Monday, April 17, 2023

एडुलीडर स्मृति के प्रयासों से अन्य लड़कियों को मिलती है आसमान में उड़ने की ताकत

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


मैं स्मृति कुमारी बैच-9 की एडुलीडर हूं। मैं आज आप लोगों के साथ आज की कक्षा का अनुभव साझा करने जा रहीं हूं।

आज मेरे स्कूल में कक्षा अवलोकन के लिए रागिनी दी, अनुप्रिया दी और दीपा दी आई हुई थी। कक्षा अवलोकन के लिए जब दीदी ने बच्चों से पूछा कि उनकी फिलिंग क्या है? तब बच्चों ने उन्हें बताया कि वे उत्साहित हैं लेकिन कुछ बच्चे उदास थे। उनकी उदासी का कारण था कि रास्ते में आते वक्त उनकी साइकिल खराब हो गई थी।

इसके बाद जब मैंने एक दूसरे से उनकी पसंद की सब्जी का नाम पूछा, तब उन्होंने कुछ सब्जियों के नाम बताए फिर इसी को मोड़ते हुए मैंने बच्चों से सब्जियों के नाम पूछे और उन्हें पढ़ाया। आज मैंने अंग्रेजी में बच्चों को सब्जी का नाम पढ़ाया। कलात्मक तरह से बच्चों को समझाने के कारण बच्चे काफी बेहतर तरीके से समझ पा रहे थे। साथ ही हम दोनों के बीच संवाद भी बेहतर हो पा रहा था। 

 

अनेक पहलूओं पर होता है विकास


एडुलीडर स्मृति जब बच्चों को शिक्षित करने के लिए निकलती हैं, तब केवल बच्चों के जीवन में नहीं बल्कि स्मृति के जीवन में भी कई बदलावों की शुरुआत होती है। जैसे- जब वे कक्षा की कमियों को देखते हुए, अपने तरीकों पर काम करती है, इससे उनके अंदर किसी समस्या को समाप्त करने एवं समस्या से जूझने की प्रवृत्ति विकसित होती है, जो उनके आने वाले जीवन के लिए एक सबक की तरह हो सकती है। 


लड़कियों को मिलता है खुला आसमान

साथ ही उनका अपने घरों से निकलना अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा का काम करता है, जो स्वयं की पहचान बनाना चाहती हैं। बतौर एडुलीडर लोगों से मुलाकात करना, उनकी समस्याओं पर बात करना, अभिभावकों को सही-गलत की पहचान कराना एक अच्छे नेतृत्वकर्ता का विकास करता है, जो लोगों की बातों को सलीके से सुनकर उसके निदान की ओर अग्रसर होता है। वे जहां एक ओर अपनी पहचान बुलंद कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर वे आत्मविश्वास से निर्णय ले रही हैं। स्वच्छंद होकर निर्णय लेने की क्षमता उनके आने वाले जीवन में उन्हें सही गलत की परख करना सिखाएगा ताकि वे सही निर्णय ले सकें। 


विद्यालयों में जाकर बच्चों को शिक्षित करना एवं शिक्षा के प्रति अभिभावकों समेत बच्चों को जागरुक करना, साफ-सफाई, नामांकन, लड़कियों की शिक्षा के महत्व को जन-जन तक पहुंचाना मात्र एक जरिया है, जो उन्हें कल के नेतृत्वकर्ता की तरह खड़ा करेगा। 





   


Thursday, April 13, 2023

राजमणि ने क्यों दी देवराज को रिपोर्टर की संज्ञा?

 

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


मैं काजल के स्कूल प्रेम टोला फ़रदा गई थी। मैंने वहां देखा कि काजल पढ़ा रही है इसलिए मैं सबसे पीछे जाकर दरी पर बच्चों के साथ बैठ गई। मैं जहां बैठी थी, वहीं मेरे बगल में देवराज बैठा हुआ था। पहले जब उसने मुझे देखा, तो वह थोड़ा डरा हुआ था। बहुत समय तक मुझे देखते ही रहा और कुछ नहीं बोल रहा था इसलिए मुझे थोड़ी शंका हुई कि यह बच्चा इतना शांत क्यों है? मैंने बातचीत शुरु करने के लिए उससे पूछा, “आपका नाम क्या है? आप इतने शांत क्यों हैं?” 


मेरे इतना पूछते ही धीरे-धीरे उसने मुझसे बात करना शुरु किया और महज 15 मिनट में ही मेरे साथ इतना घुल-मिल गया कि इतना बोलने लगा कि मुझे मजा आ गया। वह केवल 7-8 साल का ही लेकिन बोलते वक्त थोड़ा लड़खड़ाता है मगर  उसकी आवाज बहुत प्यारी है इसलिए उसे सुनने में काफी अच्छा लगा। 


मैं केवल दो घंटे ही उस क्लास रूम में बैठी थी मगर देवराज ने मुझे उन दो घंटों में ही क्लास रुम और उसके अनुभवों से जुड़ी लगभग 15 के आसपास  घटनाएं बता दीं। जैसे- अपने दोस्तों के बारे में, अपने आसपास में बैठने वाले बच्चों के बारे में, अपने घर के बारे में, अपने गाँव के बारे में, अपने बारे में। उसके बोलने के तरीके से मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, मानों मेरे पास कोई न्यूज रिपोर्टर बैठा है, जो मुझे आसपास की खबरें सुना रहा है। 


जैसे-


  • दीदी, हिमांशु पढ़ता नहीं है। दिन भर खाली खेलते रहता है। हम रोज बुलाने जाते हैं, तब ही वह स्कूल आता है। 

  • दीदी, प्रिया पिछले साल भी दूसरा क्लास में ही थी। एकदम नहीं पढ़ती है, अगर नहीं पढ़ेगी तो आगे की क्लास में कैसे जाएगी? दिन भर खाली घर का काम करती है और खेलते रहती है। 

  • दीदी, आपको पता है, शिवानी ना बहुत गंदी लड़की है। हमेशा अपनी छोटी बहन को मारते रहती है। आप बताइए कि बड़ी बहन कहीं छोटी बहन को मारती है! 

  • यहां के लोग ना दीदी बहुत गंदे हैं। जब होली आया था ना तो मेरा झरना चुरा कर लेकर चले गए थे। अब बताइए कि झरना चुरा लिया तो मेरी गाय किसमें रहेंगी? बताइए, अभी इतना धूप किया है। इस समय गाय धूप में रहेंगी तो उनका तबीयत खराब हो जाएगा। अब आप बताइये कि हम पटिया किससे बनाएंगे? 

