नकारात्मक खबरें हर जगह से मिल जाती हैं लेकिन शोध बताता है कि सकारात्मक खबरों को जानने से ना केवल मनुष्य का आंतरिक विकास होता है बल्कि उसे अच्छा भी महसूस होता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता में विकास होता है।
आज हमारे एडुलीडर जमीनी हकीकत को सामने लाते हुए एक बदलाव और सकारात्मक खबर भी साझा कर रहे हैं, जो ना केवल आपको बल्कि हर उस बच्ची के लिए मील का पत्थर साबित होगी, जिनके लिए पढ़ पाना एक चुनौती है।
मैं धर्मराज कुमार, आप सभी के साथ अपना अनुभव साझा करना चाहता हूं। मैं जमुई जिले में स्थित लठाणे नाम के एक गांव में बच्चे के शैक्षणिक स्थिति के बारे में जांच करने गया था। उसी दौरान मेरी मुलाकात कुछ महिलाओं से हुई। जब मैंने उनसे उनके बच्चों की पढ़ाई के बारे में पूछताछ की तो कुछ बातें निकल कर सामने आई, जिसे सुनकर मुझे काफी आनंद आया और थोड़ी मायूसी भी हाथ लगी। बातचीत में पता चला कि उनकी एकमात्र पुत्री हैं, जिनका नाम संजना है।
उन महिला ने अपनी बेटी के बारे में बताया कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है। उनका घर खपरैल का है और वह भी टूटा फूटा हुआ है। जब मैंने पूछा "क्या आपकी लड़की स्कूल पढ़ने जाती है?" मेरे इस सवाल पर उन्होंने कहा, "यह सब मत पूछिए। मेरी बेटी तो बोलती है कि अगर रविवार को भी पढ़ाई होती तो कितना मजा आता।”
मैं स्कूल नागा नहीं करुंगी
उन्होंने आगे कहा कि आप जाकर स्कूल में सभी शिक्षक से पूछ सकते हैं कि मेरी बेटी एक भी दिन क्लास से अनुपस्थित नहीं रहती है। हालांकि मैं ही किसी-किसी दिन बोलती हूं कि आज स्कूल नहीं जा। घर में बहुत काम है। तो मेरे इतना कहने पर वह बोलती है कि “मां, मैं स्कूल से जाऊंगी। आपका सारा काम भी कर दूंगी। अगर मैं नागा कर दूंगी तो आगे फिर मुझे विषय समझने में दिक्कत होगी।”
अपनी बेटी की ऐसी लगन देखकर मैं अपनी बेटी को कुछ नहीं बोलती हूं। मैं भी सोचती हूं कि ठीक है, जब तुम्हारा मन पढ़ाई में है, तो पढ़ो।
मां को है भविष्य की चिंता
अपनी बेटी के लिए एक मां की ऐसी सोच जानकर मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि कहीं ना कहीं बदलाव की बयार बह रही है। हालांकि जाते-जाते मैंने उन्हें कहा, "आपकी बेटी हीरा है। इसे खूब पढ़ाइए।" मेरे इतना कहने पर उस महिला ने फिर मुझसे कहा, "मुझे दुविधा है कि पता नहीं कि मैं अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा पाऊंगी भी या नहीं।"
"तब मैंने उनकी आशंका को कम करते हुए कहा, "मेरा विश्ववास है कि अभी आपको मैट्रिक तक इसके पढ़ाई के खर्चे के बारे में नहीं सोचना होगा। स्कूल से पोशाक, किताब, छात्रवृत्ति यह सभी मिलते रहेंगे। इसके अलावा थोड़ा बहुत कॉपी-कलम की जरूरत होगी, जिसे आप जुटाने में सक्षम होंगे। साथ ही समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है।"
कुल मिलाकर मुझे अपनी पहल और मेहनत पर बहुत नाज हुआ कि कम से कम लोगों की सोच में बदलाव हो रहा है। हालांकि अभी भी ऐसे कई हिस्से होंगे, जहां बदलाव की दरकार है लेकिन मेहनत और दृढ़ निश्चय के बल पर इसे भी हासिल किया जा सकता है।
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