हम आए दिन कई खबरें देखते हैं, लेकिन उनमें सकारात्मक और प्रेरणा बहुत कम दिखाई पड़ती है। यहां तक कि आज भी कई खबरें या चीज़ें लोगों के सामने नहीं आ पाती।
कुछ इसी तरह का उदाहरण आप यहां पढ़ सकते हैं। एक बच्ची जो खुद मात्र 9 साल की है, और उसके खुद के अभी पढ़ने की उम्र है, वह बच्ची अपने गांव के अन्य बच्चों को भी पढ़ा रही है। पूछने पर बड़ी शालीनता से जवाब भी देती है। इसे हमारी बड्डी राजमणि ने साझा किया है।
आइए अब आपकी जिज्ञासा को कम करते हैं और राजमणि की कलम से जानते हैं, कुछ करने की जब लगन हो, तब बदलाव को लाया जा सकता है।
दोस्तों, मैं आप सभी के साथ सपना बैच -9 के क्लासरूम की एक प्यारी सी बच्ची प्रियांशु कुमारी के बारे में कुछ साझा करना चाहती हूं।
प्रियांशु चौथी कक्षा में पढ़ती है और वह मात्र 9 साल की है, जगदंबापुर फरदा की रहने वाली है।
प्रियांशु के अंदर बहुत सारी आशाएं हैं। इस बच्ची को सपना सुबह में 6:30 से 8:30 बजे तक पढ़ाती है। इसके बाद प्रियांशु स्कूल चली जाती है और 3:00 बजे स्कूल से पढ़कर वापस घर आती है।
घर आकर खाना खाती है और अपने आसपास के बच्चे को घर जाकर बुलाने जाती है। आप सोच रहे
होंगे कि यह बच्ची सबको खेलने के लिए बुलाती है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह बच्चे आसपास के बच्चों को पढ़ाने के लिए बुलाती है।
इसके बाद जब 5 से 6 बच्चे इकट्ठा हो जाते हैं, तो यह प्रतिदिन उन बच्चों को 4:00 बजे से पढ़ाती है। यह सिलसिला हर रोज चलता है।
बच्चों के साथ जमीन पर बैठना
प्रियांशु के पढ़ाने का तरीका बिल्कुल उसकी शिक्षिका
सपना के जैसा है। साथ ही वह बच्ची बच्चों के साथ जमीन पर बैठती है।
प्रियांशु सबसे पहले बच्चों को मेडिटेशन करवाती है। बाल गीत या कोई गतिविधि करवाती है। बच्चे को अलग-अलग ग्रुप में बैठा कर उनको क्लास के अनुसार पढ़ाने की कोशिश करती है। साथ में t.l.m. का इस्तेमाल भी करती है।
चूंकि प्रियांशु के पास चार्ट पेपर और कलर नहीं है इसलिए वह कॉपी के कागज को फाड़ कर उसका t.l.m. बनाती है और घर के दीवार में अलग-अलग जगह लगा देती है।
प्रियांशु केवल उन्हीं बच्चों को पढ़ाती है, जिसका स्तर उनके स्तर से नीचे हो ताकि उनको पढ़ाने में बहुत आसानी लगे।
मां को दिया धन्यवाद पत्र
यह जानकारी मुझे उनकी मम्मी से पता चली, जब मैं शनिवार को कमेटी में गई थी। मैंने प्रियांशु की मम्मी को धन्यवाद पत्र भी दिया क्योंकि कहीं न कहीं उन्होंने भी अपनी बेटी की पहचान गढ़ने में भूमिका निभाई है।
इसके बाद मैंने प्रियांशु से भी मुलाकात की और कुछ सवाल पूछे, "प्रियांशु, आप बच्चों को क्यों पढ़ाती हैं? कैसे पढ़ाती हैं?" इस पर प्रियांशु ने कहा, "दीदी, मैं आपके यहां से जो पढ़ कर आती हूं और जो सीखती हूं उसी को मैं अपने घर के आस-पास के छोटे बच्चे को पढ़ाती हूं।"
"जो मुझे समझ में नहीं आता है, तो मैं आपके पास पढ़ने के लिए जाती हूं। वहां क्लास रूम में बहुत सारे चित्र बने हुए हैं और क्लास में जो भी t.l.m लगा हुआ है, उसको मैं अपने कॉपी में बना लेती हूं। उसके बाद मैं घर आकर उसको अच्छे पेज में फिर से बनाकर अपने घर की दीवार में लगा देती हूं।"
बच्चों से नहीं लेती पैसे
इसके बाद मैंने प्रियांशु से फिर पूछा कि वह बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ पैसे भी लेती हैं? तो इस पर प्रियांशु ने कहा, "मैं बच्चों से पैसा नहीं लेती हूं। मैं जहां पढ़ती हूं, वहां मुझसे पैसे नहीं लिए जाते इसलिए मैं भी किसी से पैसे नहीं लेती हूं। मुझे पढ़ना और पढ़ाना पसंद है इसलिए मैं यह करती हूं।"
जब मैं यह कहानी सपना के द्वारा सुनी तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था। मैंने उनको बोला कि वह जब पढ़ाती है, तो किसी दिन आप उनके घर जाओ और आप बैठ कर देखो फिर वह कैसे पढ़ाती है। हो सके तो आप उसका वीडियो या फोटो भी ले सकते हैं।
मेरे इतना कहने के बाद सपना उनके घर गई। वह बिल्कुल एक शिक्षिका की तरह पढ़ा रही थी, जिसमें मेरे भी कुछ अंश सम्मलित थे। यह मेरी अब तक की सबसे प्यारी तस्वीर है और हां, अनुभव भी। यह जानकारी मुझे सपना से मिली है, जिसे मैंने कलमबद्ध किया है।
अमूमन इस उम्र के बच्चे खेल कूद पर ज्यादा ध्यान देते हैं। उन्हें पढ़ने के लिए बोलना पड़ता है। यहां तक कि कई माता पिता इतने जागरूक भी नहीं होते कि वे अपनी बच्ची को पढ़ाए लेकिन यहां की तस्वीर बदलाव और उम्मीदों से भरपूर तस्वीर थी।
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