  • आप बताइये दीदी कि अगर सब बच्चा स्कूल के बाहर गाना बजाएगा, तो स्कूल के अंदर जो बच्चा बैठकर पढ़ रहा होगा, उसको पढ़ने का मन करेगा? हमेशा स्कूल के बाहर खड़ा होकर गाने बजाते रहता है। कोई नहीं पढ़ता है। 


जानें क्या है कक्षा अवलोकन (क्लासरूम ऑब्जर्वेशन)- 


कक्षा अवलोकन का उद्देश्य- 


  • कक्षा के विज़न को पाने में एक साथी के रूम में एडू-लीडर को सपोर्ट करना। 

  • एडू लीडर के निर्देशात्मक कौशल (पढ़ाने का तरीका), शिक्षात्मक नज़रिया (Educational vision), विषय ज्ञान का निरंतर मूल्यांकन कर उनके उपलब्धियों को सराहना और चुनौतियों पर उन्हें प्रशिक्षित करना।

  • छात्रों के विभिन्न समूहों के बीच निर्देश में संभावित असमानताओं की जांच करना और उनके बीच समानता बनाना। 

  • कक्षा निर्देशन और सीखने का सर्वोत्तम माहौल बनाने में एडू लीडर को प्रशिक्षित करना।



वहीं दूसरी ओर इस अनुभव से एक बात प्रतीत हो रही है कि बड्डी के साथ बच्चों का रिश्ता। राजमणि ने जिस प्रकार संवाद शुरु किया और देवराज परत-दर-परत मुखर होते गया, यह बताता है कि बच्चों के अंदर अनेक कहानियां होती हैं, जरुरत बस किसी सुनने वाले की होती है।


Tuesday, April 11, 2023

कक्षा साफ ना होने पर अनन्या ने किया समस्या समाधान कौशल का प्रयोग

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम

सामान्यतः जब हमारे जीवन में कोई समस्या आती है या हमारी कोई इच्छा पूरी नहीं होती, तब हम उसे अपनी नियति मान लेते हैं और परिस्थिति से समझौता कर लेते हैं, जो कहीं ना कहीं दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है जबकि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम अंत कर प्रयास करें क्योंकि सबकुछ जीत लेने में और अंत तक हार ना मानने में कोई अंतर नहीं है। इस मंतव्य को हमारी एडु लीडर अनन्या ने साबित करके दिखाया है। वे लिखती हैं-  

मेरा नाम अनन्या है और मैं जमुई की रहने वाली हूं। मैं बैच-9 की एडु लीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ आज के क्लास रूम का अनुभव साझा करने जा रही हूं। 


इस बार सेशन में मुझे बहुत सारे TLM मिले।  TLM का मतलब Teaching Learning Method है, जिसके जरिए कलात्मक तरीकों से बच्चों को पढ़ाया जाता है इसलिए मुझे TLM बहुत अच्छे लगते हैं। यही कारण था कि TLM मिलने से मुझे बहुत खुशी हुई। मेरी इच्छा था कि मैं रंग-बिरंगे TLM को साफ-सुथरी कक्षा में लगाऊं लेकिन कक्षा अब तक साफ नहीं हुई थी। 



जब नहीं हुई साफ-सफाई


हालांकि मैंने कुछ दिन पहले अपने स्कूल के प्रिंसिपल सर से बात भी किया था कि सर अगर क्लास रूम की साफ-सफाई हो जाती, तो बढ़िया होता। इस पर प्रिंसिपल सर ने कहा था कि हां कक्षा की सफाई भी करवानी थी और पेंट भी करवाना था लेकिन अभी तक काम शुरु भी नहीं हुआ था।  


फोटो क्रेडिट- आई सक्षम

इस पर मैंने सोचा कि बार-बार गुजारिश की लेकिन काम शुरु नहीं हुआ तो क्यों ना मैं खुद ही क्लास रुम की सफाई कर लूं। इसके लिए मैंने एडु लीडर आस्था की अनुमति ली क्योंकि मुझे क्लास को साफ करने में कुछ बड़े बच्चों की आवश्यकता थी, जो मेरी मदद कर सकें। आस्था मेरी बगल की कक्षा में ही क्लास ले रही थीं। आस्था से बात करने के बाद उन्होंने हामी भर दी और क्लास समाप्त होने के बाद बच्चों ने रुक कर क्लास रुम को साफ किया। 


बच्चों के साथ की सफाई 


कुछ बच्चों ने दीवारों पर लगे मकड़ी के जालों को साफ किया, तो कुछ बच्चों ने बेंच-डेस्क आदि को कपड़ों से पोंछा, कुछ बच्चों ने मिल कर फर्श को धोया। यहां सबसे अच्छी बात यह लगी कि जो बच्चे साफ-सफाई नहीं कर पा रहे थे, उन्होंने ऊंचाई पर खड़े बच्चों के बेंच-डेस्क को थामा हुआ था। तकरीबन दो-तीन घंटों की मेहनत के बाद हमारी कक्षा साफ-सुथरी हो गई। अब बारी TLM लगाने की थी। 


एडु लीडर अनन्या ने जिस प्रकार कक्षा की सफाई करने का बीड़ा उठाया, यह उनकी नेतृत्व क्षमता की ओर इंगित करता है। साथ ही परेशानी से भागने या उसे स्वीकार ना करने की इच्छाशक्ति भी क्योंकि TLM लगाने के लिए उन्हें साफ-सफाई की जरुरत थी और साफ-सफाई ना होने की स्थिति में उन्होंने इस परेशानी को स्वयं दूर करने का सोचा, जो उनके समस्या समाधान विधि की ओर इंगित करता है। 


देखा जाए, तो एडुलीडर्स ना केवल शिक्षा के प्रति बल्कि अन्य हिस्सों में भी उभर कर सामने आ रहे हैं क्योंकि कक्षा में पढ़ाने के साथ-साथ जहां एक ओर उनके शिक्षण के कौशल का विकास हो रहा है, वहीं वे नेतृत्व करने और निणर्य लेने में भी आगे आ रही हैं, जिसे ऊपर दिए गए अनुभव द्वारा समझा जा सकता है।  


Monday, April 10, 2023

बड्डी टॉकः GOAL शब्द से सामने निकल कर आई कई भावनाएं

फोटो क्रेडिट- गुगल

हमारी बड्डी ने अपने बड्डी टॉक का अनुभव साझा किया है।

आज मेरी बात बैच-10 की एडु लीडर संध्या से हुई, जिसका एक छोटा सा हिस्सा आपके साथ साझा कर रही हूं। हमारी चर्चा का विषय "अपने लिए GOAL बना पाना" था। मैंने उनसे पूछा कि GOAL शब्द सुन कर आपके मन में क्या आता है? तो एडु लीडर संध्या ने कहा, "हम जो पाना चाहते हैं, वहाँ तक पहुंचने के लिए रणनीति बनाना, उसे हासिल करने के बारे में सोचना।” संध्या ने अपनी एक छोटी से कहानी भी साझा की। 


उन्होंने कहा, “मैं जब छठी कक्षा में थी, तो उस वक्त मेरे साथ कुछ हुआ था जिससे मेरी सोचने की शक्ति में अनेक बदलाव हुए।” वे बताती हैं, “हम जो भी कुछ अपनी जिंदगी में पाना चाहते हैं, उसके लिए रणनीति बनाना बहुत जरुरी है। मैं जब छठी कक्षा में थी, तो उस वक्त मेरे विद्यालय में एक प्रतियोगिता होने वाली थी, जिसमें कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को भाग लेना था। मैंने ठान लिया कि मुझे इस प्रतियोगिता में अव्वल आना है। वह प्रतियोगिता बच्चों में सामान्य ज्ञान की जानकारी को जांचने के लिए आयोजित की जा रही थी। इस प्रतियोगिता में अव्वल आने के लिए मैंने सामान्य ज्ञान की एक पुस्तक को खरीदा और कंठस्थ करना शुरु कर दिया। चुंकि प्रतियोगिता एक महीने के बाद होने वाली थी इसलिए मेरे पास पर्याप्त वक्त था। मैंने खूब अच्छे से तैयारी की और आखिरकार मैंने पहला स्थान प्राप्त किया। मैंने महसूस किया कि अगर मैं रणनीति के तहत पढ़ाई नहीं करती और प्रतियोगिता के मंतव्य को नहीं समझती, तो शायद मेरे लिए पहला स्थान प्राप्त कर पाना मुश्किल हो जाता।” 


