Saturday, February 1, 2025

दो वर्षों का सीखने और बदलने का सफर: मौसम की प्रेरणादायक कहानी

मुझे बहुत कुछ सिखाया और मेरे जीवन में गहरे बदलाव लाए।  तीन मुख्य बदलाव मेरे जीवन में आए हैं, जिन्हें मैं आपसे साझा करना चाहती हूँ।
व्यक्तिगत विकास: सबसे पहला बदलाव यह है कि अब मैं अपने लक्ष्यों को निर्धारित कर पाती हूँ और उन्हें प्राप्त करने के लिए मेहनत करती हूँ। पहले मैं अपने गोल बनाने और उन्हें पाने के बारे में नहीं सोच पाती थी। यह आत्मविश्वास और लक्ष्य निर्धारण की कला मैंने i-सक्षम के माध्यम से सीखी।
समुदाय में संवाद कौशल: पहले मैं अपने समुदाय के सामने अपनी बात नहीं रख पाती थी। लेकिन जब मैंने समुदाय में काम करना शुरू किया, तो मैं लोगों से जुड़ाव बनाने लगी और अपनी राय खुलकर व्यक्त करने लगी। अब मैं बिना झिझक अपनी बातें सामने रखती हूँ और दूसरों के विचारों को भी महत्व देती हूँ।
विद्यालय में शिक्षण क्षमता: विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के दौरान मैंने कई नई बातें सीखी हैं। अब मैं एक्टिविटी आधारित शिक्षण करती हूँ, जिससे बच्चे न केवल सीखते हैं बल्कि कक्षा में आनंद भी महसूस करते हैं। मैंने सेशन प्लानिंग करना सीखा है, जिसके अनुसार मैं बच्चों को पढ़ाती हूँ। इससे बच्चे कक्षा में कभी बोर नहीं होते।
PTM का नया अनुभव: पहले बच्चों में PTM (Parents-Teacher Meeting) को लेकर डर रहता था। बच्चे अपने माता-पिता को बुलाने से कतराते थे क्योंकि उन्हें शिकायत की आशंका रहती थी। लेकिन मैंने बच्चों और अभिभावकों के साथ संवाद करके यह डर दूर किया। अब बच्चे बिना किसी डर के अपने माता-पिता को PTM के लिए बुलाते हैं। PTM में शिकायत करने के बजाय हम माता-पिता को यह समझाते हैं कि अपने बच्चों को बेहतर तरीके से कैसे प्रोत्साहित करें।

i-सक्षम की सीख:- i-सक्षम में जो भी नियम और प्रक्रियाएँ हैं, उन्होंने मुझे जीवन के महत्वपूर्ण सबक सिखाए हैं। मंथली बॉडी टॉक के दौरान हम अपनी परेशानियाँ साझा करते हैं और बॉडी हमें उन चुनौतियों से निपटने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रक्रिया से मुझे अपनी कमजोरियों और खूबियों का पता चला।

मंथ में होने वाले सेशन्स ने मुझे यह सिखाया कि हिंसा के खिलाफ आवाज उठाना और अपनी पहचान बनाना कितना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा क्लस्टर मीटिंग्स के माध्यम से हमने एक-दूसरे से विचार साझा किए और कम्युनिटी में आने वाली चुनौतियों का समाधान पाया।

Friday, January 31, 2025

मेरा बदलाव और सफलता की यात्रा: खुशबू की कहानी

i-सक्षम से जुड़ने बाद मुझेमें बहुत बदलाव आया है। शुरुआत में मुझे बहुत चुनौतिया आई क्योंकि मै एक बहु हूँ और मेरे घर से निकलना भी नहीं होता था। लेकिन अब मैं समुदाय के हर वर्ग के अभिभावक से मिल रही हूँ और उनसे जुड़ पा रही हूँ। पहले बहुत डर लगता था कि लोग क्या बोलेंगे और अभिभवाक कैसी प्रतिक्रिया देंगे। लेकिन अब यह डर नहीं रहता क्योंकि मुझे लगता है की हर प्रतिक्रिया से कुछ सिखने को मिलेगा।

