Wednesday, October 23, 2024

एक अनुभव जिसने मेरे दिल को छुआ

नमस्ते साथियों,

मैं रजनी बड़ी हूँ, लखनपुर गई थी बेसलाइन लेने के लिए। इस यात्रा में मैंने कई अनुभव किए, जिन्होंने मेरे दिल को छुआ और मेरी सोच को बदल दिया।

मेरी पहली मुलाकात राजनंदनी से हुई। उनकी बेसलाइन लेते समय, मुझे उनके बारे में बहुत कुछ पता चला। वे माँझी टोला की पहली लड़की हैं जिन्होंने बारहवीं की परीक्षा पास की है, लेकिन आर्थिक स्थिति के कारण वे आगे की पढ़ाई नहीं कर पाईं। उनकी शादी चार साल पहले तय हुई थी जब वे दसवीं में पढ़ती थीं। लेकिन राजनंदनी के होने वाले पति ने उनकी पढ़ाई को समर्थन दिया और कहा कि वे तब तक शादी नहीं करेंगे जब तक राजनंदनी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती।



इसके बाद मैं संगीता का बेसलाइन लेने गई, लेकिन वह कुछ देर बाद बोलना बंद कर दी। उसकी मम्मी ने मुझसे कहा कि वे लोग पैसे कमाने आते हैं और उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। संगीता ने लगभग तीस मिनट तक कुछ नहीं कहा और फिर कहा कि उसका सर दर्द कर रहा है। मैंने समझाने कि कोशिश कि, लेकिन वह समझ नहीं रही थी। जब मैं वहां से निकली, तो संगीता अपनी मम्मी से लड़ाई करने लगी।


मुझे और निशा को लखनपुर से वापस आने के लिए टोटो नहीं मिल पा रही थी। हम दोनों को एक घंटे से ज्यादा टोटो का इंतजार करना पड़ा।


आज की यात्रा मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक थी, लेकिन यह भी दुखी भरा था। मैंने देखा कि कैसे लड़कियों को उनके सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन मैंने यह भी देखा कि कैसे वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए लड़ती हैं।

रजनी

बडी 

जमुई


सफलता की ओर एक प्रेरक कदम

27 सितंबर 2024 को i-सक्षम एजुकेशन एंड लर्निंग फाउंडेशन ने PTEC (प्राइमरी टीचर एजुकेशन कॉलेज) के मैदान में क्लस्टर सेलिब्रेशन का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में गाँव से आई कई महिलाओं, अभिभावकों, PRI (पंचायत राज्य संस्था) सदस्यों और शिक्षकों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसका उद्देश्य पिछले डेढ़ साल में क्लस्टर द्वारा किए गए कार्यों की उपलब्धियों को साझा करना और उनका जश्न मनाना था।


कार्यक्रम की शुरुआत एक स्वागत गीत के साथ हुई, जिसे हमारे एडु लीडर्स ने प्रस्तुत कियाइसके बाद संस्था के उद्देश्य और विजन पर चर्चा की गई, जिसमें "Voice & Choice for Every Woman" के प्रति हमारा संकल्प साझा किया गया। i-सक्षम का मिशन 2030 तक 10,000 महिला लीडरों को सशक्त करना है, जो शैक्षिक, सामुदायिक और व्यक्तिगत नेतृत्व के क्षेत्रों में काम करेंगी।


एडु लीडर्स अंजलि, सारिका, चंचला, काजल, पम्मी, चांदनी, काजल, बबिता, निशा और शालू ने अपनी कहानियां और अनुभव साझा किए। सामुदायिक नेतृत्व के अंतर्गत महिलाओं को हस्ताक्षर करना सिखाने, सरकारी सेवाओं के बारे में जागरूकता फैलाने, गांवों में सफाई और वृक्षारोपण अभियान चलाने, और सरकारी स्कूलों में ड्रॉपआउट बच्चों के पुनः नामांकन पर कार्य किया गया। महिलाओं को आयुष्मान कार्ड, आधार कार्ड जैसे लाभ समझाने और मासिक धर्म जागरूकता पर विशेष जोर दिया गया।


खेल और गतिविधियों में म्यूजिकल चेयर और गुत्तम-गुत्था जैसी पारंपरिक खेल शामिल थीं, जिन्होंने कार्यक्रम में जोश भरा और सभी प्रतिभागियों को एक साथ लाने का कार्य किया।