रणनीति बनाने की क्षमता


इस अनुभव में कई बिंदूओं को समझना आवश्यक है। जैसे- एक एडु लीडर के अंदर रणनीति बनाने की क्षमता और यही क्षमता उन्हें भविष्य के नेतृत्वकर्ता के रुप में विकसित करती है। उन्होंने पहले अपने लक्ष्य को समझा फिर उसे हासिल करने के विषय में सोचा और उसी अनुरुप अपनी रणनीति बनाई। यही रणनीति एक लीडर भी बनाते हैं, जब उन्हें अपने आप को साबित करना होता है। एक ओर जहां उन्होंने स्वयं को चुनौती दी और उसे पूरा की। वहीं वे दूसरों के लिए भी एक उदाहरण के तौर पर उभर कर सामने आईं क्योंकि उन्हें GOAL के असल मतलब को व्यावहारिक तौर पर सामने लाने का प्रयास किया। 


मौखिक कौशलता का विकास


इसके साथ अपने अनुभव को किसी उदाहरण के साथ समझा पाना और अपनी बात रख पाना भी मौखिक कौशल का हिस्सा है, जिससे वे अन्य लड़कियों को प्रेरणा दे सकती हैं। साथ ही संवाद का महत्व भी उजागर हुआ क्योंकि जब एक बड्डी ने GOAL के बारे में सवाल किया, तब ही सारी बातें सामने आईं। इसके अलावा इस अनुभव का एक पहलू- लड़कियों के लिए संसाधनों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता प्रतीत होता है क्योंकि जहां एक ओर लड़कियां संसाधनों के अभाव में लक्ष्य हासिल नहीं कर पाती क्योंकि कहीं ना कहीं समाज उन्हें संसाधनों से दूर रखता है लेकिन जब एक लड़की संसाधन को प्राप्त करती है, तब उसका सही उपयोग भी करती है। जैसे- संध्या ने सामान्य ज्ञान की किताब को खरीद कर किया और प्रथम आईं। 


एक सिक्के के भले ही केवल दो पहलू होंगे लेकिन एडु लीडर और बड्डी के बीच ऐसे अनेक पहलू सामने आ सकते हैं, जिससे एक आम नागरिक जुड़ाव महसूस कर सकेगा।


इस ऑडियो को सुनकर भर आएंगी आपकी आंखें

 

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


हमारी बड्डी, राजमणि ने अपने कक्षा अवलोकन का अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने एक बच्ची के संघर्ष की कहानी को कलमबद्ध करने का प्रयास किया है। वे लिखती हैं-


मैं अपनी एडु लीडर काजल बैच-7 के कक्षा अवलोकन में गई थी। वहां मेरी मुलाकात एक छोटी बच्ची से हुई जिसका नाम प्रिया है। उस बच्ची ने मुझसे आकर कहा, “दीदी हम आपको कुछ सुनाना चाहते हैं। आपको अच्छा लगेगा तो मुझे बताइएगा हम खुद से बनाए हैं।”  


मैंने उसकी बातों को सुनने के लिए हामी भर दी। उस बच्ची ने मुझे एक कविता सुनाई, जिसे सुनने के बाद मैं बहुत ही ज्यादा भावुक हो गई। सच बताऊं तो उस कविता को सुनने के बाद मैंने उसे अपने पास सहेजने का निर्णय कर लिया इसलिए मैंने उस बच्ची की आवाज में ही उसे रिकॉर्ड कर लिया।


मार्मिक पक्ष को उजागर करता ऑडियो 


इस ऑडियो में प्रिया ने अपने दैनिक जीवन के बारे में बताया है। प्रिया केवल 8-9 साल की ही है लेकिन इतनी छोटी उम्र में उसे घर का पूरा काम करना पड़ता है। वह बहुत गंदे कपड़े पहन कर स्कूल आती है लेकिन उसे पढ़ने का बहुत मन है, जिस कारण वह घर का पूरा काम करके रोज स्कूल आती है।

राजमणि ने जो ऑडियो साझा किया है, उसमें एक लड़की के उस संघर्ष को समझा सकता है, जो शायद भारत के हर कोने में हो रहा है। इतनी छोटी-सी उम्र में उस बच्ची को चूल्हा जलाना पड़ रहा है, वह अपनी मां से सवाल भी करती है कि अब नहीं जाएंगे पढ़ने तो कब जाएंगे?, मुझे पढ़ने दो, मैं पढ़ाई के साथ सारे काम करुंगी इत्यादि। 


लड़की होने के कारण अधिक श्रम 


हालांकि इतनी कम उम्र में बच्चों से इतना श्रम कराना नहीं चाहिए लेकिन चूंकि प्रिया एक लड़की है इसलिए उसके हिस्से में यह श्रम जन्म से ही आ गया है। इसके उलट लड़कों के लिए ऐसे श्रम नहीं निर्धारित किए गए हैं। वे छुट्टी के वक्त खेल कर घर आती हैं, लंच के वक्त आराम से खाते हैं क्योंकि उन्हें इतने वक्त में दौड़ कर घर जाकर घर का काम करने की बाध्यता नहीं होती है इसलिए वे अपने विद्यालय के हर एक पल को महसूस करते हैं लेकिन लड़कियों के हिस्से में घर का काम आता है इसलिए वे विद्यालय के पलों को कभी जी नहीं पातीं।


लड़कियां घर का काम करेंगी। यह सोच प्राचीन काल से हर एक व्यक्ति के अंदर समाहित है, और यही कारण है कि आज के वक्त में भी लड़कियों को घर के कामों को करने के लिए बाधित किया जाता है या यूं कहें, तो घर का काम करना एक सीमा निर्धारित करने के बराबर होता है, जिसे पार करने के बाद ही लड़कियां अपने हिस्से की दो पल की खुशी को जी पाती हैं और पढ़ पाती हैं। 


लड़कियों के साथ सहज लड़कियां 


साथ ही राजमणि के अनुभव ने एक बात की भी पुष्टि की है कि लड़कियां अधिकांशतः लड़कियों के सामने ही खुलकर बातें करती हैं और अपने अनुभव साझा कर पाती है क्योंकि कहीं ना कहीं लड़कियों को इस बात का एहसास होता है कि शायद मैं जिससे बातें कर रही हूं, उन्होंने मेरे जैसा संघर्ष झेला है। 


यहां कहीं ना कहीं जेंडर एक बड़ी भूमिका अदा करता है इसलिए लड़कियों का हर एक स्तर पर मौजूद होना और आगे बढ़ना जरुरी है, जिससे कई प्रिया का संघर्ष और उनकी आवाज हम तक पहुंच सके। 



