Monday, May 13, 2024

कविता- मिलकर एक पहचान बनाएं

चलो आओ साथ मिले मिलकर एक पहचान बनायें

कर देंगे हम ऐसा काम जो किसी ने सोच ना होगा 

हम हैं काली हम हैं दुर्गा हमी से चलता ये संसार हमारा..

चलो आओ साथ मिले मिलकर एक पहचान बनाएं.. 

सूरज जैसी आग बनेंगे, नई रौशनी का नाम बनेंगे..

अब नहीं सोचेंगे कि लोग क्या कहेंगे?

केवल सुनेंगे अपने सपनों की आवाज़

नहीं डरेंगे नहीं डरेंगे लोगों की बातों से नहीं डरेंगे..


चलो आओ साथ मिले मिलकर एक पहचान बनाएं.. 

सोना जैसा उभरेंगें हीरे जैसा उभरेंगें 

हम हैं आज की नारी नया कुछ कर दिखायेंगे 

साथ मिलकर तोड़ेंगे हर एक दीवार हम 

अपने सपनों को आगे बढ़ाएंगे 

अगर कोई आएगा हमारे सपनों के बीच भूल जाएंगे कोई है हमारा..


चलो आओ साथ मिले मिलकर एक पहचान बनाएं.. 

ऐसा बनाएंगे आत्मविश्वास ना टूटेगा ना टूटने देंगे 

जो हमें नीची नजरों से देखेगा, दिखा देंगे 

अवतारी ना अबला ना बेचारी हम हैं 

आज के युग की नारी हैं, 

जब हम ही जननी हैं तो क्यों मार दिया जाता है 

जन्म लेने से पहले, नहीं रखेंगे कोई आशा 

अब खुद से लड़ेंगे, लेंगे अपना अधिकार 

चलो आओ साथ मिले मिलकर एक पहचान बनाएं..


चंचला कुमारी

बैच-10, गया 


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