जब आकांक्षा (एडु-लीडर, बैच 10) अपने विद्यालय पहली बार गयी थी तो उनका ध्यान अपनी कक्षा की एक बच्ची ‘सृष्टि’ पर पड़ा। उसकी और ध्यान इसलिए गया कि उसका हाव-भाव, शरीर, कक्षा में बैठने का तरीका और व्यव्हार बाकी बच्चों से अलग था। वो कुछ मायूस सी भी दिख रही थी। कुछ दिनों में आकांक्षा को समझ आ गया कि यह बच्ची डरी-सहमी सी रहती है। गरीबी रेखा के नीचे आने वाले घर में जन्मी सृष्टि के पिता मजदूरी करते हैं और माता गृहणी हैं।
पहली बार तो काफी पूछने पर भी सृष्टि कुछ नहीं बोली थी परन्तु धीरे-धीरे आकांक्षा ने उसके लिए अलग से रणनीति बनाना शुरू किया।
गतिविधि के माध्यम से गणित, अंग्रेजी जैसे विषय समझाना शुरू किया। और कुछ ही दिनों में सृष्टि में बदलाव देखा गया। वो अब बोलने लगी है, अपनी बात रखने लगी है। माइंडफुलनेस और गतिविधियों में भाग लेती है।
एक दिन प्रधानाध्यापिका सभी कक्षाओं के दौरे पर थी तो उन्होंने सृष्टि को गतिविधि में भाग लेते देखा तो वो आश्चर्यचकित हो गयी। उन्होंने अपना फ़ोन निकाल कर सृष्टि की एक विडियो भी रिकॉर्ड की। वो इस बात को सराह रही थी कि सृष्टि अब कक्षा में बोलने लगी है। मुझे भी प्रधानाध्यापिका से शाबाशी मिली। मैं फ़ेलोशिप के माध्यम से एक बच्ची के जीवन में कुछ तो योगदान दे पायी, मुझे इस बात से संतुष्टि भी मिलती है।
राधा
कम्युनिकेशन बडी, मुज़फ्फरपुर
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