मार्च महीने में हुई PTM मेरे लिए कोई साधारण PTM नहीं थी। यह मेरी दो सालों की कमाई थी। इस मेहनत की कमाई को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती।
शुरूआती PTM:
मुझे मेरी पहली PTM भी याद है। जब मैं पूरी मेहनत करके एक-एक बच्चे के अभिभावक से मिलकर उनको PTM में उपस्थित होने का आग्रह करती थी। उनके लिए स्पेशल आमंत्रण कार्ड (Invitation Card) बनाती थी, फिर भी 5-6 अभिभावक आते थे। जबकि पहली से पाँचवीं कक्षा के बच्चों की संख्या 50 रहती थी।
5 अभिभावक देखकर मन बहुत खिन्न होता था। हम 5-6 लोग ही मिलकर अपने लिए कुछ गोल्स (goals) भी बनाते थे। परन्तु फिर भी कोई सुधार नहीं दिखता था।
तब मैं ये सोचती थी कि पता नहीं क्या कमी रह जाती है जो इतने कम अभिभावक आते हैं? कुछ PTMs में ऐसा भी हुआ कि एक भी अभिभावक नहीं आये।
एक समस्या और अनेकों सुझाव:
इस समस्या को लेकर मैं बहुत परेशान भी हुई। मैंने अपनी बडी, राजमणि दीदी और धर्मवीर भैया से इस बारे में बात की तो दोनों की अलग सलाह थी। भैया बोल रहे थे कि “PTM में अभिभावक नहीं आ रहें हैं तो आप तो अभिभावकों से मिलने उनके घर या कार्य क्षेत्र (खेत इत्यादि) जा सकते हैं”। और दीदी का सुझाव था कि “आप यदि किसी सामूहिक स्थान या स्कूल में PTM करा सकें तो ही अच्छा रहेगा। ऐसे किसी के कार्यस्थल पर जाकर PTM कराना बिलकुल उचित नहीं रहेगा”।
क्लस्टर का सुझाव:
एक दिन हमारे क्लस्टर में अमन भैया शामिल हुए। उनका सुझाव था कि हम PTM के लिए अभिभावकों के घर जाकर मिल सकते हैं। तो मैंने ऐसे ही किया। मैं PTM वाले दिन बच्चों के घर जाकर उनके अभिभावकों से मिलने लगी। कई PTM ऐसी ही बीती।
एक दिन में मैं दस से ज्यादा अभिभावकों से नहीं मिल पाती थी। क्योंकि एक-एक अभिभावक के घर में 30 से 45 मिनट आराम से लग जाते थे।
मुझे बहुत असुविधा हो रही थी और मैं सभी बच्चों के अभिभावकों तक भी नहीं पहुँच पा रही थी।
अन्य प्रयास:
फिर एक दिन बडी कॉल में राजमणि दीदी से सलाह-मशवरा करने के बाद मैंने निश्चय किया कि मैं स्कूल की छुट्टी के बाद ही दो-दो बच्चों के अभिभावकों से मिलूँगी।
मैंने कुछ दिन ऐसा ही किया। और ये तकनीक काम भी आयी। इस बार मैं अभिभावकों से जुड़ पायी। मुझे जहाँ भी, जब भी अभिभावक दिख जाते थे मैं उनसे उनके बच्चे की प्रोग्रेस (progress) के बारे में बात करने लग जाती थी। थोड़ा हाल-चाल पूछ लिया करती। इस तरह मेरे और अभिभावकों के बीच एक भरोसा बना।
मुझे खुद पर विश्वास था और मैंने ठाना था कि मैं अभिभावकों को एक-साथ लाकर और विद्यालय से जोड़कर ही दम लूँगी। मेरे छोटे-छोटे प्रयासों से मैं आगे बढ़ रही थी।
फरवरी 2024 में मटर के खेत में हुई PTM:
फरवरी माह की PTM तो मेरी बडी नाज़िया दीदी ने मुझे सुझाव दिया कि इस माह की PTM सामुदायिक जगह में की जाये। उस समुदाय में मुझे कोई ऐसी जगह तो मिली नहीं इसलिए मैंने खेत में ही जाकर PTM करना सही समझा।
मैंने भी उनके साथ मटर छीलते हुए, अपनी PTM की कार्यवाही की।
और कुछ नहीं तो मुझे ऐसा तो महसूस हुआ कि मैंने इस मीटिंग में कुछ तो अलग किया!
साथ ही मैंने अभिभावकों को अगले माह की PTM के लिए भी आमंत्रित कर दिया। इस बार सभी अभिभावकों ने बोला कि हम पक्का आयेंगें। यह सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई।
तो मार्च में 30 तारिक को मेरे स्कूल में PTM रखी गयी।
मार्च 2024 में स्कूल की PTM:
समय की कमी के कारण मैं निमंत्रण पत्र नहीं बना पायी और ना ही एक-एक बच्चे के घर जाकर अभिभावकों को बता पायी। मैंने कक्षा में बच्चों को ही PTM के बारे में बता दिया था।
मुझे तो यह सोचकर थोड़ा डर लग रहा था कि पता नहीं, बच्चों ने अपने घर में जाकर अभिभावकों को PTM के बारे में बताया भी होगा या नहीं!
मैंने बच्चों से पूछा तो पता चला चला कि कुछ ने घर में सूचना दी है और कुछ नहीं बता पाए। मैं यह सुनकर थोड़ा परेशान हुई कि अब अभिभावक आयेंगें भी या नहीं?
हो सकता है कुछ ही आयें।
पर मैं गलत थी। इस बार स्कूल की PTM में 27 अभिभावक आये। लंच के आधे घंटे बाद तक PTM चली। अभिभावकों का मेरे लिए यह फीडबैक भी था कि आप हमारी बेटी जैसी हैं। आप हमारे बच्चों के लिए इतना कर रही हैं तो हमें क्या समस्या हो सकती है विद्यालय आने में!
फीडबैक और विभिन्नता:
प्रधानाध्यापक सर भी मुझसे पूछ रहे या कि ये तुमने कैसे किया? इन अभिभावकों में से कितने अभिभावक तो ऐसे हैं जिन्हें मैंने कभी स्कूल में नहीं देखा।
और यह सही में बड़ी बात है।
आपनी तारीफ सुनकर किसे ख़ुशी नहीं होती?
मुझे बहुत अच्छा लगा रहा था। मैंने बहुत सारी PTMs में अनेकों तरह की मेहनत की थी, ये शायद उसी का फल था। सभी अभिभावक मुझे अपनी बेटी की तरह मान रहे थे तो यह भी मेरे लिए गर्व की बात थी।
मैंने एक बहुत मुश्किल काम को आसान किया है यह मेरे लिए किसी उपलब्धि से कम आखिर कैसे हो सकता है?
सरिता
बैच- 9, मुंगेर
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