साथियों, 1 मई (मजदूर दिवस) के दिन पापा ने मुझे सुबह जगाते हुए याद दिलाया कि आज तो विद्यालय की छुट्टी होगी, आज के कम्युनिटी वर्क का क्या प्लान है?
मैंने आँखें खोली और थोड़ा सोचने लगी। रात को सोने से पहले मैं अपने अगले दिन में विद्यालय जाने का प्लान मन में बनाकर सोयी थी। सुबह पापा की बात सुनकर मुझे फिर से याद आ गया कि “अरे आज तो छुट्टी है! कम्युनिटी वर्क करने जाना है”।
इतने में ही पापा बोले कि आज मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा। आज मेरी भी छुट्टी है। मैं देखूँगा कि तुम अपने कम्युनिटी वर्क में क्या-क्या करती हो? पापा की ये बात सुनकर मेरी ख़ुशी और बढ़ गयी और मैं बल्ले-बल्ले करते हुए झूमने लगी।
मैंने अपने लर्निंग ग्रुप में इन्फॉर्म किया कि आज स्कूल बंद है तो आप कम्युनिटी वर्क कर लीजिये और जिनके पास प्राइम बुक है वो उसी पर प्रैक्टिस कर लीजिये। हालाँकि बाद में मुझे यह भी लगा कि मुझे अपने बडी से पूछ कर कमांड (command) देना चाहिए था। जब मैंने अपने बडी को इसके बारे में बताया तो उन्होंने मुझे सराहा जिससे मुझे बहुत ख़ुशी हुई।
फिर मैं और पापा कम्युनिटी वर्क के लिए निकल पड़े। मैंने गाँव की तीन लड़कियों का आंकड़ा लिया और तय किया कि आज मैंने इन्हीं तीनों से मिलूंगी। साथ ही नयी एडु-लीडर के चयन के बारे में भी बताउंगी।
मैंने प्लान बनाया कि मैं 9 बजे प्रातः घर से निकलूंगी और साढ़े दस बजे तक वापस आ जाउंगी। परन्तु प्लान के अनुसार कुछ नहीं हो पाया।
मैंने अपने प्लान के अनुसार तीन लड़कियों से मुलाकात की। उनसे जो भी वार्ता करनी थी वो पूरी की। फिर जब पापा को बताया कि अब घर वापस चलते हैं तो पापा पूछने लगे कि बस इतना ही काम करती हो कम्युनिटी में?
चलो कुछ और ग्रामीणों से मिलकर इसकी जानकारी देते हैं। पापा की बात से मुझे मनोबल तो मिला लेकिन मुझे उनकी थोड़ी फ़िक्र भी हो रही थी क्योंकि उनका स्वास्थ्य इतना भी सही नहीं था कि वो मेरे साथ इतनी तपती तेज धूप में घूमें।
मैंने पापा की बात मानी और हम चार और नए लोगो से मिले। इतने लोगो से मिलकर मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। मुझे यह भी समझ आया कि एक बडी का रोल (role) कितना कठिन है। बबिता दीदी (बडी) हम एडु-लीडर्स को समझाती हैं और कितनी मेहनत करती हैं। कम्युनिटी वर्क को खत्म करने के साथ उनके प्रति एक आदर भाव मन में आ रहा था।
अनुप्रिया
बैच- 9, मुंगेर
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