Friday, April 7, 2023

विश्व स्वास्थ्य दिवस पर हुई एडुलीडर्स और बच्चों के स्वास्थ्य पर चर्चा

विश्व स्वास्थ्य दिवस, 7 अप्रैल 2023 के मौके पर आई सक्षम में भी स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को लेकर ऑनलाइन आयोजन किए गए। विश्व स्वास्थ्य दिवस 2023 की थीम "सभी के लिए स्वास्थ्य" है। इस विषय के साथ, डब्ल्यूएचओ पिछले सात दशकों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करने वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य सफलताओं को देखने का अवसर प्रदान करता है।

इस मौके पर हमारी बड्डी एक्जीक्यूटिव तानिया ने अपने ऑनलाइन सेशन का अनुभव साझा किया है। वे लिखती हैं 

Edu leaders के साथ चर्चा

दोस्तों, आज विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर हमने edu-leaders के साथ साथ बच्चों के स्वास्थ्य और लड़कियों के स्वास्थ्य के बारे में भी बात की, जिसमें बच्चों के स्वास्थ्य की समस्या सबसे बड़ी समस्या के रूप में निकल कर सामने आई। 

बच्चों में ज्यादातर पेट दर्द, निमोनिया और बुखार की समस्या देखी गई, जिसका कारण edu-leaders ने बताया कि बच्चे काफी ज्यादा जंक फूड खाते हैं और साफ़-सफ़ाई का पालन नहीं करते। यही कारण है कि उन्हें संक्रमण की समस्या रहती है। 


साथ ही 0-5 वर्ष के बच्चों में संक्रमण के कारण निमोनिया होने का खतरा ज्यादा होता है। साथ ही बच्चे की माँ भी अपना ख्याल नहीं रखती इसलिए वे दोनों शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं।

इसमें edu-leaders ने कहा, "हम बच्चों और उनके अभिभावक को पौष्टिक आहार के प्रति जागरूक करेंगे। साथ ही साफ सफाई के बारे में भी बताएंगे।"

बीएमआई के बारे में जानकारी 

मैंने कल बीएमआई मतलब बॉडी मास इंडेक्स के डाटा को देखा। वहां मैंने पाया कि 93 लड़कियों व महिलाओं में 48 लडकियां ऐसी है, जिनका वजन उनके उम्र के हिसाब से नहीं है , मतलब वे अंडरवेट है।


मैंने इस आंकड़े को रखते हुए जब सेशन में बात की। मेरा सवाल था, लड़कियों में ज्यादातर कम वजन होने की समस्या क्यों है? बातचीत में उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी समस्या गुस्सा होना, खाना समय पर न खाना और तनाव लेना है।

भोजन और गुस्सा अलग 

edu-leaders बता रहीं थीं के जब वो गुस्सा होती है, तो खाना खाना ही छोड़ देती है। अधिकांश लड़कियों का यही मानना था। मैं अपनी बात कहूँ तो कभी-कभी मैं भी ऐसा करती हूँ क्योंकि कभी कभी समय के अभाव में खाना छूट जाता है।

इस विषय पर edu-leaders का सुझाव रहा कि साथ में हमेशा अंकुरित मूंग, चना रखा जाना चाहिए। कुछ मौसमी फलों को भी रखा जा सकता है। हालांकि भोजन और तनाव पर ज्यादा बातचीत नहीं हो पाई।


सबने ली स्वास्थ्य की शपथ

आज सभी edu-leaders ने मिलकर शपथ लिया कि वे समय पर खाना खाएंगे और गुस्सा आने पर जिस वजह से गुस्सा आ रहा है, उस बारे में किसी से बात करेंगे या अपने आपको शांत करने का प्रयास करेंगे।

मैं इस दिवस पर इतना कहना चाहूंगी हम सबको अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि "हम हैं, तो सब कुछ है और हम नहीं तो कुछ भी नहीं है।" "जितना जरुरी इस दुनिया के काम या लोग हैं, उतना ही जरुरी।हमारा शरीर भी है इसलिए खुद को शरीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखें।"


एडुलीडर के प्रयासों से बच्चियों को मिला हौसला कि वे भी करेंगी हर समस्या का सामना

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


मैं स्मृती कुमारी बैच- 9 मुंगेर जिले की एडुलीडर हूं। आज मैं आप लोगों के साथ अपनी कक्षा का अनुभव साझा करने जा रही हूं।

आज जब मैं कक्षा में गई, तो बच्चे मुझसे मेरा इमोशन मतलब मेरी भावनात्मक स्थिति के बारे में पूछने लगे। उन्होंने मुझसे पूछा, “दीदी, आपको कैसा लग रहा हैं?” उन्होंने मुझसे जिस तरह से मेरे इमोशन के बारे में पूछा, ये देख कर मुझे बहुत खुशी हुई। 

बच्चों ने पूछा मेरा इमोशन 

मैंने उनको बताया कि मैं खुश हूं। साथ ही अपनी खुशी का कारण भी बताया। इसके बाद मैंने बच्चों को मेडिटेशन करवाया फिर बच्चों से उनके इमोशन के बारे में जाना। इस पर बच्चों ने कहा, “वे उत्साहित महसूस कर रहे हैं।” उनके उत्साह को बढ़ाते हुए मैंने उनसे कहा, “आज मैं आप लोगों के लिए कुछ लाई हूं। इतना सुनते ही सभी बच्चे खुश होकर पुछने लगे कि क्या मैं क्या लाई हूं, तो मैंने कहा, “पहले जल्दी से एक मिनट के लिए सभी बच्चे अपनी आंखें बंद किजिए।” 

मेरे इतना कहने के बाद सभी बच्चों ने अपनी आंखें बंद कर ली। इसके बाद मैं कक्षा के लिए जो घड़ी लेकर आई थी, उसे मैंने कक्षा में लगा दिया। इसके बाद सभी बच्चों को आंखें खोलने के लिए कहा। आंख खोलते ही जब बच्चों की नजर घड़ी पर पड़ी, तब उनकी मुस्कुराहट बढ़ गई। बच्चों के चेहरे पर मुस्कान थी और मुझे भी उन्हें खुश देख कर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। 

घड़ी से समय का ज्ञान

आज मैंने बच्चों को गणित का भाग ‘समय’ पढ़ाया कि समय कैसे देखते हैं, घड़ी की बड़ी-छोटी सुई के बारे में बताया फिर मैंने कक्षा के ही एक बच्चे को कहा, “आप घड़ी बना कर दिखाएं और इसे जुड़े सवाल भी करें।” इसके बाद हमने एक खेल खेला और फिर बच्चों में से सोनाक्षी ने बुक रीडिंग करके सबको सुनाया। साथ ही इसके बाद मैंने बच्चों को होमवर्क दिया। 

आज से मेरी कक्षा के जो चौथी के बच्चे थे, वे सभी पाचंवी में चले गये थे। आज से उनकी कक्षा अलग हो गई थी।

आप हमें भूल जाएंगी? 

