कहते हैं मानव अगर चाहे तो क्या नहीं कर सकता। वो पहाड़ तोड़ कर सड़क बना सकता है और आसमान में सुराग तक कर सकता है।
मैं एक चलंत पुस्तकालय के बारे में बताना चाहता हूँ। 28 मार्च, पिछले क्लस्टर मीटिंग ( क्लस्टर का नाम- सपनों की उड़ान) में इस बारे में प्लानिंग और लक्ष्य तय किया गया था। इसकी शुरुआत सरारी के अनुसूचित समुदाय से की गई।
जब हम समुदाय में पहुँचे तो ग्रामीण और बच्चे तरह-तरह की बातें कर रहे थे। वो अंदाज़ा लगाने कि कोशिश कर रहे थे कि हम क्या करने आये हो सकते हैं। कुछ बच्चे बोल रहे थे कि जादूगर का खेल होगा, कुछ बोले रहे थे कि नाच-गाना होगा और कुछ कहना था कि पूजा होगी।
समुदाय के बीचों-बीच एक चबूतरा भी था। जैसे ही हम सभी उस चबूतरे के पास पहुँचे। वहाँ पर बैठी एक महिला हमें देखकर अपने घर की तरफ गयी और उन्होंने घर से झाड़ू लाकर चबूतरे को साफ़ कर दिया।
फिर हम सभी जो किताबें लेकर गए थे उन्हें जैसे ही बैग से निकाला तो सभी बच्चे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे कि अरे हम सब तो पढ़ेंगे। ये लोग तो झोले में किताबें लायें हैं!
मज़ा आएगा!
फिर कुछ साथी किताबें लगाने लगे तो कुछ साथी सभी बच्चों को गोल घेरे में बिठाने लगे। फिर हमने बच्चों को दो ग्रुप्स में विभाजित किया। उन्हें वर्कशीट देकर उन्हें कार्य सौंपा। बच्चे अपने कार्य में लग गए। यह सब उनके अभिभावक भी करीब से देख रहे थे। कुछ देर बाद हम सभी ने Read Aloud की प्रैक्टिस की।
पहले ज्योति ने “मिठाई” का पठन किया, पिंकी ने “मिली का गुब्बारा”, पूनम ने “गोलगप्पे” और प्रियंका ने TLM का उपयोग किया। बच्चों में read aloud का खूब आनंद लिया।
सिर्फ बच्चे ही नहीं, वहाँ बैठे अभिभावक भी कहानी सुनने का आनंद ले रहे थे। कुछ बच्चे किताबें पढ़ने के लिए स्वयं आगे आये। उन्होंने हमसे पढ़ने के लिए किताबें माँगी।
हमारे चलंत पुस्तकालय की सोच और इतनी प्रतिभागिता देखकर हम सब भी बहुत खुश थे। इस पुस्तकालय में करीब 40 से अधिक बच्चे और 10 अभिभावक हमारे साथ जुड़े।
राजाराम कुमार
बैच-1, जमुई
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