स्कूल में भी जब हेडमास्टर सर से बात करनी होती थी, तब डर लगता था। सोचती थी कि सर क्या कह देंगे और मैं क्या जवाब दूँगी। लेकिन अब यह डर खत्म हो गया है और मैं बेझिझक सर से बात कर पाती हूँ। अपने परिवार में भी अब मैं अपनी बात रख पाती हूँ। पहले जमुई जाना होता था तो बिना किसी घर के सदस्य के नहीं जा सकती थी। लेकिन अब अकेले जमुई जाना और लौट आना मेरे लिए सामान्य हो गया है, भले घर वाले सहमत न हों।

सेशन में भी अब अपनी बात रखने का आत्मविश्वास आ गया है। पहले डरती थी कि कहीं कुछ गलत न बोल दूँ, लेकिन अब यह सोचती हूँ कि गलती से भी कुछ नया सीखने को मिलेगा। अब मेरी पहचान मेरे पति के नाम से नहीं, बल्कि मेरी अपनी मेहनत से है। यह मेरे लिए गर्व की बात है।
मेरे काम के कारण समुदाय में मुझे साफ-सफाई के लिए सम्मान मिला। जब हमारे गाँव में 65वां पंचायत समारोह हुआ, तो मुझे वहाँ सम्मानित किया गया। यह मेरे जीवन का गर्वपूर्ण क्षण था।
मैं आई-सक्षम का धन्यवाद करती हूँ जिसने मुझे यह मौका दिया और मेरे जीवन में यह बदलाव लाया।

खुशबू 

बैच-11 

जमुई



शिक्षक का असली उद्देश्य: आरती दीदी की प्रेरणादायक कहानी

यह कहानी इस बात को बेहतरीन उदाहरण है की शिक्षक केवल किताबों तक सिमित नहीं होते, बल्कि वे समाज के हर उम्र और वर्ग के व्यक्ति की मदद ले सकते हैं। आरती दीदी ने जिस तरह से एक जागरुकतमंद महिला की मदद की ओर उसे आत्मनिर्भर बनाया, वह शिक्षा के वास्तविक उदेश्य को दर्शाता है। शिक्षा न केवल ज्ञान देना है, बल्कि आत्मविश्वास और आत्मनिर्भर का निर्माण करना भी है।

आरती दीदी ने उस महिला को न कवक जीवन की नई दिशा दी, बल्कि यह भी सिखाया की किसी भी उम्र में सिखने की प्रकिया समाप्त नहीं होती। यह प्रयास दिखाता है की शिक्षा का दायरा केवल बच्चो तक सिमित नहीं हैं, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में व्याप्त है।



इस प्रयास से यह भी समझ आता है की एक छोटी सी मदद किसी के जीवन को सकारात्मक दिशा दे सकती है। आरती दीदी की यह प्रेरक कहानी हमें यद् दिलाती है की समाज में शिक्षक सिर्फ कक्षा तक ही सिमित नहीं रहती, बल्कि वे बदलाव लाने मार्गदर्शक भी होती हैं। 


इस तरह के प्रयास हमें प्रेरणा देते हैं की हर व्यक्ति के पास समाज में बदलाव लाने की क्षमता होती है, बस जरूरत है हौसले और सही दृष्टिकोण की।

मौसम कुमारी
बडी, मुजफ्फरपुर

“हर मुश्किल के बाद सफलता की नई शुरुआत”

साक्षी मुंगेर जिले के एक छोटे से गांव (फरदा) की लड़की है, जिसका परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। पिताजी ईंट-भट्टे में मजदूरी करते थे, लेकिन काम बंद हो जाने के कारण उन्हें परदेस (जयपुर) जाना पड़ा। शुरुआत में उन्होंने घर पैसे भेजे, जिससे परिवार का खर्च चलने लगा। लेकिन धीरे-धीरे फैक्ट्री मालिक ने उनका शोषण करना शुरू कर दिया, और उनका परिवार से संपर्क टूट गया।
माँ ने बच्चों के साथ मायके जाकर खेतों में काम किया और कठिन परिस्थितियों का सामना किया। इस बीच एक पुजारी की भविष्यवाणी के बाद साक्षी के पिताजी घर लौट आए, जिससे परिवार फिर से एकजुट हो गया।