सहयोग की अपील PRI सदस्यों से उनके समर्थन की अपील कि गई, और सभी ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए भविष्य में भी जुड़ने की इच्छा जताई।


अंत में, सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया गया और सुझाव मांगे गए कि हम अगली बार कार्यक्रम को और बेहतर कैसे बना सकते हैं। उनके विचारों ने हमें आगे के लिए प्रेरित किया।


इस कार्यक्रम की सफलता में i-सक्षम टीम के सदस्य अंकिता और अदीबा की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 


i-सक्षम का उद्देश्य स्थानीय महिलाओं को लीडर के रूप में विकसित करना है, ताकि वे अपने गांवों में बदलाव ला सकें और अन्य महिलाओं को भी सशक्त कर सकें। यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि जब महिलाएं एकजुट होती हैं, तो वे समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं।


आदिबा 

बडी,गया


झरी पंचायत में क्लस्टर आयोजन

झरी पंचायत एक छोटा सा गाँव है, जहाँ आज एक खास दिन की तैयारी चल रही थी। गांव के छोटे से पंचायत भवन में क्लस्टर आयोजन होना था।

सोमवार को, स्नेहा (बैच 10 की एडु लीडर) और मै दोनों मिलकर पंचायत के मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति के सदस्यों, वार्ड मेंबर्स, गांव के प्रमुख लोगों और विद्यालय के प्रिंसिपल को आमंत्रित करने की योजना बनाई। सभी ने आश्वासन दिया कि वे प्रतियोगिता में जरूर शामिल होंगे।


क्लस्टर प्रतियोगिता का दिन आया। जब हम झरी पंचायत भवन पहुंचे, तो मन में कई सवाल उठ रहे थे: क्या आयोजन सफल होगा? क्या सभी लोग आएंगे? जैसे ही प्रतियोगिता का समय आया, गांव के मुखिया, सरपंच और अन्य प्रमुख सदस्य समय पर 11 बजे आ गए। इसने हमें आश्वस्त किया कि हमारा प्रयास सही दिशा में है।


प्रतियोगिता की शुरुआत दीप प्रज्वलन और स्वागत गीत से हुई। इसके बाद मैंने i-सक्षम और क्लस्टर के उद्देश्य और अनुभवों के बारे में सभी को जानकारी दी। रानी, सविता और मनीता दीदी ने भी अपने अनुभव साझा किए, जिन्होंने सभी को प्रेरित किया।



सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि उपस्थित PRI (पंचायत राज संस्था) सदस्य, प्रिंसिपल और अभिभावकों ने अपने विचार और सुझाव दिए। यह मेरे लिए बेहद सकारात्मक अनुभव था। PRI सदस्यों ने न केवल हमारी पहल की सराहना की, बल्कि इसे और व्यापक स्तर पर ले जाने का वादा भी किया।


हमने पहले से योजना बनाई थी कि कार्यक्रम के अंत में हम गाँव के प्रमुख और PRI सदस्यों से सहयोग मांगेंगे, लेकिन ऐसा करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। वे खुद ही हमें सहयोग देने के लिए तैयार हो गए।


कार्यक्रम का समापन "चेतना" गीत से हुआ, और सभी ने इस प्रतियोगिता के लिए आभार व्यक्त किया। झरी पंचायत के मुखिया ने खास तौर पर कहा, "आप जो काम कर रहे हैं, हम चाहते हैं कि यह और बड़े स्तर पर हो। जितनी मदद चाहिए, हम सभी प्रतिनिधियों से लें।" यह बात न सिर्फ हमारे लिए, बल्कि पूरे क्लस्टर के लिए बेहद उत्साहजनक थी।


यह प्रतियोगिता न केवल सक्षम, बल्कि सशक्त बनाने में भी मदद करेगी और हमारे एडु लीडर्स को अपने कार्य में आत्मविश्वास प्रदान करेगी। इस आयोजन ने हमें यह महसूस कराया कि जब सामुदायिक सहयोग मिलता है, तो किसी भी चुनौती को आसानी से पार किया जा सकता है।