पांचवी कक्षा की रितिका और प्रियंका मेरे पास आई और बोलने लगी, “दीदी, नई कक्षा में मन नहीं लगता है। अब तो आप हम सबको भूल जाइयेगा। इतना कहते-कहते उनकी आंखों से आंसु आ गए। उन्हें चुप कराते हुए मैंने कहा, “क्यों भूलूंगी? मैं आपकी कक्षा में जरुर आऊंगी।” इतना कहने बाद मैंने उन्हें अपनी बांहों में भर लिया और समझाया मैं तो यही हूं। 

आपको जब मेरे पास आने की इच्छा करें आप आकर बैठ सकते हैं फिर मैंने उन्हें कहा, “आइये बच्चों हम सब एक तस्वीर लेते हैं इसलिए पहले आप रोना बंद किजिए नहीं तो अच्छी तस्वीर नहीं आएगी। बच्चों ने रोना बंद किया और फिर मैंने तस्वीर ली और उनको कहा, “अब मैं इसको रोज देखुंगी, तब तो आपको कभी नहीं भुलूंगी। मेरी ये बात सुनकर वे हंसने लगे। 

मेरे प्रति बच्चों का ऐसा लगाव देखकर मेरा मन भी भावुक हो गया। उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि हां, मैंने कक्षा में अपने दोस्त बना लिए हैं। मेरे छोटे और मासूम से प्यारे दोस्त। 

इस अनुभव से कई चीजें सामने आती हैं। जैसे- 

  • एडुलीडर अगर एक महिला हो, तो बच्चे उनसे ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं। खासकर लड़कियां अपने दिल की बातों को लड़कियों के साथ साझा करने में सहज महसूस करती हैं। 
  • कक्षा में घड़ी का ना होना, एक विषय है लेकिन एडुलीडर के प्रयासों से कक्षा में घड़ी की उपलब्धता होना एक अहम विषय है क्योंकि कई बार हम मुश्किलों के आगे घुटने टेक देते हैं या उसे अपनी नियति मान लेते हैं, मगर एडुलीडर स्मृति ने अपनी पहल द्वारा इस समस्या के समाधान हेतू कदम बढ़ाया और बच्चों को घड़ी से अवगत कराया। 
  • साथ ही वे इस तरह अन्य पीढियों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत साबित हो रही हैं, जो भविष्य में बेहतर करना चाहती हैं, या अपनी पहचान बनाना चाहती हैं। जैसे- कक्षा में मौजूद छोटी बच्चियां एडुलीडर को देखकर रोल-मॉडल के रुप में चुन सकती हैं कि हां, मुझे भी समाज में बदलाव लाना है, नेतृत्व करना है और समस्याओं से लड़ना है।


Thursday, April 6, 2023

विद्यालय में प्रार्थना के जरिए एडुलीडर्स की उभर रहा नेतृत्वकर्ता का कौशल

एडुलीडर्स हर रोज जब विभिन्न कक्षाओं में जाते हैं, तब अपने-अपने अनुसार अनेक कार्यों को गति देने का प्रयास करते हैं। जैसे- बच्चों की कक्षा में उपस्थिति सुनिश्चित करना, प्रार्थना करवाना, टीएलएम द्वारा पाठ को समझाना इत्यादि। आज हमारी एक एडुलीडर ने भी अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने कक्षा का अनुभव एवं बच्चों की सहभागिता को लिखा है- 


मैं वीणा कुमारी बैच 9 की एडुलीडर हूं। आज मैं आप लोगों के साथ अपनी कक्षा 1 का अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज जब मैं विद्यालय गई तो मेरे पहुंचने तक प्रार्थना नहीं हुई थी इसलिए मैंने शिक्षकों के साथ मिलकर प्रार्थना करवाई। इसके बाद मैंने बच्चों को कक्षा में जाने के लिए कहा और सारे बच्चे अपनी-अपनी कक्षा में चले गए। उसके बाद जब मैं कक्षा में गई तो सारे बच्चे एक साथ खड़े होकर गुड मॉर्निंग बोले। यह देखकर मुझे काफी अच्छा लगा। इसके बाद मैंने मेडिटेशन करवाया फिर एक बालगीत करवाया, जिसका नाम The little birds था।  


हालांकि बालगीत कराने के पहले मैंने बच्चों से कविता पर बातचीत की एवं उसके बाद बच्चों को बालगीत करने के लिए कहा ताकि बच्चे बालगीत का मतलब समझ सकें और उसके अर्थ से रुबरु हो सकें। इसके साथ ही मुझे यह बात भी अच्छी लगी कि बच्चों ने मेडिटेशन के दौरान काफी शांति बनाई रखी थी एवं अच्छे से अपने-अपने पाठ को पूरा किया था। 

एडुलीडर्स बन रही अन्य के लिए प्रेरणा 

एडुलीडर्स द्वारा विद्यालयों में जाना और गतिविधियां कराना इस बात की ओर इशारा नहीं करता है कि वे केवल बच्चों को शिक्षित करने जाती हैं बल्कि उनका उद्देश्य अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा बनना भी होता है, जो किसी कारणवश अपनी आवाज नहीं उठा पातीं। यह केवल एक जरिया है, जिससे लड़कियों को अपनी उड़ान भरने का मौका मिलता है और वे अपने निर्णय ले पाती हैं, जो आई-सक्षम का सिद्धांत है- voice and choice. 

जब एडुलीडर्स कक्षाओं की परेशानियों का हल निकालती हैं और परिस्थितियों को अपने अनुसार मोड़ती हैं, तब वे एक ओर समस्याओं से लड़ना और जूढना सीख रही होती हैं। विद्यालय में प्रार्थना करवाना ही इस बात का परिचायक है कि वे अपनी कार्य के प्रति समर्पित हैं और एक कुशल नेतृत्वकर्ता की तरह उभरकर सामने आ रही हैं। 

लड़कियों को पुस्तकालय से जोड़ना एडुलीडर्स की पहल का एक अहम हिस्सा है

मैं अंशिका बैच-7 की एडुलीडर हूं। मैं आज आपके साथ अपने कलस्टर बैठक का अनुभव साझा कर रही हूं। कलस्टर बैठक में हमने समझा कि हम अपने क्षेत्र में एक पुस्तकालय बनाना चाहते हैं ताकि गांव के बच्चे पुस्तकालय का लाभ उठा सकें क्योंकि अधिकांश बच्चे हर पुस्तक को खरीदने में समर्थ नहीं होते। ऐसे में अगर गांव में एक पुस्तकालय हो, तो बच्चों को काफी लाभ होगा। 

इसके लिए हमारे क्लस्टर से कुछ लोग बेगूसराय भी गए थे। वहां जाने के बाद मेरी यह समझ बनी कि एक पुस्तकालय बनाने के लिए जरूरी नहीं कि हमारे पास एक रूम ही हो। हम एक वृक्ष के नीचे या फिर किसी के आंगन में भी पुस्तकालय खोल सकते हैं। साथ ही मैंने जाना कि काल्पनिक और वास्तविक कहानियों में क्या अंतर है। 

इस सत्र के दौरान मैंने सीखा गतिविधि क्या है, किसे हम गतिविधि कह सकते हैं, गतिविधि कराने के कौन-कौन से तरीके होते हैं इत्यादि। पुस्तकालय का आयाम, कैसे पाठक को किताबों तक पहुंचाया जाए इत्यादि मेरे लिए लर्निंग रही। मैंने वहां पर कुछ किताबें भी पढ़ी जो मुझे काफी पसंद आई। जैसे - बेटी करे सवाल। 

