लोगों से बात होती तो बोलते थे कि आ जाओ दिल्ली घूमने के लिए। मैंने भी इस बार बोल दिया कि मेरी टिकट बना दो और 10 फरवरी की मेरी टिकट बन भी गयी।
मैंने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने माता-पिता को बिना बताये ये टिकट बनवा ली। थोडा-बहुत डर तो था मन में परन्तु यह भी पता था कि हिम्मत करुँगी तो पहुँच ही जाऊँगी। और यह आत्मविश्वास मेरे भीतर किशनगंज की यात्रा से आया। हालाँकि मेरे साथ टीम के सदस्य भी थे।
जब मैंने अपनी माँ को दिल्ली जाने के बारे में बताया तो वो मुझे बहुत तेज से डाँटने लगी।
माँ बोली कि तुम्हें समझ नहीं आता क्या?
तुम अकेले कैसे जाओगी?
गाँव के लोग क्या बोलेंगें?
मुझसे तरह-तरह के प्रश्न करने लगी।
मैंने अपनी माँ को समझाया कि गाँव के लोग तुम्हें ताने देने के आलवे कुछ नहीं दे सकते हैं उनका यही काम है।
स्मृति दीदी और आँचल दीदी का उदाहरण देते हुए उन्हें समझाया कि ये दोनों भी तो दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू अकेले आती-जाती हैं। तो मैं क्यों नहीं जा सकती?
एक समय था जब तुम्हे लगता था कि मैं अकेले जमुई भी नहीं जा सकती! फिर भी तुमने मुझपर विश्वास करके मुझे जाने का मौका मुझे दिया। तो इस बार भी मुझपर विश्वास करो, मैं जा सकती हूँ।
इतना कहने की देर थी। माँ ने मेरी तरफ से पापा से भी बात की। मेरे पापा ने मुझसे कोई प्रश्न नहीं किया। उन्हें मुझ पर विश्वास था कि मैं जा सकती हूँ। इस तरह से मैं अपने माँ-पापा की सहमति से दिल्ली के लिए निकल पड़ी।
जब मैं अपनी सीट पर बैठी थी तो मैं अपने आस-पास के लोगों को नोटिस कर रही थी कि कौन क्या कर रहा है? किसके साथ है? तभी मुझे कुछ लड़कियाँ दिखीं जो अकेले ही थी। उन्हें देखकर मेरी हिम्मत बढ़ी।
अगली सुबह मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरी तो मेरे जीजा जी मुझे लेने आये हुए थे। हम दोनों साथ हुए और मैं पहली बार मेट्रो पर चढ़ी। दिल्ली में घूमने की अच्छी सुविधा है। प्रत्येक दो मिनट में मेट्रो आती है।
दिल्ली एक महानगर है। वहाँ के लोग, रहन-सहन उनका माइंडसेट (mindset) जमुई के लोगो से बहुत अलग है। सब अपनी दुनियाँ में खुश हैं। ऐसा लगता है मानो किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है। लोग खुले विचारों के हैं। दिल्ली में लड़कियाँ टोटो, रिक्शा और कार आदि खुद ड्राइव करती हैं जो यहाँ जमुई में देखने को नहीं मिलता है। मुझे यह सब देखकर बहुत अच्छा लगा।
दिल्ली में क़ुतुब मीनार,इंडिया गेट, लोटस टेम्पल, मुग़ल गार्डन और भी बहुत सारी जगहों पर मैं घूमी। बहुत सारी शॉपिंग भी की। जो सबसे अच्छी शॉपिंग की जगह मुझे तिलक मार्किट लगी और सबसे अच्छा घूमने की जगह मुझे क़ुतुब मीनार और मुग़ल गार्डन लगा।
फिर 29 फरवरी को अकेले दिल्ली से अपने घर आई और अपने माँ-पापा के साथ खूब सारे किस्से-कहानियाँ शेयर की।
सोनम कुमारी
बडी, जमुई
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