निकी कुमारी  

बडी, गया


मीडियावाला सेशन का अनुभव

 मैंने हाल ही में आठ दिनों के मीडियावाला सेशन में भाग लिया, जिसने मेरी जिंदगी को एक नया मोड़ दिया। इस सेशन में, मैंने कई नए कौशल सीखे, जैसे फोटोज़ को गोल्डन रेशियो में लेना, वीडियो में अलग-अलग एंगल और फ्रेम का उपयोग करना, एक उद्यम के लिए लोगो, टेम्पलेट(Templet), कलर पैलेट, टैगलाइन, विजिटिंग कार्ड बनाना, और फोटो-वीडियो एडिटिंग।

लेकिन यह सेशन सिर्फ नए कौशल सीखने तक सीमित नहीं था। इसने मुझे आत्मविश्वास बढ़ाने और अपनी क्षमताओं को पहचानने का अवसर दिया। जब मैंने अपने ग्रुप के साथ मिलकर "अनमोल गारमेंट्स" के लिए लोगो(Logo) डिज़ाइन किया और उनका वीडियो शूट किया, तब मुझे एहसास हुआ कि मैं किसी भी चुनौती को स्वीकार कर सकती हूँ।


हालांकि, जब दुकान के मालिक कोलकाता जाने के कारण वीडियो शूट में शामिल नहीं हो सके, तो हमने हार नहीं मानी। हमने दूसरा विकल्प चुना और एक अन्य दुकान के लिए लोगो और वीडियो बनाया। इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा विकल्प तलाशने चाहिए।

अंत में, हमने अपने काम को एक्ज़िबिशन में प्रदर्शित किया और सभी ऑफिस सदस्यों को अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया। इस सेशन से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और सबसे बड़ी बात यह कि मैंने अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना सीखा। यह अनुभव मेरे जीवन में हमेशा खास रहेगा, और मैं इसे कभी नहीं भूल सकती।

आस्था 

बडी इन्टर्न


Tuesday, October 22, 2024

खुद को एक बहुत बड़ी सोच से उभारना -

 रुचि की कहानी: साहस और संघर्ष की प्रतीक

चलिये, आज हम एक शांत और डरी हुई लड़की, रुचि दीदी, की कहानी सुनते हैं। कल्पना करें कि जब आपके साथ आपकी माँ नहीं हैं, पिताजी बाहर रहते हैं, और आपका एक अकेला जीवन है, जबकि आपकी उम्र केवल 17 साल है। रुचि, मुंगेर बैच-10 की एडु लीडर, ने इतनी कम उम्र में अपने आपको उस स्थिति में रखा, जहाँ लोग गरीब होते हुए भी माँ-बाप के साए में सुरक्षित रहते हैं। रुचि की माँ दो साल पहले उन्हें छोड़कर चली गईं। एक अकेली, कमजोर और शांत लड़की के लिए पूरे घर और दो छोटे भाइयों का ख्याल रखना बेहद मुश्किल था। रुचि ने घर तो संभाल लिया, अपने भाइयों और पिता का भी ख्याल रखा, लेकिन खुद को संभाल नहीं पाई। वह कमजोर होती गई। स्थिति को देखते हुए रुचि के पिता ने उसकी शादी का विचार किया। रुचि घर की एकलौती बेटी थी, जिसने दसवीं परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की थी और आगे पढ़कर नौकरी करना चाहती थी। लेकिन जब शादी की बात आई, तो वह और कमजोर हो गई। वह घर से बाहर जाने से भी डरने लगी। उसके अंदर इतना डर था कि वह रोते-रोते अचानक चिल्लाने लगती, जिससे लोग उसे और बुरा-भला कहते। इसने उसे और अवसादित कर दिया।