मैंने महसूस किया कि एक लड़की का सवाल करना अनेक सवालों को खड़ा कर देता है। जैसे- लड़कियां ये नहीं पूछ सकती कि उनकी शादी कम उम्र में क्यों कर दी जाती हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि उन्हें एक ही जवाब मिलेगा कि एक अच्छा घर परिवार मिल रहा है लेकिन लड़कियों को कभी अपने दम पर अपना घर बनाने या अपनी पहचान बनाने की आजादी नहीं मिल पाती। 

एडुलीडर के इस अनुभव से हमें यह पता चला कि पुस्तकालय के लिए सही जगह की जरुरत होती है। जगह चाहे कहीं भी हो सकती है लेकिन जगह का माहौल अच्छा होना चाहिए ताकि बच्चे एकत्रित होकर पढ़ सकें और किताबों को रखने की सुविधा भी हो। वहीं दूसरी ओर हमें यह भी एहसास हो रहा है कि लड़कियों के लिए पढ़ना कितना जरुरी है ताकि वे अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकें और अपनी जिंदगी के निर्णय स्वयं लें , मतलब बागडोर उनके ही हाथों में होनी चाहिए। 

किसी गांव में पुस्तकालय की नींव रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है क्योंकि गांवों में ग्रामीण सोच में बदलाव अचानक संभव नहीं है। जैसे- हो सकता है कि वे अपनी बेटियों को पुस्तकालय में पढ़ने के लिए ना भेजें क्योंकि वहां लड़के भी हो सकते हैं मगर एडुलीडर्स इन्हीं मानसिकता के खिलाफ खड़ी हैं ताकि हर एक लड़की शिक्षित हो सके और अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हो सके। 

Wednesday, April 5, 2023

"Chandani Kumari: Rising Above Societal Pressures to Ignite a Future of Empowerment"


Chandani Kumari is a young enthusiastic 24-year-old who has two children aged 5 years and 9 months of age. Chandani is part of the latest batch of i-saksham edu-leaders' fellowship program in Begusarai. She got married at the age of 17 due to societal pressures as the eldest among her five siblings. Despite facing taunts and ridicule from her community for being an educated daughter-in-law but a stay-at-home mother, Chandani never gave up learning and studying. She continued her studies and even took home tuition for 20 children and attended computer courses while being heavily pregnant. She did not receive support from her family except for her husband but remained persistent.

Chandani faced many challenges, including financial constraints and a lack of support from her family, taunted by community members and elders for stepping out of her home and a dejected feeling she carries from her maternal home because of her early marriage. Chandani, however persevered and was eventually accepted into our I-Saksham fellowship program when she scored pretty well in the exams we conducted.

Chandani shares she was initially hesitant about joining the fellowship for such a low stipend and all the time it demands. However, after a few sessions and learning about social discrimination and the impact of poor education quality, she realized that she did not want others to suffer as she had. Upon learning the effectiveness and the impact the sessions have on her, Chandani she intentionally invited her husband to one of her fellowship training and another workshop so he can see what she is learning. She even invited her mother-in-law to the foundation day celebration as well, where hearing from other girls how inspirational their fellowship journey has been, her mother-in-law is now more supportive of her pursuits. She hopes that someday her peers too, will aspire for higher careers and make changes in their lives.

After two months into the fellowship, Chandani feels proud that she continues to be part of the program as she is busy learning new things each day and problem-solving, and no longer has time for gossip or stress over trivial matters. She is hopeful that her experiences will lead to drastic changes in her life and the lives of those around her. Chandani's hope for the future is to inspire and empower others to overcome societal pressures and achieve their dreams. She is confident that the knowledge and skills she has gained in the program will be useful when she starts teaching in government schools. 

In conclusion, Chandani's unwavering dedication to the fellowship, despite initial reservations about the low stipend than her previous teaching job and the time it demands, is a testament to the program's effectiveness. Her persistence in attending training and workshops with her husband and mother-in-law has not only influenced their perspective but has also strengthened their support for her aspirations.

By participating in the program, Chandani claims she has gain a deeper understanding of the impact of social discrimination and poor education quality, and her hope is to inspire others to break free from societal pressures and pursue their dreams. Her experiences have transformed her outlook on life, and she is now focused on problem-solving and making a positive impact in her community. As Chandani looks forward to teaching in government schools, she is confident that the knowledge and skills gained from the fellowship will be invaluable. Her journey is one of resilience and determination, and her hope for the future is to empower and inspire others to make a change in their lives and in society.


सर्वे के दौरान लोगों ने बुलाई मीडिया, खींच ली मेरे आईडी कार्ड की तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

एडुलीडर्स के लिए गांव-गांव जाकर सर्वे करना और जानकारी प्राप्त करना मुश्किल काम है क्योंकि निजी जानकारी को लेकर लोग अब काफी सुरक्षित हो गए हैं। यही कारण है कि वे अपनी जानकारी देने से कतराते हैं लेकिन जब एडुलीडर्स उन्हें समझाते हैं, तब कई बार बात बन जाती है लेकिन अधिकांश समय ऐसा भी होता है, जब बात बिगड़ जाती है और संभालना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। हमारे एडुलीडर आदिल खान ने भी सर्वे के दौरान चुनौती का सामना किया। पढ़िए उनकी कलम से- 


मेरा नाम आदिल खान है। मैं जमुई जिले का रहने वाला हूं।  मैं आप लोगों के साथ अपने साथ घटित हुई एक परेशानी साझा करना चाहता हूं।


आज मैं चादलाही गांव सर्वे करने गया था। जब मैं सर्वे कर रहा था, तब सर्वे के दौरान ही चार घरों के बाद जब मैं पांचवें  घर में सर्वे करने गया, तो वहां अचानक से 20 लोग आ गए। वे सभी लोग मुझसे अनेक सवाल करने लगे और मुझसे पूछने लगे, “आप क्या कर रहे हैं?” जब मैंने उन्हें बताया कि मैं गांव में बच्चों की शिक्षा की स्थिति का जायजा लेना चाहता हूं कि बच्चे स्कूल में नामांकित हैं या नहीं और यही कारण है कि मैं सर्वे कर रहा हूं। 


लोगों ने जुटाया मीडिया को


मेरे इतना बताने पर भी वे संतुष्ट नहीं दिखाई दिए इसलिए मैंने उन्हें फिर समझाया कि मैं 3 से 14 साल के बच्चों का सर्वे कर रहा हूं कि वे पढ़ाई करते हैं या नहीं, अगर पढ़ाई करते हैं, तो स्कूल पढ़ने जाते हैं या नहीं लेकिन मौजूद जितने लोग थे उन्हें मेरी बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। 


इसके बाद जब मैंने आई सक्षम का पत्र दिखाने की कोशिश की तो उन्होंने पत्र देखने से इंकार कर दिया और देखते ही देखते स्थानीय स्तर के मीडिया वालों को बुला लिया। मीडिया वाले उसी गांव के ही थे और जब मीडिया वाले आए तब वे भी मुझसे सवाल करने लगे। वे हर बार सवालों को घुमा-फिरा करके नए नए सवाल पूछने लगे लेकिन मैंने हर सवाल का जवाब आत्मविश्वास के साथ और सही सही से देते गया। 


