निजता का अधिकार हर किसी को है और इसके प्रति जागरूक रहना तथा अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहना भी बेहद जरूरी है। हालांकि अब ऐसा हो गया है कि लोग एक दूसरे पर शक करने लगे हैं। हमारे एडुलीडर्स का काम जितना चुनौतीपूर्ण है, उससे कहीं ज्यादा उनकी तैयारी भी चुनौतीपूर्ण है। इसी कड़ी में हमारी एडुलीडर प्रीति कुमारी ने अपना अनुभव साझा किया है।
मेरा नाम प्रीती कुमारी है और मैं गया की रहने वाली हूं। आज मैं आप सबके साथ एक छोटा सा अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज मैं सिंगपुर में सर्वे करने गई थी, तो वहां मुझे बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा।
एक घर में जब मैं सर्वे करने गई, तो उन्होंने डाटा मतलब कुछ जानकारी देने से मना कर दिया। इसके उलट उन्होंने मुझसे बहुत तरह के सवाल किए। जैसे आप लोगों की निजी जानकारियां बेच देते हैं, इससे पैसे कमाते हैं इत्यादि।
मैंने किया समझाने का प्रयास
हालांकि मैंने उन्हें बताया कि आप जो कुछ भी बोल रहे हैं, उसमें बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है। हम बच्चों की शिक्षा पर काम करते हैं, जो बच्चे स्कूल में नहीं पढ़ पा रहे हैं या जिनकी पढ़ाई बीच में छूट गई है, वैसी बच्चियों को स्कूल में नामांकन करवाते हैं।
मेरे इतना कहने के बाद वे बोलने लगे कि ऐसा नहीं हो सकता है कि आप लोगों की निजी जानकारियां नहीं बेचे। मैंने उन्हें बार बार समझाया, कई बार अपने काम की जानकारी दी, बच्चियों के नामांकन के बारे में बताया मगर उन पर कोई असर नहीं हुआ।
अन्य अभिभावक ने की सहायता
कुछ देर तक हमारी बात चलती रही कि तभी कुछ दूरी पर खड़े एक अभिभावक ने कहा, "ये सभी लोग बच्चियों का नामांकन कराते हैं। ये किसी की निजी जानकारियां नहीं बेचते इसलिए इन पर भरोसा किया जा सकता है।"
इसके बाद जिस अभिभावक से मेरी बात हो रही थी, उन्होंने हमारी पहल के बारे में जाना और समझा। इसके बाद उन्होंने अपनी जानकारी हमारे साथ साझा की।
उस दिन मुझे अहसास हुआ कि अगर दूसरे अभिभावक ने उस दिन हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो शायद पहले अभिभावक ने हमारे साथ जानकारी नहीं साझा की होती।
साथ ही उस दिन मुझे अहसास हुआ कि भरोसे का मतलब क्या होता है क्योंकि कहीं न कहीं आजकल लोगों के अंदर शक का बीज रह गया है। ख़ैर, मेरी मेहनत का ही फल रहा कि मेरा काम नहीं रुका। इसके अलावा इससे लोगों की जागरूकता के बारे में भी समझ आया कि अब वे अपनी निजी जानकारी को लेकर भी कितने जागरूक हो चुके हैं।
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