जब उसके साथियों और ऑफिस के कुछ लोगों को यह सब पता चला, तो उन्होंने उसे समझाया। घर जाने पर भी रुचि को बहुत कुछ सुनने को मिला। लेकिन उसने अपने साथियों की बात याद रखी: जब भी रोना आए, तो लोगों के बीच अपनी बातों को पूरी हिम्मत से रखो। इस पर रुचि ने कम समय में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। आज, वह अपनी रश्मि दीदी के पास जाकर हर बात शेयर करती है और उनके सामने रोकर अपनी बातों को रखकर सही फैसले लेती है।
कहते हैं न, अपनी बातें उन्हें बताओ, जहाँ लोग बिना जज किए आपको हिम्मत दें। आज रुचि वो लड़की है, जो सारी मुश्किलों से बाहर निकलकर परीक्षा की तैयारी और अपने आत्म-सम्मान को बढ़ाने में लगी है। वह अब लोगों की बातों को सुनकर बिना रोए हिम्मत से जवाब देती है।
कहते हैं:
"नारी, तू सबकुछ कर सकती है।
तू पत्थर से भी ज्यादा कठोर है,
हर बंधन-रुकावट तोड़ सकती है।
तेरी राह चाहे कितनी मुश्किल हो,
तू अपने दम पर नया रास्ता बना सकती है।
तू शांति भी है, और जंग की तलवार भी,
हर मुश्किल का हल तू खुद निकाल सकती है।
नारी, तुझमें बेमिसाल ताकत का दरिया बहता है,
बस खुद पर भरोसा रख, तू हर सपना साकार कर सकती है।"
रुचि
बैच-10
मुंगेर

मेरा अनुभव: एक यात्रा की कहानी

नमस्ते साथियों,

मेरा नाम तनुप्रिया है और मैं बैच दस की एडु-लीडर हूँ। मैं आशा करती हूँ कि आप सभी शुभ और मंगलमय हैं। आज मैं अपने गाँधी फ़ेलोशिप का अनुभव i-सक्षम के साथ साझा कर रही हूँ। मैं इसे चार मुख्य बिंदुओं में बाटूँगी : 

1) अवलोकन  

2) चुनौती  

3) सीखना  

4) भावना  


अवलोकन  

मैंने ज्यादा ऑब्जरवेशन नहीं किया, लेकिन जो कुछ भी मैंने देखा, वो साझा करना चाहूंगी। यहां के लोग बहुत अच्छे थे। शुरुआत में मुझे लगा कि वे मेरी मदद करेंगे या नहीं, लेकिन सभी ने खुले दिल से बात की और एक-दूसरे को समझा। मैंने देखा कि लोग एक-दूसरे के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे। जब मैंने कहा कि मैं बिहार से हूँ, तो वे बिहार के बारे में जानने की कोशिश करते थे, मैं भी उनके बारे में जानने की कोशिश करती थी। यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। यहां सीखने का एक तरीका यह था कि हर नई चीज एक गतिविधि के माध्यम से शुरू होती थी, जिससे वह हमें लंबे समय तक याद रहती।


चुनौती  

जब मैंने चयन का ईमेल (Email) प्राप्त किया, तो मैं खुश हो गई, लेकिन मन में कई सवाल आए कि क्या मैं परिवार को बताऊँगी तो वो मुझे जाने देंगी या नहीं? मैंने अपने पिताजी को सारी बातें बताईं, और उन्होंने मुझसे कई सवाल किए। मैंने अनन्या दी और सुमन दी का उदाहरण दिया, जिससे उन्हें मेरी बात समझ में आई। अंततः, मेरे पापा मान गए। अगर वे नहीं मानते, तो मैं उन्हें अनन्या दी का अनुभव पढ़ने के लिए देती, लेकिन उन्होंने जल्दी ही मेरा साथ दिया। 

कोई भी चीज बेकार नहीं जाती। कल i-सक्षम ने मुझे अपनी आवाज उठाना सिखाया, और आज मुझे आगे बढ़ने का जुनून मिला।


सीखना  

मुझे छोटी-छोटी चीजों से बहुत कुछ सीखने को मिला, जैसे गूगल पे(Google pay) चलाना, अकेले रात मे सफर करना। एक खास अनुभव था मेरी पहली रात की यात्रा, जब मैं रांची से बरौनी अकेले गई। मुझे बहुत डर भी लग रहा था, लेकिन एक विश्वास भी था मै ये कर पाऊँगी और जब मैं घर पहुंची, तो मैंने महसूस किया कि मैं खुद को पहचानने की कोशिश कर रही हूँ ।