मांगा गया मेरा आईडी कार्ड 


इसके बाद मीडिया वालों ने मेरी आईडी कार्ड ले ली और आईडी कार्ड का फोटो लेकर एक खबर तैयार करने के बाद वहां से चले गए। मीडिया वालों के जाने के बाद मैंने फिर से उसी घर से सर्वे करना शुरु कर दिया। मुझे लगा कि अब लोग मुझ पर भरोसा करेंगे।


मैंने कहा, “अब तो यकीन हो गया है ना कि मैं गलत नहीं हूं और मैं शिक्षा के प्रति लोगों की जागरुकता का जायजा लेने आया हूं। अब तो आप मुझे अपना डाटा दे सकते हैं मतलब जानकारी दे सकते हैं। मेरे इतना कहने के बाद उस घर के सज्जन ने कहा, हां अब मैं आपको अपना डाटा दे सकता हूं क्योंकि अगर आप गलत भी हैं, तो आपकी जानकारी अब हमारे पास आ गई है।” 


हमने ठाना नहीं जाएंगे वापस 


उनके इतना कहने के बाद मैंने फिर से अपना काम शुरु किया। मेरे साथ मेरे साथी मोहमद आदिल खान भी थे। हम दोनों ने सर्वे समाप्त किया। हम लोगों ने इस गांव का सर्वे पूरा कर दिया लेकिन हम लोग तुरंत उस गांव से जाने के मूड में नहीं थे क्योंकि अगर हम दोनों अभी चले गए तो लोगों की सोच बन जाएगी कि हम किसी खास मकसद से ही आए थे इसलिए हमने दोबारा से एक बार परीक्षण करने का सोचा कि अगर कोई घर छूट गया हो, तो उसका भी सर्वे कर लेंगे। 


अंतः हमने पूरा गांव घूमा और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सर्वे पूरा हो चुका है। उम्मीद है कि गांव के लोग हमें सच्चा समझेंगे। देखा जाए, तो अगर राह सही हो, तो डरने की जरुरत नहीं है बल्कि हर एक परिस्थिति का सामना करना चाहिए। 


किसे ने क्या सच ही कहा है - 



दर्पण झूठ बोलने नहीं देगा,

ज्ञान भयभीत होने नहीं देगा,

सत्य कमजोर होने नहीं देगा,

विश्वास दुखी होने नहीं देगा इसलिए हमेशा अपना आत्मविश्वास बनाए रखना चाहिए। 


कलस्टर बैठक में उद्देश्य और लक्ष्य पर हुई चर्चा

मैं कोमल, बैच 8 की एडुलीडर हूं l आज मैं मध्य विद्यालय सैफगंज में हुए कलस्टर बैठक का अनुभव साझा करने जा रही हूं।हर बार की तरह इस बार भी सभी साथी समय से पहुंच गए थे, जिससे बैठक अपने निर्धारित समय से शुरु हो गई। बैठक की शुरुआत मेडिटेशन से की गई, जिसमें सुधा दीदी ने काफी अच्छे से मेडिटेशन करवाया। उसके बाद  पिछले महीने हुए कलस्टर बैठक के एजेंडा पर बातचीत की गई, जिसमें कुछ बातें निकालकर सामने आईं, जैसे-  कोई भी साथी अपने पसंद का कोई गेम करा सकते हैं, बालगीत करा सकते हैं एवं गतिविधि करवा सकेंगे। 


पिछले बैठक पर बात विमर्श करने के बाद इस बार के एजेंडा पर बात शुरु हुई। इस दौरान कुछ महत्वपूर्ण चीजें सामने निकल कर आईंस जैसे- सभी स्कूल में एग्जाम खत्म हो गए हैं और बच्चे दूसरे क्लास में चले जाएंगे इसलिए बच्चों का नामांकन करवाना सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।


हर काम का उद्देश्य तय 


जैसा कि हर काम को करने के पीछे कोई ना कोई उद्देश्य होता है, और उद्देश्य तब ही पूरे होते हैं, जब हम इसके लिए कोई निश्चित तारीख तय करें और अपना लक्ष्य निर्धारित करके कार्य करें। इसके लिए हमारा लक्ष्य 30 अप्रैल 2023 तक रखा गया है कि लगभग 120 बच्चों का नामांकन विद्यालय में करवाया जाएगा।

 

अपने उद्देश्य और लक्ष्य की पूर्ति के लिए हमने कार्य की रुपरेखा भी तैयार की है, जिसे एक्शन प्लान भी कहा जाता है। प्रत्येक एडुलीडर कम से कम 10 बच्चों का नामांकन करवाएंगे। इसके लिए वे अपने अपने गांव की महिलाओं से मिलकर उनके बच्चों के नामांकन की स्थिति का जायजा लेंगे और नामांकन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे। उसके बाद हम लोगों ने एक बहुत ही मजेदार खेल खेला और उस खेल का नाम पास द बॉल था। 


कलस्टर बैठक के अंत में खेल द्वारा माहौल को हल्का करने की कोशिश की गई ताकि किसी भी एडुलीडर को काम का तनाव ना हो और वे अपने लक्ष्य के प्रति और सकारात्मक तरह से कार्य सकें। 



Tuesday, April 4, 2023

पिछले एजेंडा के साथ-साथ नए विषय पर भी हुई कलस्टर बैठक में चर्चा




हमारी एडुलीडर सीमा ने अपने कलस्टर बैठक का अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि पीटीएम में अभिभावकों का शामिल होना अत्यंत जरुरी है। साथ ही उन्होंने पिछले माह के एजेंडा पर भी चर्चा की और उसका विश्लेषण किया है। पढ़िए उनका अनुभव- 


“आशा करती हूं कि आप सभी स्वस्थ एवं कुशल प्रुवक से होंगे। आज मैं आप सभी के साथ क्लस्टर बैठक का अनुभव साझा कर रहीं हूं। दिनांक 31/3/2023 दिन शुक्रवार को नीमा गांव के समुदाय भवन में क्लस्टर बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में लगभग 15 साथियों ने शामिल हुए। बैठक की शुरुआत मेडिटेशन से की गई। साथ ही पिछले एजेंडा को ध्यान में रखते हुए बातचीत हुई, जिसमें पिछले एजेंडा को इस प्रकार से बताया गया था कि कम से कम 10 अभिभावकों से मिलकर उनके बच्चे को प्रत्येक दिन विद्यालय जाने के लिए प्रेरित करना। 


इस विषय पर सभी एडुलीडर्स काफी अच्छे तरीके से अपने एजेंडा पर तैयार होकर आए थे। बच्चे की शिक्षा के लिए उनके अभिभावकों को जागरूक कर सकें, इसके लिए मैं सभी एडुलीडर को बहुत - बहुत धन्यवाद बोलना चाहूंगी कि पिछले एजेंडा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने काम को पूरा किया। 