लेकिन जीवन की परीक्षाएँ यहीं खत्म नहीं हुईं। साक्षी की बहन सिमरन की बीमारी से मौत हो गई, और पिताजी का दुर्घटना में गंभीर चोट लगने से कामकाज ठप हो गया। इन कठिनाइयों ने साक्षी को प्रेरित किया कि वह अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाए।

साक्षी ने पढ़ाई जारी रखी और संघर्ष करते हुए i-सक्षम जैसे संगठन से जुड़कर अपने जीवन में बदलाव लाने की कोशिश की।

यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी परिवार की एकजुटता, संघर्ष और कभी हार न मानने का साहस सफलता की कुंजी है। जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, हौसला और मेहनत से उन्हें पार किया जा सकता है।

साक्षी कुमारी
बैच-11
मुंगेर

Wednesday, January 29, 2025

i-सक्षम से जुड़ने के बाद जीवन में आए बदलाव

आज मैं आप लोगों के साथ i-सक्षम में जुड़ने के बाद खुद में आए बदलाव को साझा करने वाली हूँ। i -सक्षम से जुड़े मुझे छह महीने होने वाले हैं, इस बीच मैंने खुद में कई नए बदलावों को महसूस किया।

बहार जाने का आत्मविश्वास 

i-सक्षम से जुड़ने से पहले हम घर से बाहर बहुत कम जाते थे। अकेले बाहर जाने में डर सा लगता था। कि लोग क्या सोचेंगे। अगर कुछ सामान लाना होता तो मैं अपने पति से या घर के किसी अन्य सदस्य से बोलती थी। क्योंकि हमें घर से बाहर निकलने में भीड़ और भरी सड़कों को पार करने में हिचकिचाहट सी होती थी। लेकिन अब हम घर के बाहर के अपने काम को खुद ही जाकर कर निपटाने लगी हूँ।

सपनो की पहचान की यात्रा 

पहले मुझे लगता था की घर और बच्चा ही जीवन के केंद्रे हैं। लेकिन जब मै i-सक्षम से जुडी, तो मुझे एहसास हुआ की खुद के भी सपना होते हैं। जिन्हें पूरा कर सकते हैं। 


आत्मविश्वास और बातचीत में सुधार

मुझे लोगों से बात करने में हिचकिचाहट होती और डर लगता था। बातचीत के दौरान मेरा आई कांटेक्ट (Eye Contact) नहीं हो पता था। जिससे मै अपनी बात  बेहतर तरीके से नहीं रख पाती थी। लेकिन अब यह डर काफी हद तक कम हो गया है।


शिक्षा के लिए वॉइस एंड चॉइस का उपयोग

मैंने अपने आगे की पढाई के लिए अपने वॉइस एंड चॉइस का उपयोग किया। मैंने अपने पति से बिना हिचकिचाहट के कहा मुझे आगे पढाई करना है। मुझे कंप्यूटर सिखने का बहुत मन था, लेकिन मेरे पति कहते थे, “तुम क्या करोगी सीखकर?” जब मुझे क्लस्टर में प्राइम बुक मिला, तो मै बहुत खुश हुई। मैंने पति से कहा “देखिए, अब मै कंप्यूटर भी सिख सकती हूँ और अपने सपने को पूरा भी कर सकती हूँ। 

क्लस्टर मीटिंग का अनुभव  

जब मै पहली बार क्लस्टर मीटिंग में गई। तो मुझे आजादी का अनुभव हुआ। मुझे हर महीने के आखिरी गुरुवार का विश्ववारी इंतज़ार रहता है, क्युकी वहां की खुली हवाएं और ऊँचे-ऊँचे पहाड़ मुझे प्रेरणा देते हैं।