गूगल पे (Google pay) का महत्व मैंने तब समझा, जब मैंने देखा कि सभी लोग ऑनलाइन पेमेंट(Online payment) कर रहे हैं और मैं कैश पैसा लेकर चल रही थी। एक फैसिलिटेटर ने मुझे बताया कि ऑनलाइन पेमेंट करना ज्यादा सुविधाजनक है। उस दिन मैंने गूगल पे बनाया और उसे इस्तेमाल करना शुरू किया। इससे मुझे यह सिखने को मिला कि फीडबैक को स्वीकार करना चाहिए, न कि उसका जवाब देना चाहिए।


i-सक्षम ने मुझे बहुत कुछ सिखाया, लेकिन मैंने कुछ चीजें नहीं की, क्योंकि गाँव में कई चीजें महत्व नहीं रखती थीं। 


भावना  

जाने से पहले मैं बहुत खुश थी, लेकिन जब मैं घर से निकली, तो मेरा मन नहीं लग रहा था। मैं हमेशा उदास रहती थी, लेकिन वहां के दोस्तों ने मुझे मोटिवेट(Motivate) किया। उन्होंने कहा, "तुम बिहार से हो, बिहार तो नजदीक है।" इससे मुझे अच्छा महसूस हुआ। 


अब मैं पहले से खुश रहने लगी हूँ। मेरे प्यारे दोस्तों, आपके प्यार और आशीर्वाद से मुझे उम्मीद है कि मैं इस दो साल की फेलोशिप को बहुत अच्छे से पूरा कर पाऊँगी।


तनु प्रिया 

बैच 10, बेगूसराय

Saturday, October 19, 2024

गुमसुम-सी लड़की और उसका विद्यालय

आज मैं एक एडु-लीडर द्वारा किए गए बदलाव की कहानी आप सबके साथ साझा कर रही हूँ। मुस्कान, हसनपुर प्राथमिक विद्यालय की एडु-लीडर है। वह अपने विद्यालय के बच्चों में जो बदलाव लाई, वह प्रेरणादायक है।

जब मुस्कान पहली बार इस विद्यालय में आई, तो उसने देखा कि बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे। वे केवल खेलकूद में व्यस्त रहते थे और किताबों से दूरी बनाए रखते थे। विद्यालय का वातावरण भी बहुत उत्साहवर्धक नहीं था। मुस्कान ने धीरे-धीरे बच्चों से दोस्ती करनी शुरू की। वह खेलों में उनकी रुचि को समझते हुए उनके साथ समय बिताने लगी और इस तरह उनका रिश्ता मजबूत हो गया।

रिश्ता मजबूत होने के बाद मुस्कान ने पढ़ाई को खेल के रूप में प्रस्तुत किया। उसने छोटे-छोटे कहानियों और गतिविधियों के माध्यम से बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि जागृत की। बच्चों ने इन गतिविधियों से प्रेरणा ली और देखा कि पढ़ाई भी खेल की तरह मज़ेदार हो सकती है। धीरे-धीरे, बच्चों ने पढ़ाई में भी रुचि लेना शुरू कर दिया।

विद्यालय का माहौल अब बदलने लगा था। गांव में हुई शिक्षक-अभिभावक बैठक में यह चर्चा होने लगी कि अब बच्चे पहले की तरह विद्यालय में बैग रखकर बाहर नहीं घूमते। उनकी बातचीत और रहन-सहन में भी बदलाव दिखने लगा।

पहले, मेरे विद्यालय में जब प्रार्थना होती थी, तो उसे जबरन ताली बजा-बजाकर करवाया जाता था। जब स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाया जाता था, तो बच्चे उत्साहित नहीं होते थे और खुद से कुछ करने में रुचि नहीं दिखाते थे। फिर एक स्वतंत्रता दिवस आया, और मुस्कान ने बच्चों को समझाया कि पहले पढ़ाई में भी रुचि नहीं थी, लेकिन अब वे पढ़ाई कर पा रहे हैं, तो बाकी चीजें भी उनके लिए आसान होंगी। यह सुनकर बच्चे उत्साहित हो गए और बार-बार के प्रयासों से अब वे खुद प्रार्थना करवाते हैं। स्वतंत्रता दिवस पर वे नारे लगाने और गाना गाने के लिए भी उत्सुक रहते हैं।

इन छोटे-छोटे प्रयासों से बच्चों में बड़ा बदलाव देखने को मिला और इससे मुस्कान का आत्मविश्वास भी बढ़ा।

नेहा कुमारी 

बडी, मुजफ्फरपुर