इसके बाद जो भी साथी अपने बढ़ते कदम बनाकर लाएं थे, उसे प्रजेंट किया गया। इसके बाद इस माह के एजेंडा पर चर्चा की गई कि इस महीने में हम सभी साथी कोशिश करेंगे कि अगले माह से अर्थात अप्रैल से सभी बच्चे के अभिभावकों को पीटीएम में शामिल करने के लिए जागरुक किया जाए एवं उन्हें पीटीएम की सार्थकता से परिचित किया जाए। इसके बाद एक बहुत प्यारभरा बालगीत भी हुआ, जिसका नाम ( ताली हाथ से बजाना) था। यह एक्टिविटी काफी मजेदार रही, जिसे सभी साथियों ने काफी अच्छे से कर पाए। इसके साथ क्लस्टर बैठक का समापन किया गया।” 




एडुलीडर शालू के प्रयासों ने बच्चों की सिखाया नेतृत्व करने का तरीका




फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


बैच-9 की एडुलीडर शालू ने अपना अनुभव साझा किया है। उन्होंने लिखा है-

"आज मैं आप सबके साथ अपने क्लास रूम का अनुभव साझा करने जा रही हूं। दोस्तों आज जब मैं क्लास गई तो मुझे बहुत सारे नये नये चेहरे देखने को मिले फिर हेडमास्टर सर ने बताया कि ये सब दूसरी कक्षा के बच्चे हैं, जो कि अब तीसरी कक्षा में आ गए हैं। इसके बाद मैंने बच्चों का अपने क्लास रूम में स्वागत किया और सबका हाल समाचार पूछा।"


मेडिटेशन करने की खुशी 


इसके बाद मैंने बच्चों को मेडिटेशन करने के लिए कहा तो दूसरी कक्षा के ही सत्यम कुमार और सोनू कुमार ने खुद से आगे आकर कहा, “मिस, हम मेडिटेशन करवाएंगे।” मैंने बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए हामि भर दी और सभी बच्चों ने अच्छे से मेडिटेशन किया। उसके बाद मैंने अपना परिचय दिया और सभी बच्चों के बारे में भी जाना। बच्चों ने अपना नाम और पता बताया फिर सभी बच्चों को मैंने वर्ण लिखने के लिए कहा कि आप जितना तक जानते हैं, उतना लिख कर दिखाइए। 


लगभग सभी बच्चों ने बहुत अच्छी लिखावट के साथ लिख कर दिखाया। इसके बाद मैंने बच्चों को ब्लैकबोर्ड पर पढ़ाया और उससे आगे के पाठ की जानकारी दी। बच्चे बहुत ही खुश दिख रहे थे। बच्चे भी मुझसे अनेक सवाल जबाव कर रहे थे, फिर चिंता दी ने बच्चों को बालगीत से जोड़ते हुए अंग्रेजी के अक्षर बताने लगी, तब तक मैं बच्चों की कॉपी चेक करने लगी। 


बच्चों ने सीखे अंग्रेजी के शब्द


इसके बाद चिंता दी ने ब्लैकबोर्ड पर A B C D को लिख कर सीखाया। उस दिन बच्चों ने केपिटल और स्मॉल अक्षरों को सीखा। चिंता दी और मैं आज एक ही क्लास रूम में पढ़ाए क्योंकि चिंता दी के क्लास रूम की साफ सफाई चल रही थी इसलिए हेडमास्टर सर ने कहा, आज आप दोनों एक ही क्लास रूम में बच्चों को बैठा कर पढ़ा लीजिये। आज बच्चे बहुत ही ज्यादा थे तो सर ने पांचवी कक्षा के बच्चों को ऑफिस में ही बैठा दिया। 


राकेश और दीपक सर ने आज के क्लास को अटैंड करने में हम दोनों की बहुत सहायता की और इसके लिए हमने सर का धन्यवाद भी अदा किया। आज सभी छोटे-छोटे बच्चों ने हम सबको बालगीत और गाना भी सुनाया। आज हम दोनों को ही क्लास में बहुत ही अच्छा लग रहा था। 






Monday, April 3, 2023

जब अभिभावकों को समझानी पड़ी पीटीएम की सार्थकता

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम

पीटीएम में अभिभावकों की दिलचस्पी कम होना एवं उनकी उपस्थिति कम होना एडुलीडर्स के लिए चिंता का विषय रहता है क्योंकि बच्चे स्कूल के बाद अपने अभिभावकों के साथ ही समय बिताते हैं। अब ऐसे में अगर पीटीएम में ही अभिभावक नहीं आएंगे, तब पीटीएम करने की सार्थकता नहीं बचेगी इसलिए हमारे एडुलीडर्स इस चुनौती का सामना करने के लिए अनेक उपायों पर गौर फरमा रहे हैं। पढ़े  एक अनुभव-


मैं प्रियंका कुमारी, बैच 9 मुंगेर की एडुलीडर हूं। आज मैं पीटीएम आदि के सिलसिले में कम्युनिटी गई थी ताकि अभिभावकों की परेशानियों के बारे में जानकारी ले सकूं। वहां मैं दो अभिवावकों से मिली। चुंकि उस वक्त सुबह का समय था इसलिए कई अभिभावक अपने काम के सिलसिले में बाहर निकल गए थे इसलिए मैंने दो अभिभावकों से मुलाकात करने का सोचा। 


मेरा उद्देश्य स्पष्ट था 


अभिभावकों से मिलने का मेरा उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट था कि मैं पीटीएम में उनकी कम उपस्थिति का कारण जान सकूं। जैसे- अभिवावक पीटीएम में क्यों नहीं आते हैं? मेरे इस सवाल पर उनका कहना था कि पीटीएम के बारे में तो जानते हैं लेकिन पीटीएम में होता क्या है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी, मतलब पीटीएम कराने और अभिभावकों के शामिल होने से क्या है, इसकी उन्हें जानकारी ही नहीं थी।  


उनके इतना कहने के बाद मैंने उन्हें पीटीएम का मतलब बताया और कहा, “पीटीएम के दौरान आप यानी की बच्चे के अभिभावक को कोई भी काम नहीं दिया जाता है बल्कि आपके बच्चे की पढ़ाई कैसी चल रही है, वे क्या करना चाहते हैं, क्या बनाना चाहते हैं, उन्हें क्या पसंद हैं, उन्हें कोन सा विषय पढ़ना अच्छा लगता है इत्यादि की जानकारी दी जाती है ताकि अभिभावक भी बच्चों की आकांक्षाओं से रुबरु हो सकें। साथ ही शिक्षकों की मौजूदगी में बच्चों एवं अभिभावकों के बीच उन बातों पर भी चर्चा हो सके, जो उनके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।” 


अभिभावकों ने समझी सार्थकता 


मेरे इतना समझाने के बाद उन दो अभिभावकों को पीटीएम की सार्थकता के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने मुझे आश्वासन भी दिया कि वे अब से हर बार पीटीएम में शामिल होंगे। अपने कम्युनिटी जाने पर मुझे एहसास हुआ कि एक-एक व्यक्ति से संवाद करना और पीटीएम के विषय में जानकारी देना जरुरी है क्योंकि कई बार लोग कई तरह की धारणाएं बना लेते हैं, जिसका समाधान करना जरुरी हो जाता है।