समाज के प्रति जागरूकता

क्लस्टर में सामिल होने के बाद मै यह सोचने लगी की हमारे समाज में क्या अच्छा हो रहा है और ऐसा क्या किया जाये जिससे लोग जागरूक हो सकें। अब मै अपने समाज के लिए बेहतर सोचने औए कदम उठाने में सक्षम हूँ। 

निर्णय लेने की क्षमता

i-सक्षम से जुड़ने के बाद मेरे अंदर इतना बदलाव आए हैं की अब मै सही और गलत के बिच अंतर कर पाती हूँ,अपने जीवन से जुड़े सही निर्णय ले पाती हूँ, जो पहले नहीं कर पाती थी।

जुली कुमारी 

बैच-11 

जमुई 


अपनी आवाज़ को अपनाई और पहचान बनाई : रंगीला

एक छोटे से गाँव मुहमदपुर की i-सक्षम में बैच-10 की एडू-लीडर रंगीला हैं। जो खुद में और अपने समुदाय में सकारत्मक प्रभाव छोड़ रही है। उनका आत्मविश्वास बढ़ना, अपने आवाज को अपनाना और दूसरों के साथ स्नेहपूर्ण संबंध बनाना सच में एक बड़ी उपलब्धि है।

महिलाओं को जागरूक करने की पहल


रंगीला ने अपने समुदाय में जाकर महिलाओं को मासिक धर्म में स्वच्छता से जुड़ी जरूरी जानकारी प्रदान की।

उन्होंने लगभग 10 महिलाओं से मिलकर इस विषय पर गहरी बातचीत की। इसके अलावा, वह अपनी स्थानीय समुदाय की दो महिलाओं को हस्ताक्षर सिखाने में भी मदद की। यह उनको दृष्टिकोण को दर्शाता है जिसमें एक सशक्त लीडर केवल ज्ञान बांटने तक समित नहीं रहता, बल्कि अपने जीवन के संघर्ष और व्यक्तिगत गुणों से भी लोगों को प्रेरित करता है।


चुनौतियों का सामना और प्रेरणा 


रंगीला का अपने पहचान बनान और कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ना यह दिखता है की कैसे धैर्य, शांति और आत्मविश्वास के साथ किसी भी चुनौती को पर किया जा सकता है। उनको यह प्रयास से यह स्पष्ट होता है की शिक्षा और जागरूकता का दायरा सिर्फ व्यक्ति विशेष तक समित नहीं रहता, बल्कि यह समाज में व्यापक बदलाव लाने की क्षमता रखता है। 

समुदाय में लीडरशिप की भूमिका 
एक एडू लीडर का प्रभाव सिर्फ विद्यालय या कार्यक्षेत्र तक समित नहीं होती, बल्कि वह अपने समुदाय और परिवार में भी सकारत्मक परिवर्तन लाता है। रंगीला ने इस बात को पूरी तरह प्रमाणित किया है। उनको यह प्रयास न केवल प्रेरणादायक है बल्कि यह दिखता है की छोटे कदम भी बड़े बदलाव की नींव रख सकते हैं।


  

शिक्षा के प्रति दृढ़ संकल्प
रंगीला अपने गाँव की पहली लड़की हैं जो घर से बाहर जाकर पढाई करने की इच्छा रखती हैं। यह न केवल उनके लिए बल्कि पूरे समुदाय के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने छपरा के अखंड ज्योति आँख अस्पताल के त्योहार में भी भाग ले कर अपनी सहभागिता दिखाई।
अंतर्मन से नेतृत्व की सीख
उनकी कहानी यह सिखाती है कि जब कोई व्यक्ति अपने आत्मविश्वास और जुनून के साथ आगे बढ़ता है, तो वह न केवल अपने जीवन में बदलाव लाता है बल्कि अपने आसपास के समाज को भी प्रेरित करता है। रंगीला जैसे लोग यह सिद्ध करते हैं कि सच्चा नेतृत्व दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने से परिभाषित होता है।

राधा, बड़ी

मुजफ्फरपुर







शिक्षा से बदली दो लड़कियों की जिंदगी

एक छोटे से गांव (विकोपुर) की रहने वाली रिंकी, कठिन परिस्थितियों में भी अपनी उम्मीद और जज़्बे को बनाए रखने का उदाहरण हैं। रिंकी का जन्म एक निम्न वर्गीय परिवार में हुआ। वे तीन बहनों और दो भाइयों में सबसे छोटी थीं। रिंकी का बचपन सामान्य बच्चों की तरह शुरू हुआ, लेकिन पांचवीं कक्षा के बाद उनकी जिंदगी ने एक कठिन मोड़ लिया।

उनके चाचा की बेटी की शादी होने वाली थी, और उसी समय उनके चाचा ने सुझाव दिया कि रिंकी की भी शादी कर दी जाए। इस विचार ने रिंकी को झकझोर दिया। वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थीं और अपनी माँ के भाई (मामा) से मदद की विनती माँगी, बोली मामा मुझे अभी पढ़ाई करना है। मामा ने रिंकी की पढ़ाई के लिए रिंकी की घर में बातचीत किये लेकिन घर वाले नहीं माने तो, रिंकी के मामा खुद पे जिम्मेदारी उठाए और बोले मै रिंकी को अपने घर ले गए। इस तरह रिंकी की छठी कक्षा में नामांकन कराया और पढ़ाई जारी रखी।


रिंकी नौवीं कक्षा तक अपनी नानी के घर में पढ़ती रहीं। लेकिन उनके पिता की तबीयत खराब हो गई, जिससे उन्हें घर लौटना पड़ा। कुछ समय के लिए उनकी पढ़ाई रुक गई। परिवार की आर्थिक तंगी और कठिन हालातों के बावजूद, रिंकी ने हार नहीं मानी। दोबारा नानी के घर जाकर पढ़ाई शुरू की और 2020 में मैट्रिक परीक्षा पास कर ली।


इसके बाद, रिंकी की पढ़ाई आगे नहीं बढ़ सकी क्योंकि उनके पिता की तबीयत लगातार खराब रहती थी। परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। अपनी छोटी बहन को पढ़ाई का मौका देने के लिए उन्होंने नानी के घर भेज दिया। रिंकी का गांव काफी दुर्गम क्षेत्र में है,जहां से स्कूल जाने के लिए 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। ऐसे कठिन हालात में भी, रिंकी ने खुद को शिक्षा के प्रति समर्पित रखा।


कुछ दिन बाद 


रिंकी 2023 में i-सक्षम फेलोशिप बैच-10 कार्यक्रम से जुड़ी , उन्होंने अपने गांव में शिक्षा का अलख जगाने का बीड़ा उठाया है। रिंकी अपने समुदाय में भी काम किये हैं। कुछ दिन पहले रिंकी के गाँव में लडकियों की शादी नहीं हो पा रही थी क्योंकी लडकियों को नाम और अपना परिचय नहीं लिखने आता था। रिंकी अपने समुदाय में वैसे लडकियों को चुने जिन्हें अपना और अपना परिचय नहीं लिखने आता था। उसके बाद रिंकी उन लडकियों के साथ काम किये। वे 10 लड़कियों को अपना नाम और परिचय लिखना सिखा चुकी हैं। इन लड़कियों में से दो की शादी भी ठीक हो गई, क्योंकि वे अब खुद का परिचय लिखने में सक्षम थीं। 


रिंकी का संघर्ष यहीं खत्म नहीं होता। अपने पिता की देखभाल, परिवार की जिम्मेदारियों और खेतों में काम करने के बावजूद, वे स्कूल जाती हैं और दूसरों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करती हैं। वे उन लड़कियों के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं, जो शिक्षा की रोशनी से अब तक दूर थीं।


रिंकी की कहानी हमें सिखाती है कि यदि हमारे अंदर कुछ कर दिखाने का जज्बा हो, तो कोई भी कठिनाई हमें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।


श्रृंखला कुमारी 

बडी, गया


Tuesday, January 28, 2025

शादी के बाद शिक्षा की जरूरत पर सवाल

आज मैं अपनी चाची के लिए "वॉइस एंड चॉइस" का उपयोग कर उनके प्रेरणादायक अनुभव को साझा करना चाहती हूँ। यह कहानी एक ऐसे सपने की है, जिसे समाज ने नामुमकिन बना दिया था, लेकिन चाची की लगन और हमारे प्रयासों ने इसे हकीकत में बदल दिया।

मेरी चाची का हमेशा से सपना था कि वे पढ़ाई करें और अपनी शिक्षा पूरी करें। लेकिन उनकी शादी के बाद, उनके परिवार ने यह कहकर उनका सपना तोड़ दिया कि "अब पढ़ाई का कोई मतलब नहीं। शादी के बाद शिक्षा की जरूरत किसे है?" उनके दिल में कहीं यह बात घर कर गई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

जब मैंने उनके मन में छिपी इस इच्छा को देखा, तो मैंने ठान लिया कि उनकी पढ़ाई को लेकर मैं उनका साथ दूँगी। मैंने उन्हें समझाया, "पहले आप अपने पति से बात करें और अपनी पढ़ाई की इच्छा जाहिर करें। यह आपका अधिकार है।"



उन्होंने हिम्मत करके अपने पति (मेरे चाचा) से बात की, लेकिन उन्हें भी मना कर दिया गया। चाचा ने साफ कहा, "अब पढ़ाई का क्या फायदा? शादी के बाद पढ़ाई की जरूरत ही क्या है?"
यह सुनकर मैं चुप नहीं बैठी। मैंने चाचा से व्यक्तिगत रूप से बात करने का फैसला किया। मैं उनके पास गई और कहा, "चाचा, आपकी बेटी अभी सिर्फ दो साल की है। जब वह बड़ी होकर आपसे पूछेगी कि 'पापा, आप कितनी पढ़ाई किए हैं?' तो आप गर्व से कहेंगे, 'हम इंटर तक पढ़े हैं।' लेकिन जब वह मम्मी से पूछेगी, 'मम्मी, आप कितनी पढ़ी हैं?' और मम्मी सिर्फ 9वीं तक पढ़ी होंगी, तो इसका क्या जवाब देंगे? क्या आप नहीं चाहेंगे कि चाची अपनी बेटी के लिए एक प्रेरणा बनें? क्या आप नहीं चाहेंगे कि आपकी बेटी अपनी माँ को भी पढ़ा-लिखा और आत्मनिर्भर देखे?"
मेरी इन बातों ने चाचा को सोचने पर मजबूर कर दिया। कुछ दिनों बाद, उन्होंने बात मान गए। उसके मैं चाची को एक स्कूल में नामांकन कराया।

शुरुआत में यह सफर चाची के लिए आसान नहीं था। घर के कामों और पढ़ाई के बीच तालमेल बैठाना एक बड़ा संघर्ष था। लेकिन उनकी मेहनत और जज़्बे ने हर मुश्किल को आसान बना दिया।


आज, मैं गर्व से कह सकती हूँ कि मेरी चाची ने 10वीं की परीक्षा पास कर ली है। यह सिर्फ एक परीक्षा पास करना नहीं था, बल्कि उनके सपनों की पहली सीढ़ी थी। अब हम उन्हें आगे पढ़ाई के लिए प्रेरित कर रहे हैं ताकि वे अपने सपनों को पूरी तरह से साकार कर सकें।
चाची की यह कहानी सिर्फ उनके सपनों की नहीं, बल्कि हर उस महिला की है, जो अपने हक के लिए खड़ी होती है। जब उन्हें सही समर्थन और मौका मिलता है, तो वे हर असंभव को संभव बना सकती हैं।

मोंटी कुमारी 
बैच 10 
मुंगेर